कावेरी ने तीसरी बार बेटी को जन्म दिया है। अस्पताल में नर्स ने लेबर रूम से बाहर आकर बताया घर वालों को कि बेटी हुई है लेकिन, लेकिन क्या सिस्टर , बेटी विकलांग है एक हाथ कोहनी के नीचे से नहीं है।उसका एक हाथ आधा है ।सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे ।सास शारदा देवी कहने लगी इस बच्ची को सिस्टर आप ही रख लो मुझे नहीं चाहिए।मैं रख लूं मैं क्या करूंगी रखके।अब आप ही जानो सिस्टर हम तो नहीं ले जाएंगे घर शारदा देवी बोली। क्यों नहीं ले जाएंगी आजकल तो नक़ली हाथ पैर सब लग जाता है ।जब बड़ी हो जाएगी तो आप लोग इसका हाथ लगवा देना। यहां से तो ले जाना ही पड़ेगा । यहां हम लोगों नहीं रख सकते ।
कावेरी का भरा पूरा परिवार था।सास थी ससुर नहीं थे । कावेरी के दो बेटे बड़े थे और उनसे छोटी दो बेटियां थीं,ये तीसरी बेटी थी । अस्पताल से छुट्टी होने पर सब बड़े अनमने मन से बच्ची को लेकर घर आ गए। कावेरी ने बेटी का नाम शशि रखा । लेकिन घर में वह सबकी उपेक्षा का शिकार थी ।
कोई उसे गोद में न उठाता था बस ऐसे ही रोती रहती थी।सास शारदा देवी तो बस बैठे बैठे कुढ़ती रहती थी।उसका बिलख बिलख कर रोना भी दादी के मन को विचलित नहीं करता था।बस दिनभर कोसती कि न जाने कहां से ये बिना हाथ की बेटी पैदा हो गई। हमारे बेटा के जीवन में मुसीबत बनके । उपेक्षा का शिकार होते हुए भी जो भी उसके सामने से निकलता शशि उसको देखकर मुस्कुरा देती ।वो बिना भेदभाव के निश्छल बच्ची क्या जाने कि क्यों लोग उससे दूर भागते हैं ।
फिलहाल ऐसे ही शशि बड़ी होती रही ।बाहर जब भी खेलने जाती सभी बच्चे उसे हथकटी हथकटी कहकर चिढ़ाते फिर भी वो कुछ न बोलती बस कुछ आंसू बहा कर रह जाती। धीरे धीरे शशि बड़ी हो रही थी उसके समझ में आने लगा था कि मेरे एक हाथ नही है
अब वो अपने आपको बहुत अपमानित महसूस करने लगी थी । जहां भी जाती सब उसकी तरफ इशारा करके बातें करते हंसते । स्कूल में तो कुछ बच्चे यहां तक बोलते अपना कटा वाला हाथ दिखाओ बहुत शर्मिन्दा होती शशि घर आकर खूब रोती मां से शिकायत करती , मां समझा बुझाकर शांत करती । फिर शशि ने एक तरकीब निकाली फ्राक और स्कर्ट छोड़कर सलवार सूट पहनने लगी और चुन्नी से अपना हाथ छिपाए रहती । पढ़ने में शशि बहुत होशियार थी । कहते हैं न भगवान यदि इंसान में एक कमी देता है तो अन्य दूसरी खुबियों से पूर्ण कर देता है ।
हाई स्कूल अव्वल नंबर से पास किया शशि ने ।एक हाथ न होते हुए भी वो हर काम बड़ी खूबी से निपटा देती थी । घर में मां को छोड़कर भाई और बहनों एवं पिताजी के उपेक्षा का शिकार थी शशि। जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही शशि का रूप सौन्दर्य निखर कर आ गया था ।अब तो शशि समक्ष गई थी कि मेरे जीवन का मकसद शादी ब्याह करके घर गृहस्थी बसाना नहीं है ।कौन करेगा मुझसे शादी इसलिए वो अपना मन पढ़ाई लिखाई में लगाए रहती ।
