कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता है। – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

   रोगियों का गांवों में इलाज करके एक सप्ताह बाद जब चतुर्भुज एक युवती के साथ अपने घर में दाखिल हुआ तो उसकी पत्नी सौम्या के मन में कुछ अनहोनी की आशंका दस्तक देने लगी। उस वक्त वह खामोश रहते हुए अपने पति को सवालिया नजर से देखा तो उसने कहा, “यह  लड़की पेशेंट है इस तरह आंँखें फाड़ कर क्यों देख रही हो?..

इसके माता-पिता नहीं है इसके चाचा चाची ने इसे घर से निकाल दिया है.. बेचारी बहुत कष्ट में है इसलिए इसका इलाज करने की नीयत से अपने घर मैं ले आया हूं, कहीं रहने का ठौर-ठिकाना नहीं है इसको.. यह तुम्हारी शरण में रहेगी अपनी क्षमता के अनुसार कुछ घरेलू काम भी कर देगी। इसकी बीमारी भी ऐसी है कि लंबे समय तक इलाज करने के बाद ही ठीक होगी”

   चतुर्भुज झोलाछाप डॉक्टर था जो इलाके के गांवों के सामान्य तबके के लोगों का इलाज करता था सर्दी खांसी, बुखार, सिर दर्द, घुटनों का दर्द, डायरिया… आदि ऐसी छोटी-मोटी बीमारियों को दूर करने में उसको महारत हासिल थी। वह कोई फीस नहीं लेता था किंतु मरीज को देखने के बाद वह अपनी दवा देता था इसलिए वह उसका चार्ज करता था।

कभी कभार वह रोगी को इंजेक्शन भी देता था चतुर्भुज के इलाज से अक्सर मरीज चंगा हो ही जाते थे। रोग पुराना हो या जटिल हो  तो वह अपने हाथ खड़े कर देता था, उसे शहर के किसी बड़े डॉक्टर से इलाज करवाने की सलाह देता था या मरीज को बड़े डॉक्टर के यहाँ पहुंँचा देता था।                                                  

वर्षों से लोगों की इस तरह से चिकित्सा करके वह अपने परिवार की परवरिश कर रहा था उसको किसी प्रकार की कमी नहीं थी और न खाने पीने की कोई दिक्कत थी।.                                                      

उसका कहीं कोई  स्थायी क्लिनिक नहीं था। वह स्वयं चलता फिरता क्लिनिक था उसके पास एक बैग रहता था जिसमें आपातकालीन दवा, सामान्य दवा, फर्स्ट ऐड की सामग्री, पट्टी, कैंची, मेडिकेटेड रूई,.. आदि रहते थे जो उसकी साइकिल के  कैरियर में बंधा रहता था। सुदूरवर्ती इलाकों में रास्ता कच्चा हो या बीहड़ हो तो बैग लेकर पैदल ही मरीज के पास पहुंच जाता था। 

    इसी क्रम में जब वह एक बार साइकिल से गुजर रहा था एक गांव से तो दुख से रोती-बिलखती हुई एक युवती से भेंट हुई जो एक मंदिर के प्रवेश द्वार की सीढ़ियों पर बैठकर रो रही थी। उसके कदम ठिठक गए पूछने पर उसने अपनी कहानी सुनाई कि उसके चाचा-चाची ने उसे घर से बहिष्कृत कर दिया है

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यह कह कर कि उसका जीवन भर परवरिश करने का ठेका नहीं लिया है कि वह कहीं जाकर मेहनत मजदूरी करके या दाय का काम करके खर्च चलाएं, फिर भी वह घर से निकलना नहीं चाहती थी तब उसने उसे धक्का देकर जबरन घर से बाहर ठेल दिया दिया। जमीन ऊंँची और नीची रहने के कारण उसे एक पैर में मोच आ गई

   सारी बातों को सुनने के बाद उसने उसके पैर का निरीक्षण किया। उसने बैग से दर्द निवारक गोली  निकालकर खाने को दी। थोड़ी राहत उसे मिली उसने जब पूछा कि वह कहांँ जाएगी?.. तो उसने भी विलखते हुए कहा कि वह कहां जाएगी?.. उसे खुद पता नहीं है। उसका इस दुनिया में कोई नहीं है। 

   उसकी हालत पर रहम खाकर उसने उसको अपनी साइकिल पर बैठाकर अपने घर ले आया।          

प्रमिला( युवती) का पैर कुछ दिनों के इलाज और मालिश की बदौलत ठीक हो गया। तब सौम्या ने कहा उसका रोग दूर हो गया है वह चली जाए इस घर से जवाब में चतुर्भुज ने कहा कि वह इस घर से नहीं जाएगी। इसका कोई नहीं है, इसको बाहर भटकने के लिए, धक्का खाने के लिए मैं नहीं छोड़ सकता हूँ । 

