फरवरी महीना उफ्फ यादों की डायरी में मुरझाया सा सूखा सा वो लाल गुलाब न जाने क्यों सुर्ख अधखिला गुलाब बन मेरी आंखों के सामने झूमने लगता है… और दिल फिर वही अठारह साल की अल्हड़ नव यौवना सा चहक उठता है…
स्कूल से निकल कर कॉलेज की दहलीज पर पहला दिन पहला कदम थोड़ा डर थोड़ा उत्साह थोड़ी खुशी और बहुत ज्यादा को एजुकेशन में पहली बार पढ़ने की जिज्ञासा रोमांच उफ्फ.. आज खुद से बोलती हूं कितनी पागल थी तू प्रीति..
स्कूल से बिल्कुल अलग माहौल.. रिबन से दो छोटी कर स्कूल ड्रेस पहनने वाली लड़कियां अब अचानक बड़ी हो गई है..बालों को अलग अलग तरीके से स्टाईल बनाने लगी है. सलवार कुर्ता भी तरह तरह के रंग और डिजाइन वाली पहनने की छूट मिल गई.. किसी की आंखों में प्रशंसा के भाव देखना कितना सुखद लगने लगा है खासकर लड़कों की आंखों में.
दो तीन महीने बीतते बीतते कॉलेज का पूरा माहौल समझ में आने लगा..
कुछ दिनों से गौर कर रही थी एक लड़का बार बार देख रहा है पर जैसे हीं उसकी तरफ देखती नजर झुका लेता या नजर फेर लेता.. कुछ दिन बाद सहेलियों ने भी नोटिस किया प्रीति देख तुझे हीं उसकी नजर तलाशा करती है. तू जिस दिन कॉलेज नही आती या लेट से आती है उसकी नजरें तेरी हीं जैसे तलाश करती है और नही मिलने पर खामोश सी उदासी उसके चेहरे पर आ जाती है .. तुझे देखते हीं उसका चेहरा खिल उठता है .प्रीति भी तो हाड़ मांस की पुतला हीं थी जिसके अंदर एक प्यारा सा दिल धड़कता था… सोनल कितना छेड़ती देख प्रीति कितना हैंडसम लड़का है मुझे तो तुझसे जलन सी हो रही है… फरवरी के महीने की शुरुआत हो चुकी थी.. कॉलेज में सरस्वती पूजा की तैयारी चल रही थी.. लड़कियां पीली साड़ी और लड़के पीला कुर्ता पायजामा पहनने की प्लानिंग कर रहे थे….
करीब करीब सभी लड़कियां पहली बार साड़ी पहन रही थी.. कोई अपनी मम्मी की कोई भाभी तो कोई बड़ी बहन की.. मुझे भी भाभी ने अपनी प्यारी सी पीली साड़ी पहनाई .. लंबे बालों में गजरा लगा दिया.. छोटी सी बिंदी और छोटे छोटे अपने सोने के झुमके पहना दिए.. फिर काजल लगाया कानों के पीछे की नजर ना लगे.. मैं अपना बदला हुआ रूप देखकर खुद हैरान रह गई… मां और भैया को अपनी तरफ देखते हुए शरमा कर भाग गई… मां की आंखें नम थी…बाद में समझ आया साड़ी में बेटी को पहली बार देखकर उसके बड़े होने का अहसास हुआ..
किसी तरह साड़ी को संभालती कॉलेज पहुंची . सब कॉम्प्लीमेंट्स दे रहे थे.. पर मेरी नजरें किसी और को तलाश रही थी.…
और अचानक हीं जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथ पकड़ लिया हो…. वो मेरे सामने था एक दम करीब. धड़कने इतनी तेज हो गई की जैसे दिल बाहर निकल आएगा.. पसीना छलछला आया… आप पर पीला रंग बहुत अच्छा लगता है.. आप पीले रंग की ड्रेस ज्यादा पहनना…. बुरा लगा हो तो माफी चाहता हूं…मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज… सखियों ने इतनी तारीफ की पर ये अल्फाज उफ्फ जैसे चारो तरफ मंदिर के पवित्र मधुर घंटे की ध्वनि सा मेरे कानों में मेरे चारो तरफ गूंज उठा.. और तभी पंडितजी आ गए पूजा कराने… पूजा पर कौन बैठेगा बुलाइए.. संदीप बैठेगा.. और संदीप पीला कुर्ता पहने सर पर रूमाल रखे पंडित जी के सामने बैठ गया… भरपूर नजर संदीप पर डाली पहली बार. तीखे नैन नक्श पर भोला मासूम चेहरा.. सच में कितना हैंडसम है संदीप.. उसका निर्दोष चेहरा आंखों में जैसे बस गया…
कॉलेज में अब एक दिन की भी छुट्टी होती तो मन बेचैन हो जाता… कॉलेज जाते हीं नजरें संदीप को तलाशती… जैसे हीं नजर आता मुस्कुरा कर नजरें नीचे कर लेती… गाल दहक उठते.. दो दिन संदीप कॉलेज नही आया.. किससे पूछती.. आंखें डबडबा उठी.. शिव जी के मंदिर गई.. भोले भंडारी से संदीप की सलामती की प्रार्थना की..
