क्या औरत आज भी आज़ाद है – संगीता अग्रवाल

” नमस्ते भाभी कैसी है आप ?” बाजार में अचानक एक परिचित आवाज सुन मैं रुक गई मुड़ कर देखा तो अपने पुराने मोहल्ले में रहने वाली रति थी।

” अरे रति तू कैसी है तू और ये क्या तूने शादी कर ली !” मैंने आश्चर्य से उसकी मांग में भरे सिंदूर को देख कर कहा।

” हां भाभी और अब मैं यहीं रहती हूं मम्मी के घर पर नही !” रति शर्माते हुए बोली।

दोस्तों इससे पहले की मैं रति के बारे में और जानूं आपको रति की पिछली जिंदगी के बारे में बताना जरूरी है। रति एक विधवा है जिसके दो बच्चे हैं पति की मृत्यु के बाद उसके ससुराल वालों की उपेक्षा से आहत हो वो अपने मायके आ गई थी। उसका पंद्रह साल का एक बेटा और बारह साल की बेटी है। पड़ोस में रहने की वजह से रति का मेरे घर आना जाना था। मायके आने के बाद उसने असिस्टेंट नर्स का कोर्स कर नौकरी शुरू कर दी थी जिससे मायके वालों पर बोझ ना बने और अपने बच्चों को पाल सके वैसे भी उसके मायके वालों की हालत भी कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी। कुछ समय बाद हमने उस मोहल्ले का किराए का घर छोड़ दूसरी जगह अपना घर ले लिया। तबसे रति को आज देख रही थी सुहागन के रूप में। उसे खुश देख अच्छा लगा साथ ही उत्सुकता भी हुई उसने किससे शादी की है।

बातों बातों में पता लगा वो किराए का घर ढूंढ रही है …मेरे घर में दो कमरे थे जिसके लिए हम किरायेदार ढूंढ रहे थे रति अपनी जानकर थी ही इसलिए मैने उसे आकर कमरे देख जाने को कहा। वो अगले दिन आने का वादा कर मेरे घर का पता ले रुखसत हो गई।

” भाभी मुझे घर पसंद है हम कल ही शिफ्ट हो जाते हैं बच्चे अभी मम्मी के पास ही रहेंगे !” अगले दिन रति घर देख बोली।




” ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी पर ये बताओ तुमने शादी कैसे और कब की  ?” मैने उससे पूछा।

” भाभी वो क्या है ना कि मैने तो अपनी जिंदगी अपने बच्चों को समर्पित करने का निश्चय किया था पर ये मेरे पति है ना राज ये जिस अस्पताल में मैं नौकरी करती हूं उसके गार्ड है बहुत अच्छे आदमी है रोज हाई हैलो होती थी धीरे धीरे एक दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा पर फिर भी मैं अपनी हद जानती थी क्योंकि मैं विधवा ऊपर से दो बच्चों की मां और राज कंवारा पर उसने मुझे अपने प्यार का यकीन दिलवाया मेरे बच्चों को अपनाने का भरोसा दिलाया और हमने शादी कर ली !” रति बोली।

” तुम खुश हो यही सबसे अच्छी बात है कल तुम्हारे राज से भी मिल लेंगे !” मैं बोली थोड़ी देर बाद रति चली गई ।

अगले दिन उसने मेरे यहां शिफ्ट भी कर लिया।उसने राज से मुझे मिलाया एक नजर में मुझे वो ठीक ही लगा पर रति और उसमे उम्र का अंतर था क्योंकि रति के बच्चे भी काफी बड़े हो चुके थे। खैर उन्होंने मेरे यहां रहना शुरू कर दिया मेरे घर में सभी को वो लोग ठीक ही लगे। धीरे धीरे रति को रहते हुए चार महीने हो गए वो अपने बच्चों को बीच बीच में यहां ले आती फिर मां के पास छोड़ आती।

एक दिन ऊपर शोर की आवाज आई ऐसा लगा राज और रति लड़ रहे हैं पर पति पत्नी के बीच का मामला होने के कारण हमने चुप्पी लगा ली। उस दिन राज ने शायद रति पर हाथ भी उठाया था क्योंकि उसके गाल इसकी चुगली खुद कर रहे थे। मुझे बहुत अजीब लगा ये पर मैने कुछ कहा नहीं।

फिर लड़ाइयां रोज रोज होने लगी राज ने नौकरी छोड़ दी और सारा दिन घर में पड़ा रहता रात को पीकर वापिस आता रति अब भी काम पर जाती थी। एक दिन लड़ाई की आवाज के साथ रति के रोने की आवाज भी आने लगी तो मुझसे रहा नही गया मैं ऊपर गई तो देखा राज रति को बुरी तरह पीट रहा है साथ ही गाली देते हुए उसे कह रहा था ” दूसरों की जूठन को मैने अपनी थाली में इसलिए नही सजाया की तू मेरे सिर पर नाचे कमाती है तो एहसान थोड़ी करती है मैने तुझे नाम दिया तेरे बच्चों को अपनाया और तू मुझे ही आंख दिखाती है जा नही करूंगा नौकरी तुझे जो करना है कर !”

