सुहानी बेटा देख ये साड़ियां कैसी है? कहती हुई उसकी मॉं ने चार पांच साड़ियां उसके सामने फैला दी। बेटा तुम्हारी शादी है और तुम ही मुंह फुलाकर बैठी हो? घर में सबकुछ मुझे ही देखना है ना बेटा तेरे भाई भी अभी छोटे हैं । तुम मदद नहीं करोगी तो मैं अकेले कैसे संभालूं? तुम्हारे पापा होते तो ये सब नहीं होता क्यों नहीं समझ रही।
क्या समझूं मां आप ही बताओ ना? सब के मुंह से बस यही सुन रही हूं मेरा कन्यादान कौन करेगा? माँ जब पापा हमें छोड़कर गये हम चारों कितने छोटे थे। मुझे आज भी याद है जब मैं छोटी थी हास्टल में पढ़ती थी छुट्टियों में जब घर आई तब पता चला पापा का एक्सिडेंट हुआ और वो हमारे बीच नहीं रहे। हमारा ये दुःख कम नहीं था फिर भी लोगों के मुंह से दबी जुबान से सुनाई दिया अब सुहानी का क्या होगा ?कहाँ पढ़ेंगी ?
माँ तब तुमने और छोटे चाचा ने बोला जहां पढ़ती है वहीं पढ़ेंगी। ये उसके पापा का सपना है। फिर मां आज जब मेरी शादी होने वाली तुमने खुद खोज कर लड़का पसन्द किया सब कुछ तुम कर रही हो तो ये कन्यादान में क्या दिककत? मैंने सुना दादा जी नाना जी से बात कर रहे थे आप ही बताइए समधी जी सुहानी का कन्यादान कौन करेगा?
घर में इतने सारे लोग हैं मां फिर भी सब चुप थे। दादा जी बोले बड़े चाचा से करवा दिया जाये? मां नाना जी पता क्या बोले आप जैसा उचित समझे करे समधी जी अब हम भी क्या बोले।
शादी की तैयारी पूरे जोर शोर से चल रही थी। सुहानी के पापा का सपना था इकलौती बेटी की शादी जब भी करूंगा धूमधाम से बस मां ने ये बात गांठ बांध ली और जितना कर सकती कर रही थी। तीन छोटे भाई भी बस ये सोच रहे थे पापा नहीं है तो लोग कोई बात न बनाएं शादी अच्छी तरह हो जाए। पर पेंच तो कन्यादान को लेकर अब भी अटका हुआ था।
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सुहानी सोच रही थी जिन लोगों ने आज तक हम भाई बहनों के लिए कुछ किया नहीं उनके आशीर्वाद के साथ शादी कैसे कर ली। वो दादा जी के पास गई शादी के घर में भीड़ तो हो चुकी थी ऐसे में बात करना मुश्किल तो था पर ज़रूरी भी। दादा जी ने पूछा क्या बात है सुहानी कुछ बोलना है? जी दादा जी मुझे आप से और नाना जी से बात करनी है। दादा जी ने बोला अच्छा चलो दूसरे कमरे में चलकर बात करते।
वो तीनों दूसरे कमरे में आ गये तो दादा जी ;बोले हां बेटा बोलो क्या बात है?
दादा जी आपलोग मेरे कन्यादान की बात कर रहे क्या आपने एक बार भी मुझे पूछा मैं क्या चाहती? मेरी मॉं कन्यादान क्यों नहीं कर सकती मुझे बतायेगे? मैंने मां से पूछा पर वो चुप रह जाती। दादा जी बोले बेटा हमलोगों में कन्यादान पति-पत्नी साथ मिलकर करते हैं ऐसे में आपकी मम्मी कैसे कर सकती? जब आपकी दादी गुजर गई तो आपकी बुआ की शादी उनके चाचा ने करी। फिर आपको आपत्ति किस बात पर हो रही?
दादा जी मुझे सब समझ आ रहा पर मुझे आप ही बताइए जो बड़े चाचा ने कभी हमारा हाल न जाना उनसे मैं कैसे उम्मीद करूं कि वो मुझे आशीर्वाद और प्यार से विदा करेंगे? मुझे ये भी पता है मां को आपलोग किसी भी रस्मों रिवाज में शामिल नहीं होने देंगे जबकि उससे ज्यादा प्यार कौन दे सकता है? बस आप दोनों से विनती करतीं हूँ
मेरी मां को मेरे आस पास ही रहने दे पापा नहीं है इसकी सजा वो काट रही है मैं अपनी शादी में उसको दूर करके और दुःख नहीं देना चाहती। रही बात कन्यादान की तो आप बस इतना कर दे छोटे चाचा ने जिन्होंने हमेशा हमारा साथ दिया है अगर वो मेरा कन्यादान कर सकते है तो मुझे खुशी होगी। मुझे पता है छोटे चाचा से बड़े और दो चाचा है पर बात अगर कन्यादान की है तो मेरा कन्यादान छोटे चाचा से करवा दीजिए।
दादा जी और नाना जी ने विचार किया और बोले ठीक है बेटा जिसमें तुम्हारी खुशी। सुहानी भी अब खुश हो गई। पूरी शादी में उसकी मां उसके साथ रही जब कन्यादान का वक्त आया तो दादा जी ने बोला छोटे तुम दोनों सुहानी का कन्यादान करो । छोटे चाचा और चाची ने बहुत प्यार से मुझे देखा और ऐसा लगा
उनके आशीर्वाद के बिना मेरी विदाई अधूरी रह जाती। जब पंडित जी ने मेरा हाथ चाचा चाची के हाथ में रखा तो चाचा जी ने मां से बोला भाभी आप भी आइए ये हक तो आपका है। मुझे ऐसा लगा जो बात मैं कब से बोलना चाहती थी चाचा जी ने मेरी ये इच्छा भी पूरी कर दी। दिल ही दिल में चाचा का धन्यवाद करते मेरी आंखों ने बहना चालू कर दिया। मैं खुश थी जैसे भी हुआ मेरा कन्यादान मेरी मां के हाथों भी सम्पन्न हुआ।
जीवन में बहुत लोगों के साथ ऐसी बात होती है जिनको समय के साथ बदलना चाहिए।ये एक सच है जिसको आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ । उम्मीद है कहानी आपको पसंद आये। आपके प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
रश्मि प्रकाश