और अगले दिन संदीप को कॉलेज में देख मेरा चेहरा खिल उठा… उषा दीप्ति नीतू सब मिलकर मुझे छेड़ने लगी… छः महीने हो चुके थे पर हमारी बातचीत नही हुई थी.. बस आंखों आंखों में हीं…..
औरएक साल यूं हीं गुजर गया.. अभी का वक्त होता तो अब तक कितने रेस्टोरेंट सिनेमा हॉल पार्क झील झरने के सैर कर चुके होते और शायद ब्रेकअप भी हो चुका होता.. किसी दूसरे के साथ हाथों में हाथ डाले…
और फिर फरवरी का महीना आया.. हवा में खुमारी मन मिजाज को मदहोश करने वाली उस पर रही सही कसर प्रेम ने पूरी कर दी.. कल्पना लोक में विचरण करती प्रीति….
ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर का एग्जाम तीन महीने बाद होने थे… प्रीति लाइब्रेरी में अर्थशास्त्र की किताब लेने गई..लाइब्रेरियन बोला एक हीं किताब बची थी जो अभी अभी संदीप इशू करा कर मेरे पास रख कर गया है क्लास के बाद ले जाएगा… ओह.. और तभी संदीप अपना किताब लेने आया.. प्रीति को भी यही किताब चाहिए था ये जान कर बोला दो दिन बाद आपको ये किताब मिल जाएगी..
और दो दिन बाद प्रीति को किताब देते हुए संदीप बोला किताब को संभाल कर रखिएगा इसमें आपके लिए कुछ खास है…. धड़कते दिल से प्रीति ने किताब ली.. जल्दी से घर पहुंच कर अपना कमरा बंद किया और थरथराते हाथों से किताब को खोला… सुर्ख लाल गुलाब उफ्फ… कभी पीली साड़ी पर ऐसा हीं सुर्ख लाल गुलाब लगाना … कितनी बार पढ़ा…
फाइनल ईयर के एग्जाम के पहले फेयरवेल पार्टी थी… और उसमें प्रीति पीले रंग की साड़ी पहना और बालों में सुर्ख लाल गुलाब लगाया…. बिछड़ने की सोच कर सब की आंखें नम थी.. सब की बहुत रिक्वेस्ट पर संदीप ने अपने सधे हुए स्वर में गाना सुनाया बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी. …प्रीति जैसे तैसे अपनी रुलाई रोकी…
फाइनल एग्जाम के बाद बाबूजी भैया ने मां और भाभी से कहा प्रीति को तैयार रखना अच्छे से चाय नाश्ता लेकर आएगी… आकाश और उसके मम्मी पापा छोटा भाई के साथ शाम को आ रहे हैं प्रीति को देखने.. आकाश सीए है.. छोटा परिवार है प्रीति वहां बहुत खुश रहेगी….
आकाश और उसके मम्मी पापा को मैं पसंद आ गई… आकाश के छोटे भाई अमन ने कहा भैया को देख लो ठीक से पर मैने नजरें नही उठाई.. जिन आंखों में संदीप की छवि बसी थी भला वो आंखें.. मेरी आंखें डबडबा उठी..
ना कोई शिकायत के ना गिला शादी के मंडप में यंत्रवत बैठ गई….
अठारह साल बीत गए.. संदीप जाने कहां होगा… अवनी और आयुषी दो बेटियों की मां बन गई हूं.. पर आज भी डायरी में संभाल के रखा वो सुखा गुलाब जिसे मैंने कितने जतन से संभाल के रखा है… देखते हीं मुझे सुर्ख लाल गुलाब सा हीं लगता है.. सुखी मुरझाई पंखुड़ियां भी मुझे मखमल सा स्पर्श देती है.. और फरवरी महीना हर बार थोड़ी टीस सुहाना सा दर्द अनकहे लफ्जों में छुपी प्रेम के खूबसूरत अहसास सब कुछ चलचित्र सा आंखों के सामने आ जाता है.. धड़कने आज भी तेज हो जाती है जैसे दिल बाहर आ जायेगा.. पसीने की बूंदे झिलमिला उठती है गाल दहक उठते हैं…. उफ्फ ये फरवरी… कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता कभी जमीं तो.….
Veena singh