“लाजवंती” – आसिफ शेख : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: “अरी ओ दीनु की माई ! ये लाजवंती कहाँ रह गई आज, आई नहीं अब तक ? हरीया बार बार दरवाजे़ तक जाता, बाहर झाँक कर वापस आ जाता, अपनी पत्नी कमली से यही सवाल वह पचासो बार पूछ चूका था।

और वह बेचारी चूल्हा हांडी छोड़ माथे पर हाथ मारते हुए कहती ” आ जाएंगी गी, अभी समय नहीं हुआ है, अभी थोड़ी देरी है, काहे रोज रोज पूरा गाँव सर पे उठा लेते है, इतनी ही चिंता होती हैं तो उस के साथ क्यू नहीं जाते ?

तभी हरीया गुस्से से मूह बनाते हूए बोला ” वह देखो आ रही है लाड़ली, नखरे तो देखो महारानी के कैसे गर्दन हीलाते हुए चल रही हैं, आने तो घर में कैसे डांट पीलाता हु आज, कोई परवाह ही नहीं इसे, हमेशा देरी कर देती है, अरे समझती ही नहीं,.. मुझे कितनी चिंता है इस की”

“अरे! मगर ये भीमा काहे उस के पीछे पीछे चला आ रहा है? हरीया कमली की तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोला, ससुरा फीर लाजवंती की कोई तकरार ले कर आ रहा होंगा, मैं छीप जाता हूँ उसे कह देना मै घर पर नहीं हु”

“अरे ओ हरीया” भीमा ने दरवाजे़ के बाहर से हा़क लगाई, कमली घर के भीतर से बोलती हूई दरवाजे़ पर आ गई “कौन? “पायलागू भाभी जी”! ” अरे भीमा भैय्या कैसे हो बहुत रोज बाद दीखे? हरीया कहाँ है? काहे? वह तो नहीं है खेतो की तरफ़ गए है, कुछ कहेना हो तो, मूझे बोल दो भैय्या, मै संदेशा दे दूंगी।

“कहेना क्या है भाभी जी! ये जो खडी हैं ना! हरीया की लाडली लाजवंती , भीमा मूह तेढा करते हुए बोला” इसी की तकरार ले कर आया हूँ ” इतना सुन्ना था कि हरीया झपाटे के साथ बाहर निकल आया ” अरे भीमा कूछ तो शरम कर, क्या बैर है तेरा इस बेचारी मासूम से ?

“अरे ये और! बेचारी…मासूम ? भीमा लाजवंती की ओर इशारा करते हुए मुंह बना कर बोला “तेरी इसी बेचारी और मासूम ने मेरी फसल बर्बाद कर दी, घास के साथ साथ फसल भी खा गई, केवल खा लेती तो कोई बात ना थी, परंतु इस ने तो अपने पगो से रौंद रौंद कर खेत भी खराब कर दीया।

हरीया तीरची निगाह से अपनी लाडली गाय लाजवंती की ओर देखते हुए जो इस तरह सर झुकाए अदब से खड़ी थी जैसे बेचारी बेकसूर गरीब के सीर पर भीमा झूठा आरोप मढ रहा हो , कहेने लगा ” अरे भीमा जरा देख इस बेचारी बेजुबान की तरफ कैसे सर झुकाए मूहं उतार कर खडी हैं इस को क्या खबर, ये क्या जाने फसल और घास के बीच का अंतर ? छोड़ ना भाई ! बेजुबान नासमझ जानवर ही तो है।

उधर लाजवंती ने अपना पैंतरा बदल दीया अब इस तरह खडी जुगाली करती और बार बार आवाज़ निकाल कर दांत दीखाती, मानो भीमा को चीढा रही हो, भीमा उस की ओर देखते हुए खीसयाता हुआ चला गया, और हरीया प्यार से अपनी लाड़ली लाजवंती की पीठ सहेलाने लगा।