इंटर की परीक्षा के बाद बैंक और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लग गई ।इन सबके जब फार्म भरे जाते तो वो पिता से या बड़े भाइयों से पैसों कि मांग करती तो वो कहते पहले हाथ आगे करके एक फोटो खिंचवाई और उसको फ़ार्म में लगाओ तो तुम्हें विकलांग कोटे से छूट मिलेगी ऐसे जबरदस्ती पैसा जाया करने से क्या फायदा ।ये सुनकर अंदर तक मन उसका घायल हो जाता था । मां की भी लाचारी थी उनके पास इतना पैसा नहीं होता था।कितनी चोट पहुंचती थी जब पिता और भाई कहते थे कि विकलांग कोटे से फार्म भरो ।
बैंक की तैयारी में जुट गई थी शशि कि आगे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े ।उसको लिखित परीक्षा देनी थी जिसका सेंटर शशि की बड़ी बहन के यहां सागर में मिला । शशि के जीजा जी भी बैंक में थे । शशि वहां गई पेपर देने । वहीं से उसकी किस्मत का बंद दरवाजा खुलने वाला था ।
शशि के जीजा जी जिस बैंक में थे उस बैंक का मैनेजर शशि के जीजा जी अनिल के बहुत अच्छे दोस्त थे पंकज दीक्षित । पंकज की पत्नी की किसी एक्सीडेंट में मौत हो गई थी उनके एक तीन साल की बेटी थी ।उसके देखभाल के लिए बहुत परेशानी आ रही थी । पंकज एक ऐसी लड़की की तलाश में थे जो जरूरत मंद हो और बच्ची की देखभाल कर सके ।पंकज ने अपनी ऐ इच्छा शशि के जीजा जी को भी बताई थी ।
पंकज दीक्षित का शशि के जीजा जी के घर आना जाना था । शशि के जीजा जी के दिमाग में ऐ बात आई कि क्यों न शशि के लिए पंकज से बात करी जाए ।
शामको पंकज को खाने पर बुलाया गया और शशि और पंकज को आपस में मिलवाया गया ।देखने सुनने में सुंदर तो थी ही शशि ,पंकज को पसंद आ गई और वो शादी को तैयार हो गए । हालांकि पंकज के माता-पिता नहीं तैयार हो रहे थे जाति का मसला आगे आ रहा था । शशि की बहन ने घर पर मां को बताया तो पहले तो कावेरी और पति थोड़ा झिझके लेकिन दामाद के आश्वासन पर तैयार हो गए ।
फिर छोटे से रूप में पंडित बुलाकर शादी कर दी गई ।और शादी के बाद तो शशि के जैसे भाग्य ही खुल गए । पैसों में खेल रही थी शशि । पहली पत्नी की बेटी को बहुत अच्छे से संभाला शशी ंंने , अपने अच्छे व्यवहार से पंकज के माता-पिता का भी दिल जीत लिया ।उसके बाद शशि ने एक बेटे को जन्म दिया ।एक भरा पूरा परिवार हो गया बेटी तो थी एक बेटा और हो गया।
आज बच्चे पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी कर रहे हैं । बेटी परिधी की शादी हो गई है वो पति के साथ अमेरिका में हैं ।और बेटा आशीष भी एम बीए करके अमेरिका में हैं ।
अब पंकज दीक्षित रिटायर हो और आजकल अमेरिका में बच्चों के पास है ।एक खुशहाल परिवार है ।अब देखकर लगता ही नहीं है कि ये वही शशि है घर से लोगों से उपेक्षित ।
अब जब भी मिलती है कहती हैं मुझे तो अपनी किस्मत पर नाज़ है ,और क्यों न करूं एक कमी थी थी ईश्वर ने तो उसके बदले में इतना कुछ दे दिया मैं तो अपनी किस्मत पर गर्व करती हूं ।और उस ईश्वर का लाख लाख धन्यवाद करती हूं ।
धन्यवाद
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
11 जून
#क्यूं ना करूं अपनी किस्मत पर नाज़
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