Moral Stories in Hindi : हमारी कालोनी में जहॉ हम रहते थे आमने सामने बत्तीस मकान थे। जहाॅ कुछ मकान मालिक स्वय॔ रहते थे कुछ में किराएदार। इतने मकानो मे से केवल दो महिलये ही नौकरी पेशा थी बाकी की सब गृहणियां थी।
ये दोनों ही महिलाएं उनके लिए गाॅशिप का जरीया थीं।
अलग अलग तरह के कमेंट उनके बारे में आपस में एक दूसरे को कहती।
कोई कहती- देखो न इनके क्या ठाट हैं रोज नई नई साड़ी पहन तैयार हो और निकल जाओ । घर की जिम्मेदारी से मुक्त घूमो फिरो पाँच छः घंटे।
कोई कहती ये सब काम से बचने का बहाना है।
कोई कहती अरे पैसे कमाती है तो अपने ऊपर ही तो खर्च करती है, तभी तो रोज नई नई साड़ी पहन कर जाती है। दोनों ही बड़ी घमंडी है नौकरी जो करती हैं। हमसे बोलने बात करने में उन्हें शर्म जो आती है।
तभी दूसरी पडोसन बोली- देखो न बच्चों को कैसे बढिया अंग्रेजी स्कूल में पढ़ा रही हैं, मानो इन्हीं के बच्चे कलेक्टर बनेगें।
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एक अन्य पडोसिन बोली अरे मैंने तो यहाँ तक देखा है कि कामवाली के न आने पर काम भी पति से कराती है। बेशर्म है न पति का लिहाज नकिसी से शर्म कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा ।एक अन्य बोली इनमें संस्कार थोडे ही होते हैं बस नौकरी और पैसे का घमंड होता है।
ये बातें उन्ही में से किसी ने उन लोगों को भी बता दी। सुनकर कर बडा दुःख हुआ कि महिला होकर भी उनके प्रति कैसे ओछे विचार रखती हैं।
जबकि स्तिथि यह थी कि नीता जी का तो मायका लोकल था सो उनकी मां बच्चों एवम उनके पति का खाना बना कर ले आती थी या कभी यहीं उनके घर पर बना कर दिन भर बच्चों का स्कूल से आने के बाद ध्यान रखती थीं।
जबकी अरुणा जी के यहाँ तो कोई सहारा न था। सुबह चार बजे उठकर खाना बनाती ।दाल-चावल ,सब्जी ,चार टिफिन तैयार करती पराठे ओर सब्जी डाल कर, फिर दो-तीन पराठें नाश्ते के बना पूरा खाना फ्रीज में रख चाय बनाती इसी बीच बच्चों को उठा उन्हे तैयार भी करती साथ ही खुद भी तैयार होती।पति उन्हे बस स्टाप छोडने के चक्कर में उनके साथ ही निकल जाते ।पीछे बडी बेटी दोनों बहनों को बस में बिठा ताला लगा खुद साइकिल से जाती।
दो बजे सब एक साथ लौटते अपने साधनों से फिर फटाफट खाना गर्म कर गर्म रोटीयाॅ सेंक सबको खिलाती इसी बीच कामवाली भी आ जाती जबतक वह कपडे धोती किचन खाली हो जाती,सो किचन की सफाई बर्तन निपटाती सब काम होते होते चार बज जाते। थककर लेट जाती।
शाम पाँच बजे चाय बनाने से फिर काम शुरू हो जाता बच्चों का होमवर्क कराना उन्हें पढाना फिर खाने की तैयारी। रात को बच्चों की यूनीफॉर्म तैयार कर सुबह के लिए रखना उनके जूते मोजे बैग सब तैयारी करते करते रात को गयारह साढ़े ग्यारह बज जाते| अब बताओ इस व्यस्त दिनचर्या में दम मारने की फुर्सत नहीं थी पडोसियों से मेल मिलाप, गप्पें लडाने के लिए समय कहाँ से आता ।
एक दिन अरूणा जी अपने सामने रहने वाली पड़ोसी जिनका बेटा उनकी बेटी की उम्र का था वह ट्यूशन जाता था सो उनहोंने सोचा कि बेटी की ट्यूशन लगवा दूं तो कम से उसका होमवर्क तो पूरा हो जाया करेगा। छोटी थी चारसाल की सो रात को देर तक नहीं जग पाती थी।
अभी मैं उनसे टीचर के बारे में बात कर ही रही थी कि बीच में ही उनकी पडोसन बोली क्या फायदा है आपके नौकरी करने का आधी तनख्वाह तो काम वाली को दे देती हो और अब यह टयूशन।पहले तो मे उनका मुँह देखती रह गई कि ये कह क्या रहीं हैं।
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फिर शान्ति से जबाब दिया पहली बात तो आपको मेरे नौकरी करने से क्या तकलीफ है यह हमारा निजी मामला है और दूसरे क्या मैं हजार पाचॅ सो की नौकरी करने जाती हूॅ जो आधा बाई को दे देती हूँ । (उस समय काम काली का रेट तीन चार सो रुपये हुआ करता था.) मेरे पैसों के प्रति आपकी चिंता समझ नहीं आई।
खैर समय निकल गया हम सेवानिवृत्त हो गए, अब पेन्शन मिलने लगी तो जलन के लिए यह एक नया टॉपिक मिल गया।पार्क में कभी घूमते हुए कोई टकरा जाती तो पहला प्रश्न यही होता आपको तो पेन्शन मिलती है,कितनी मिल जाती है।कोई और आगे बढ जाती भाईसाहब को भी मिलती होगी उन्हें कितनी मिल जाती है।आपके तो मजे हैं घर बैठे पैसे मिल रहे हैं।पर कोई इनसे पूछे कि जीवन के पैंतीस वर्ष इस सेवा को भागते दौडते दिए हैं,तब यह सुविधा मिल रही है इसमें भी जलन है जबकी उन्होंने चैन से जिंदगी गुजारी है।
नौकरी पेशा महिलाओं के प्रति गृहिणियों में जलन की भावना उनकी मानसिक कुंठा का करण है।
क्योंकि उनमे से कई पढी लिखी होती थीं किन्तु उनके पति एवम परिवार वाले उन्हें नौकरी नहीं करने देते थे।कुछ कम पढी लिखी होतीं थी सो वे नौकरी करने लायक नहीं होती थीं। दोनो ही परिस्थिती में कुंठा उनके मन में आ जाती थी,जो उनमें नौकरी पेशा महिलाओं के प्रति जलन की भावना को जन्म देती थी।
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित मोलिक अप्रकाशित
15।9।23
यह कहानी अस्सी के दशक की परिस्थितियों पर आधारित है उस समय सभी महिलाओं को शिक्षा पूरी करने का अवसर कम मिलता था एवम अच्छा रिश्ता मिलने पर पढाई छुडा कर शादी कर दी जाती थी।महिलाओं द्वारा नौकरी करना भी अच्छा नहीं समझा जाता था,सो कम ही लोग नौकरी करने देते थे।
आज परिस्थितीयों में काफी बदलाव आ गया है।अब बेटीयों की शिक्षा भी पूरी करा कर उन्हे योग्य बनने का अवसर दिया जाता है।