दुलारी को गांव से आए करीब एक साल होने को आरहा है,इस एक साल में कितना कुछ बदल गया है कि उसे समझ नही आता कि धन्यवाद किसका करे अपनी किस्मत का या रशियन बहू का।जिसके आने से अड़ोस पड़ोस के सभी लोगों ने उसकी रशियन बहू को देख कर कहा था कि
दुलारी बिचारी की तो किस्मत ही खराव है पहले पति कैंसर से ग्रस्त हो गए और काफ़ी इलाज कराने के बाद भी बच न सके अब बेटा पढ़ लिखकर अपनी पसंद की रशियन लड़की से शादी करके घर ले आया।जिसका नाम स्वेतलाना था।
ये विदेशी बहू इस सीधी सरल स्वभाव की दुलारी का क्या मान सम्मान करेगी।अपने देश की होती तो कम से कम गलत व्यवहार करके अलग रहने को मजबूर कर देती।लेकिन इसकी तो न खानपान हमारे जैसा है न पहनावा।ये कैसे रह पाएगी दुलारी के संग।और तो और बोलचाल भी तो अलग है।
लेकिन उसी रशियन बहू जिसका भारतीय नाम दुलारी ने स्वेता रख लिया है,दुलारी के साथ ऐसे घुल-मिल गई है जैसे दूध में चीनी।और तो और घरेलू सी दुलारी को स्वेता ने कामकाजी महिला बना दिया है।
किस्सा कुछ लम्बा है लेकिन पाठकों की जिजिज्ञासा दूर करने के लिए पूरा बताना बहुत जरूरी है।चार साल पहले दुलारी का बेटा सपन जब मास्को पढ़ने के लिए गया था, तो दुलारी ने अपने कुछ खेत बेच कर उसकी पढ़ाई के लिए पैसे जुटाए थे इस आस में कि पढ़ लिख कर जब लौटेगा और कोई अच्छी सी नौकरी करेगा
तो सब बसूल हो जायगा।बैसे भी सपन के अलावा अब उसका था ही कौन। हांलांकि खेत बेचने पर नाते रिश्तेदारों ने बहुत समझाया था कि क्यों तू अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार रही है।सपन के विदेश से वापस आने की उम्मीद मत करना ।वहां जाकर अधिकांश बच्चे अपनी मां को भूल जाते है और वापस आना तो दूर वहीं सैंटिल हो जाते है।
लेकिन दुलारी को अपनी परवरिश व दिए हुए संस्कारों पर पूरा भरोसा था।कि मेरा सपन वापस जरूर लौटेगा।हां बहीं शादी करके विदेशी बहू ले आऐंगा ऐसा नहीं सोचा था।
स्वेता से जान पहचान सपन की मास्को जानें के कुछ दिनों बाद ही हो गई थी। स्वेता वहां भारतीय मसालों की दुकान चलाती थी सपन अकसर वहां से अपने लिए मसाले लेने जाया करता था। स्वेता को रशियन भाषा के अलावा टूटी फूटी हिन्दी भी आती थी।एक दिन जब सपन किसी विशेष मसाले कोलेने गया तो स्वेता ने पूछा कि क्या आप इंडियन हो, क्योंकि वे लोग ही अपने खाने में इस तरह के मसाले का प्रयोग करते हैं।
सपन के हां कहने पर वह खुश हो गई,सपन ने पूछा,तुमने ये सब कैसे जाना?
वो क्या है कि कई पीढ़ियों पहले मेरे दादा जी मसालों का बिजनेस करने इंडिया से यहां आये थे, दादाजी तो अब नही हैं मैं अपनी दादी के साथ यहां रहती हूंहै फिर मेरे पिता ने यह बिजनेस सम्हाला,लेकिन कुछ दिनों पहले मेरे मां-बाप की एक दुर्घटना में डैथ हो गई,बस तभी से मैं इस दुकान पर बैठने लगी।मैं व मेरी दादी अब साथ में रहते हैं।दादी के हाथ में क्रोशिया का व बुनाई का बहुत हुनर है दादी ने मुझे भी यह सब सिखा दिया है खाली समय में मै भी यह सब वनाती रहती हूं।
मुझे इंडिया जानेगा बहुत मन करता है बहांके रीति-रिवाज जिनके बारे में मैंने अपने मां-बाप से सुना है,बहुत अच्छे लगते हैं।दादी कहती हैं कि तुम किसी इंडियन से शादी करना वहां इन सब हस्त कला की बहुत कद्र है।साथ ही इस हुनर से तुम पैसा भी कमा सकती हो।
क्या ऐसा मुमकिन है,हां क्यों नहीं तुम चाहो तो मैं इसमें तुम्हारी मदद कर सकता हूं।
सच क्या ऐसा मुमकिन है,क्यों कि दादी की भी अब उम्र हो चली है, दादी मुझे किसी सुयोग्य हाथों में सौंप कर निश्चित होना चाहती है।
