आज स्मिता बड़ी खुश थी और हो भी क्यों ना आज वह सी ए जो बन गई थी कुर्सी पर बैठी बैठी अचानक 20 वर्ष पूर्व चली गई वह सोचने लगी
वह 4 वर्ष की थी, पापा बाजार घूमा कर जब लाऐ, क्या देखते हैं घर के सामने भिड
लगी हुई है अचानक पापा उसे गोद से उतरकर भीतर भागे। घर के अंदर का नजारा बहुत हृदय विदारक था,
करंट लगने से मां की मौत हो चुकी थी। घर में दादा दादी सब बहुत रो रहे थे। मेरी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं था
सब कुछ इतना अचानक हुआ जब शमशान से आने के बाद सबको मेरी याद आई बच्ची कहां है।
मुझे बगल वाले पप्पू चाचा घर ले गए थे, मैं उन्हीं के यहां खाना खाकर बच्चों से खेलने लगी। मैं इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ थी कि मेरा लाड प्यार दुलार हमेशा के लिए खो गया।
2 वर्ष दादा दादी ने मुझे बहुत प्यार किया मगर उसके बाद बाबा दादी के दबाव में पापा ने दूसरा विवाह किया।
अब हर एक के सामने एक प्रश्न था सौतेली मां बच्ची को कैसा रखेगी नयी मां ने मुझे बहुत प्यार से रखा,
हर आने वाला मुझे एक ही प्रश्न करता है मां का व्यवहार कैसा है इसी प्रश्न के साथ में बड़ी होती गई।
मैं पढ़ने में बहुत कमजोर थी हां आने जाने वाला मुझे अपनी मां के विरोध में भड़कते एक दिन मैंने मां से पूछा सब मुझसे ऐसे प्रश्न क्यों करते हैं।
मां कहने लगी इस तरह के फालतू प्रश्नों पर ध्यान नहीं देना है तुम्हें आगे बढ़ाना है इसलिए सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो फालतू बातों से पढ़ाई से ध्यान बट जाएगा।
मां शादी से पूर्व एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी। उनका समझने का तरीका बहुत अच्छा था
उनकी समझाइस और मेरा उनका कहना मानना रंग लाया जिस लड़की का हायर सेकेंडरी मुश्किल था वह आज से बन गई।
मैं सोने लगी मैं अपनी किस्मत पर नाज क्यों ना करूं
जिस लड़की की ममता बचपन में छिन गई, उसे दादा दादी का अथाह प्यार मिला। फिर सौतेली मां जिसके नाम से ही रूह कहां पर जाती उनके द्वारा
लाड प्यार ममता लूटाना। पढ़ा लिखा कर मुझे सी ए बनाना, पिताजी द्वारा यह कहने पर मैं कॉलेज का खर्च वहन नहीं कर सकूंगा,
अपने बैंक बैलेंस को पिताजी को थमाना, मुझे मां का प्यार देने के लिए खुद का मां नहीं बनना,
यह मेरी अच्छी किस्मत ही तो थी जिस पर मैं आज बहुत नाज करती हूं
धन्यवाद
उषा विजय शीशीर खंडेलवाल
#क्यों ना करूं अपनी किस्मत पर नाज