” क्या हो रहा है ये सब !” मैं रति को बुरी तरह पिटते देख खुद को रोक न पाई और उनके बीच चली गई।




” भाभी मुझे बचाओ !” रति भी मुझे देख मेरे पास भाग आई। राज मुझे देख वहां से चलता बना।

” क्यों सह रही हो ये सब तुम?” मै रति से बोली।

” भाभी गलती हो गई मुझसे जो इससे शादी कर बैठी पर अब नही !” रति रोते हुए बोली।

” चलो मेरे साथ पुलिस में कंप्लेन लिखवाएंगे इस जानवर के खिलाफ !” मैं रति का हाथ पकड़ कर बोली।

” नही भाभी मैं अभी मम्मी के घर जा रही हूं मुझे कोई फैसला करना है अब मैं अन्याय नही साहूंगी क्योंकि इसके साथ नही रहना मुझे !” रति अपना सामान बैग में भरते हुए बोली। मैने उसे बहुत समझाया राज के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने को पर वो न मानी और सामान ले चली गई।

हमने निश्चय कर लिया था राज से घर खाली करवाने का पर वो भी रात को घर नही लौटा अगले दिन भी वो नही आया । हमे लगा डर कर भाग गया शायद पर नही तीसरे दिन रति और वो दोनो वापिस आ गए।

” रति तुम फिर इस इंसान के साथ वापस आ गई ?” मैं उसे देख गुस्से में बोली राज हंसता हुआ ऊपर चढ़ गया।

” भाभी कैसा भी सही मेरा पति है उसने मुझसे वादा किया है अब न शराब पिएगा ना हाथ उठाएगा मुझपर!” रति बोली।

” पर रति उसने जो तुम्हे जानवर सा पीटा उसके बाद भी तुमने उसे माफ कर दिया तुम पत्नी हो उसकी गुलाम नही !” मैं बोली मुझे उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था।

” भाभी माफ ना करती तो क्या करती अकेले जिंदगी नही बितती है और मां बाप अब घर में नही रखना चाहते क्योंकि अपनी मर्जी से जो की थी शादी तो अब जैसा भी है राज ही मेरा सब कुछ है !” रति बोली और ऊपर चली गई ।

मैं उसे जाते देख सोचने लगी देश भले अंग्रेजो की दासता से कबका आजाद हो गया पर क्या एक औरत आजाद हुई है एक मर्द की दासता से कुछ मर्द अभी भी औरत को अपनी जागीर समझते है उसे जानवरों की तरह पीटते है पर औरत घर बचाने के नाम पर अन्याय सहन करती रहती है पति के नाम के मंगलसूत्र को अपने गले में पड़ी रस्सी बना लेती और सब सहती जाती।

कुछ समय ठीक रहा सब पर फिर राज ने वापिस रति को मारना पीटना शुरू कर दिया कभी बिना पूछे मायके जाने के नाम पर कभी देर से घर आने के नाम पर कभी खाना अच्छा ना बनाने के नाम पर और कभी पैसे ना देने के नाम पर। क्योंकि शायद रति की कमाई के लिए उसने शादी की थी प्यार के लिए नही। हमने उन्हें घर खाली करने का नोटिस दे दिया है क्योंकि अपने घर में ये सब कलेश हम नही चाहते। रति चाहती तो मैं उसकी मदद कर सकती थी पर जब उसे ही पति की दासता स्वीकार है हर अन्याय सह वो उसी के साथ रहना चाहती है तो कोई क्या कर सकता है।

दोस्तों ये एक सच्ची कहानी है बस पात्रों के नाम बदल दिए हैं मैने। मेरे दिमाग में अभी भी बहुत से प्रश्न हैं जिनका जवाब शायद किसी के पास नही।

कब तक शादी के नाम पर जुल्म सहेगी औरत?

कब तक जुल्म सहकर भी चुप रहेगी औरत ?

क्यों कुछ औरते खुद अपने लिए स्टैंड नही लेती?

खुद कमाने के बावजूद भी क्यो दासता सहती है औरत ?

क्यो अन्याय सहना ही कुछ औरतों की नियति बन जाती है?

आज आजादी के इतने साल बाद भी औरत आजाद है?

आपके पास जवाब हो तो जरूर दीजियेगा !

#अन्याय

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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