क्या मैं तुम्हारी दादी से मिल सकता हूं।हां हां क्यों नहीं ,तुम से मिल कर दादी बहुत खुश हो जायगी दादी कभी कभी इंडियन मसाला डालकर बहुत अच्छी डिश बनाती है।कल सन्डे है मेरी दुकान बन्द रहती है यदि आप भी फ्री होतों मैं दादी से मिला सकती हूं।
स्वेता घर आकर सिर्फ सपन के बारे में ही सोचती रही,दरअसल वह सपन को चाहने लगी थी,लेकिन आगे बढ़ कर कुछ कहने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी।यही हाल कुछ सपन का भी था, उसे भी स्वेता अच्छी तो लग रही थी लेकिन मां की रायजाने बिना वह आगे कोई निर्णय नहीं लेना चाहता था।
स्वेता की दादी से मिलकर सपन को बहुत अच्छा लगा क्योंकि उसकी दादी ने स्वेता की मदद से सारी इंडियन डिश वनाई थी ,जैसे आलू परांठा, दही भल्ले,पनीर कोफ्ते।
सपन ने काफी अरसे बाद इतना स्वादिष्ट खाना खाया था, साथ ही दादी से हिन्दी में बात करके बहुत अपनापन महसूस हुआ।
सपन ने फोन करके मां को स्वेता व उसकी दादी के बारे में बताया साथ ही यह भी बताना नही भूला कि बह स्वेता को पसंद करने लगा है और उससे शादी करना चाहता है।
सपन कीमांने स्वेता के घर परिवार के बारे में जानकारी ली तो पता लगा कि काफ़ी सालों पहले हमारे गांव से कुछ लोग व्यापार करने मास्को गये थे ,कहीं यह वही परिवार तो नही है।सपन ने मां से कहा स्वेता की दादी से बात करके बताता हूं।
बातचीत करने पर पता लगा कि सपन के पेरेंट्स व स्वेता के दादा दादी किसी समय पड़ोसी हुआ करते थे।
फिर सपन की मां ने स्वेता से शादी करने की खुशी खुशी इजाजत दे दी।हां शादी यहां इंडिया में ही होगी। अतः तुम स्वेता व उसकी दादी को लेकर इंडिया आजाओ ।मैं तव तक पंडित जी से शादी की तारीख तय करती हूं,और शादी की शेष तैयारियां भी करती हूं।
सपन , स्वेता व उसकी दादी इंडिया आकर बहुत खुश थे,एक सप्ताह के अन्दर सपन व स्वेता की शादी हो गई।सपन ने स्वेता की दादी से मनुहार की कि यदि आप हमारे साथ रहेंगी तो मुझे भी दादी का प्यार मिलेगा और घर में किसी बड़े के रहने से रौनक रहेगी व उनके अनुभवों से काफी कुछ सीखने को मिलेगा। थोड़ी सी ना-नुकर के बाद दादी साथ रहने को राजी हो गई।
दुलारी ने स्वेता को धीरे धीरे हिन्दी बोलना सिखाया, स्वेता ने जब अपने हाथ से बने क्रोशिया की चीजें दिखाई तो,दुलारी बहुत खुश हुई, उसने कहा मुझे भी इन चीजों को बनाने का बहुत ही शौक रहा है,और अभी भी बना रही हूं, परंतु समझ नही आरहा किइन चीजों का क्या किया जाय।इतनी मेहनत व लागत लगा कर बनाई हुई चीजें किसी उपयुक्त हाथ में पहुंचे तो चार पैसे भी मिलेंगे और आगे बनाने का जोश भी बना रहेगा।
स्वेता बहुत ही समझदार व सुलझी नेचर की थी।उसने कहा मैं अब आप अकेली नहीं हैं हम दोनों मिलकर ग्यारह हैं तो क्यों न एक बुटीक खोलें जहां इन चीजों को सेल के लिए रखें।बुटीक का नाम रहेगा, दुलारी हस्त कला बुटीक।
अरे वाह बहू तुमने तो इतनी जल्दी इतना सबकुछ सोच लिया, परंतु मुझे तो सिर्फ बनाना आता है,सेल करने का काम में सम्हाल लूंगी स्वेता ने कहा,और फिर दादी भी तो है वह भी बुनाई व क्रोशिया मेंएक से एक सुन्दर डिजाइन बना लेती है। मुझे यह सब दादी ने ही तोसिखाया है।
सपन से बातचीत करके कुछ दिनों में ही बुटीक खुल गया। दोनों सास ,बहू केतालमेल से खूब अच्छा चलने लगा।दुलारी जी आज मन में सोच करबहुत खुश हैं कि क्यों#न करू अपनी किस्मत पर नाज़ व विदेशी बहू पर नाज़ जिसने अपनी सूझबूझ से मुझ जैसी घरेलू महिला को कामकाजी का दर्जा दिला दिया। भगवान ऐसी सुघड़ व चतुर बहू सबको दे जिससे किस्मत पर नाज़ किया जा सके।
स्वरचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता
नईदिल्ली