   ” जिसका कोई नहीं होता है उसका भगवान सहारा होता है… भगवान भरोसे इसको घर से जाने दीजिए।” 

  ” यह ठीक नहीं है सौम्या!… तुम ही सोचो कहांँ जाएगी यह बेसहारा लड़की, तुमको भी तकलीफ होती ही है अकेले काम करने में… थक भी जाती हो, प्रमिला भी घरेलू कामों में हाथ बंटा देगी… दो रोटी खाकर यह घर के किसी कोने में पड़ी रहेगी… तुम्हारी भी सेवा करेगी…” 

   ” मेरी भी सेवा करेगी और तुम उसके साथ…. “आगे का वाक्य अधूरा छोड़कर वह मौन हो गई लेकिन उसके चेहरे पर क्रोध की लकीरें उभर आई थी ।”

   कुछ पल मौन रहकर उसकी पत्नी ने कहा, “तुम्हारी फितरत में समझ रही हूँ” कहती हुई वह गुस्से में उसके सामने से हट गई।.                                        

वास्तव में सौम्या की शादी हुई तीन-चार वर्ष हो गए थे। लेकिन कोई संतान नहीं हुई थी गांव के लोगों का इलाज तो वह करता था किंतु स्वयं वह अपना या अपनी पत्नी का इलाज करने में वह सक्षम नहीं था  

   प्रमिला खूबसूरत भी थी बिना मेकअप या श्रृंगार किए हुए भी उसके कोमल चेहरे पर ताजगी और आभा का अक्स मौजूद रहता था उसकी हंँसी में वह कशिश थी कि किसी को भी आसानी से अपनी ओर आकर्षित कर सकती थी 

  चतुर्भुज का इलाज तो वास्तव में बहाना था सच्चाई यह थी कि वह प्रमिला का दीवाना हो चुका था वह उसको बहुत सारी फैसिलिटी देने लगा था उसकी छोटी से छोटी कमी को भी चुटकी बजाते पूरा कर देता था।.

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अपने पति के व्यवहार और विश्वासघात से सौम्या क्षुब्ध थी उसने अपने पति को बहुत समझाया प्रतिष्ठा पर आंँच आने और मान मर्यादा मिट्टी में मिल जाने की बातें भी कही। उसने प्रमिला को घर से निकाल कर उससे संबंध संबंध विच्छेद कर लेने के लिए उसने दबाव भी डाला किंतु प्रमिला तो उसके दिल के सिंहासन पर आसीन हो चुकी थी।                                             

सौम्या और चतुर्भुज की बोलचाल महीनों से बंद थी। वह अपने कमरे में बंद होकर पड़ी रहती थी। उसको न खाने की सुध थी, न अपने घर गृहस्थी की परवाह थी।.                                                      

चतुर्भुज ने सतही तौर पर ही सही उसे मनाने का दिखावा किया था।.                                                                

शांत रहने वाले घर में अक्सर बखेड़ा पैदा होने लगा। आए दिन बाद विवाद होने लगे। लड़ाई झगड़े होने लगे। कभी सौम्या और प्रमिला में, तो कभी सौम्या और चतुर्भुज में , कभी तीनों एक साथ उलझ जाते।                                                                             

मोहल्ले के लोग भी अज़ीज़ आ गए थे उनके झगड़ों से। कभी रात में ही तीनों झगड़ पड़ते। उस रात मोहल्ले की शांति भंग हो जाती।.                                 

इधर प्रमिला कहती कि किस झमेले में वह पड़ गई । वह चतुर्भुज से कहती कि उसको वह चाचा- चाची के पास पहुंँचा दे, चाहे उसको वे मारें या पीटें, उसको यातना दें या उसकी जान ही ले लें किंतु चतुर्भुज इसके लिए बिलकुल राजी नहीं था।.              

सौम्या को समझ में आ गया था कि उसका पति उसको रत्ती-भर भी प्यार नहीं करता है जबकि वह दिल की गहराइयों से प्रमिला से मोहब्बत करता है। वह निसंतान भी है। उसको जीने का अब कोई मकसद नहीं है।                                                    

उस दिन बहुत देर तक जब सौम्या के कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो चतुर्भुज ने पुलिस को खबर की। पुलिस के समक्ष जब दरवाजा तोड़ा गया तो सौम्या का निर्जीव शरीर पंखे से झूल रहा था।          

जांँच-पड़ताल और छानबीन करने के बाद पुलिस पूछताछ और आवश्यक  कानूनी कार्रवाई के लिए चतुर्भुज को भी पुलिस स्टेशन ले गया।.                            

असली गुनहगार तो चतुर्भुज ही था। कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता है। गुनहगार को दंडित करना ही  मात्र विकल्प रह जाता है। 

     स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                   मुकुन्द लाल 

                    हजारीबाग(झारखंड) 

                       12-02-2025

          बेटियाँ वाक्य कहानी प्रतियोगिता 

      वाक्य:- # कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता है।

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