“ये अदालत एक घंटे तक के लिए मुल्तवी की जाती है ।” जज के इतना बोलते ही शांत अदालत मे चहल पहल शुरु हो गई। दोपहर के डेढ़ बजे थे लंच ब्रेक था। जज अपनी कुर्सी छोड़ जा चुके थे। कुछ लोग बाहर आ चाय पी रहे थे कुछ आस पास के स्टॉल से कुछ कुछ लेकर खा रहे थे। पर मीनाक्षी तो अपनी सीट से हिली भी नही थी । उसने तो शायद जज के अंतिम शब्द सुने भी नही थे ।वो तो यहां होकर भी यहां नही थी ।
दोस्तों कहानी को आगे बढ़ाने से पहले मैं आपको बता दूँ यहां मीनाक्षी और उसके पति केशव के तलाक का मुकदमा चल रहा है। अभी लंच ब्रेक से पहले दोनो के वकीलों ने खूब जिरह की है खूब आरोप प्रत्यारोप किये है। अब भई वकील का तो पेशा ही यहीं है इसमे क्या गलत और क्या सही इससे उन्हे क्या मतलब । बहरहाल आपको मीनाक्षी के पास ले चलते है और देखते है वो क्या सोच रही है।
कितना सुखी संसार था मेरा प्यार करने वाला पति …अच्छा घर बार सब सुविधाएं …नही नही सुविधाएं तो सिमित थी पर प्यार असीमित था जो थोड़ी बहुत असुविधाएं थी भी उसे केशव का प्यार ढक देता था। कितना खुशनुमा दिन था वो जब केशव ने उसे प्रपोज़ किया था कॉलेज का लास्ट दिन था। सोचते सोचते मीनाक्षी पांच साल पीछे पहुँच गई।
” मीनाक्षी कल हम सब अपनी अपनी मंजिल की तलाश मे एक दूसरे से दूर हो जाएंगे …तब ना ये कॉलेज होगा हमारे साथ , ना दोस्त ना दोस्तों की महफिले और…! ” केशव इतना बोल चुप हो गया।
” और क्या केशव ?” मीनाक्षी ने उससे सवाल किया ।
” कुछ नही बस ऐसेही !” केशव जबरदस्ती की हंसी हँसते हुए बोला जबकि उसकी आँखे उसका साथ नही दे रही थी देती भी कैसे वो नम जो थी।
” झूठ मत बोलो केशव कल तुम्हारी बाते सुनने को मैं नही होंगी इसलिए जो कहना है बोल दो ऐसा ना हो तुम्हे कल को अफ़सोस हो कि काश मैने बोल दिया होता !” मीनाक्षी तड़प कर बोली।
” मीनाक्षी वो …वो …!” केशव हकलाने लगा।
” वो क्या केशव बोलो ना !” मीनाक्षी ने ये कहते हुए केशव का हाथ पकड़ लिया। यही क्षण काफी थी केशव के लिए अपने दिल की बात कहने का।
” आई लव यू मीनाक्षी !” अचानक केशव ये बोल इधर उधर झाँकने लगा इधर मीनाक्षी को तो यकीन नही हो रहा था जिस बात को सुनने को वो दो साल से तरस रही थी वो आज केशव ने यूँही बोल दी। जी हां मीनाक्षी पिछले दो साल से केशव से प्यार करती है किन्तु कभी बोलने की हिम्मत नही हुई उसकी सहेलियों ने तो उसे बहुत कहा कि तू ही इज़हार कर दे। पर मीनाक्षी चाहती थी इज़हार केशव करे इसलिए वो सही दिन का इंतज़ार कर रही थी और आज जब केशव ने इज़हार कर दिया तो मीनाक्षी को समझ नही आ रहा था क्या जवाब दे वो । उसने शर्मा कर नज़र नीची कर ली थी केशव भी धड़कते दिल से मीनाक्षी कि प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहा था।
” मीनाक्षी क्या तुम भी मुझे प्यार करती हो अगर नही तो प्लीज इस बात को यही भूल जाना और हमारे बीच के दोस्ती के रिश्ते को मत तोड़ना क्योकि मैं तुमसे बात किये बिन नही रह पाऊंगा !” केशव नज़रे झुका कर बोला।
” बुद्धू ये बात सुनने को तो मेरे कान कबसे तरस रहे थे पर तुम थे कि बोल ही नही रहे थे और अब जो बोले हो तो वो भी ऐसी लाचारी से !” मीनाक्षी उसकी बात सुन हँसते हुए बोली।
” मतलब !” केशव आँखे झपकाता हुआ बोला।
” मतलब मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ बुद्धू !” मीनाक्षी उसका हाथ पकड़ते हुए बोली।
” ओह्ह !” खुशी की अधिकता मे केशव ने मीनाक्षी को गले लगा लिया। तभी वहाँ तालियों की आवाज़ गुंज उठी और मीनाक्षी शर्मा कर केशव से अलग हो गई। दोनो के दोस्त उन्हे बधाई देने लगे और केशव तथा मीनाक्षी दोस्तों से घिरे हुए भी एक दूसरे को चोर नज़रो से देख रहे थे और जैसे ही दोनो की नज़रे मिलती दोनो निगाह झुका लेते।
तो ये थी केशव और मीनाक्षी के प्यार और इजहार की शुरुआत …जी हाँ अभी तो उन्होंने प्यार के पायदान पर कदम भर रखा है अभी तो मंजिल बहुत दूर है …क्योकि जनाब ये इश्क का दरिया है जिसे पार करना इतना आसान नही अच्छे अच्छे तैराक हार मान लेते है यहाँ और यहाँ तो मीनाक्षी और केशव के स्टेटस मे जमीन आसमान का अंतर था जहाँ मीनाक्षी के पिता कई फैक्ट्रियों के मालिक थे और केशव के पिता की एक कपड़े की दुकान थी…। पर क्या करे प्यार अंतर देख थोड़ी होता है ।
ये अंतर केशव और मीनाक्षी की जिंदगी मे क्या गुल खिलायेगा …क्या उनका प्यार परवान चढ़ेगा या अमीरी गरीबी के बीच दम तोड़ देगा।
कर्मशः ……..
संगीता अग्रवाल