“सूनो जी ! मुझे एक ही चिंता खाए जा रही हैं” कमली हरीया से गंभीरतापूर्वक भाव में बोली “दीनु को लाजवंती के दुध की जैसे लत लग चुकी हैं, बीना दुध पेट ही नहीं भरता उस का, अन्न के दाने को मुह तक नहीं लगता।

तो इस मे इतनी चिंतन करने वाली कौनो बात है? हरीया गहरी नींद मे डूबे अपने नन्हें पूत्र दीनु को प्यार से निहारते हुए बोला, कमली अपना सीर पीटते हुए बोली “आप को तो कुछ समझ आता ही नहीं, कभी लाजवंती को ध्यान से देखा है ? हरीया के पल्ले कुछ नहीं पड़ा वह बच्चे की तरह कमली का चहेरा तकने लगा।

अब ये हुक्को की तरहा मेरी सूरत काहे तके जा रहे हो कमली खुशी और उत्साह से बोली लाजवंती माँ बनने वाली है, सच ! ख़ुशी से हरीया की आंखें भर आई।

पूरा गाँव जल थल हो गया था, खेत खलिहान पानी से भर चुके थे, “आज चार दिन हो गए पानी थमने का नाम ही नहीं लेता था, दीनु की माई इतनी बारिश अभी तक नहीं देखी कभी, लाजवंती और उस के लल्ला को उपर टीले पर छप्पर में रख आया हू वहा दोनों सुरक्षित रहे गे।

“लाजवंती अपने लल्ला के साथ बड़ी खुश हैं, उन दोनो की चिंता भी आज दूर हो गई, गरीब बेजुबान जानवर यहाँ गीले कीचड़ मे बड़े परेशान थे, हरीया अरे ओ हरीया जल्दी निकल बाहर गाँव में बाढ का पानी भर गया है बहुत तेजी से पानी का स्तर चढ रहा है।

कमली के हाथ पाँव फुलने लगे वह हडबडा कर दीनु के बाबा….. लाजवंती और उस का लल्ला कहती हूई बाहर की ओर भागी, हरीया भी तुरंत उस के पीछे दौड़ पडा परंतु बहूत देर हो चुकी थी बाढ का पानी घर के दालान तक पहुंच गया था दोनों पती-पत्नी दुख और घबराहट से एक दूसरे का मुंह तकते रह गए।

हरीया को जैसे अचानक से होश आया, वह कमली का हाथ पकड छत की ओर घसीटने लगा, छत पर पहुंचने पर भी हरीया और कमली लाजवंती और लल्ला के लिए झटपटा रहे थे , उन्हें लाजवंती और उस के लल्ला के सिवा कुछ ना सूझाई देता था।

परंतु कुछ देर बाद हरीया दिल कडा कर कमली को दिलासा देते हुए दुख और सहानुभूति से उस की पीठ सहलाते हुए बोला ” सब्र कर भली औरत भगवान पर भरोसा रख, सब ठीक ही होगां, शायद इस बहाने वह अपने आप को भी झूठी तसल्ली दे रहा था।

परंतु भली औरत को कहा चैन मिलता,पानी का स्तर तो इतना बढ आया था कि छत बस दो हाथ रह गयी थी, हरीया बार बार टीले की ओर देखने का प्रयास करता लेकीन तेज़ बारिश के चलते कुछ भी साफ नजर ना आता, हालांकि बढते पानी ने टीले को भी अपनी चपेट मे ले लिया था।

अचानक कमली ऐसे उठ खड़ी हुई मानो नींद से जागी हो “दी…नु.. दीनु कहाँ है ? हरीया भी सटपटा सा गया “मूझे क्या पता तेरे ही तो साथ था सुबह? घर मे भी तो ना दिखाई दीया, अरे! आप के पीछे पीछे ही तो था जब आप लाजवंती को टीले पर ले जा रहे थे, दोनों पती-पत्नी दुख और झुंझलाहट में एक दूसरे पर चीखने लगे एक दूसरे को दोषी ठहराने लगे।

कमली की मानो जान निकली जा रही थी, अपने जिगर के टुकड़े के गम मे रो रो कर बेचारी अधमरी हो गई थी, हरीया का कलेजा भी फट रहा था परंतु अपनी जीवन संगिनी की हालत देख गरीब हिम्मत बटोर उसे समझाने का प्रयत्न करने लगा।

आधी से ज्यादा रात गुजर चुकी थी, कमली भी अब बादलों की तरह शांत हो गई थी, रो रो कर दोनों का मन हल्का हो गया था शायद, बारिश का जोर टूटते ही अब पनी का स्तर भी उतरने लगा था।

हरीया और कमली क़िस्मत के लिखे को स्वीकार कर चुके थे, उन्होंने मान लिया था कि वह अपने तीनों चहीतो को खो चुके है उन्होंने तकदीर से हार मान ली थी इसी अधेडबून मे जाने कब दोनों की आँख लग गई।

सुबह का उजाला फैला हूआ था, हर ओर तबाही का मंज़र चीख पुकार और अफरातफरी का राज था, बाढ अपने साथ सब कुछ बाह ले गई थी, पानी का स्तर एकदम उतर चूका था परंतू हर ओर कीचड़ कुडा करकट बिखरा पडा था, हरीया जैसे तैसे कमली को सहारा दीए छत से उतार रहा था, दोनों किसी ज़िंदा लाश की भाँति गुमसुम अपने निर्जीव शरीर को मनो ढो रहे थे,

तभी कमली टीले की ओर हाथ उठाकर इशारा करने लगी, हरीया उस ओर देखते हुए कहेने लगा “अरी पगली काहे झूठी आस पाल रही हैं, वहा अब कुछ नहीं होंगा, नसीब ने हम से सब कुछ छीन लिया है, तू मानती काहे नहीं, परंतु माँ का मन कहाँ मानता है, और हरीया भी कहाँ अंतर आत्मा से बोल रहा था, उपर के मन से ही तो बोल रहा था भीतर जो आस की चिंगारी दबी थी उसे तो अब कमली ने हवा दे ही दी थी।

चल ले चलता हू टीले पर, परंतु केवल तेरी ख़ातिर, तेरा मन नहीं मानता ना! हरीया खूद को कठोर दर्शित करता हुआ बोला, कमली हरीया की ओर दया और सहानुभूति से देखते हूए आदर से बोली, बस भी करो दीनु के बाबा जैसे मै नहीं जानती, आप का मन मान गया क्या? दोनों एक दूसरे को देख कर रो पडे।

दिल पे बोझ लिए व्याकुल मन के साथ साथ कीचड़ से लतपत दोनों पती पत्नी टीले पर पहुंच ही गए, और फिर उन्होंने ने वहां जो दृश्य देखा उसे देख उन की आँखों से जो सैलाब उमड़ा वह कल रात वाली बाढ पर भी भारी था।

सामने टीले के सब से ऊंचे पत्थर पर लाजवंती बेसुध अधमरी सी पड़ी दीनु और लल्ला को अपनी गोद में छिपाए दूध पीला रही थी उस ने अपनी रस्सी खूंटे समेत उखाड़ पत्थर के चारो ओर इस तरह लपेट रखी थी मानो रात में पानी के बहाओ से संघर्ष करती रही हो।

बच्चों को अपने पैरो में इस तरह फंसा रखा था मानो जैसे एक माँ खतरा देख अपने बच्चों को अपने आँचल मे छूपा कर सीने से चीमटा लेती है। बहाओ के खिचाव के कारण लाजवंती का शरीर रस्सी की रगड पडने पर खरौंचो से भरा हुआ था।

कमली और हरीया दौड़ते हूए लाजवंती के कदमों में गीर गए उन की आत्मा और मन उसे कोटि कोटि नमन कर रहे थे वह उसे प्यार और दुलार से सहलाने लगे स्पर्श महसूस कर लाजवंती ने अपना सीर उठाया उस की आँखो से आंसू निकल रह थे वह कमली की तरफ इस तरह देख रही थी मानो कह रही हो “माई मै भी तो माँ ही ठहरी तेरा लल्ला और मेरा लल्ला दोनों सलामत है”

 

स्वलिखित आसिफ शेख

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