कुम्हार – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: आज श्रेया का देश के सबसे बड़े संगीत प्रतियोगिता में प्रथम स्थान आया था। इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान के साथ-साथ श्रेया को कई बॉलीवुड फिल्म्स में पार्श्व गायिका के रूप में भी मिल गई थी। आज उसके लिए बहुत खुशी का दिन था। गहन दुख के बाद आज उसके जीवन में सुख के पल आए थे।कहने को श्रेया अभी सिर्फ अठारह वर्ष की थी पर वक्त के थेपड़ों ने उसको उम्र से पहले बहुत समझदार बना दिया था।

आज जब वो प्रतियोगिता जीत गई तो बाहर निकलते ही मीडिया और न्यूज़ रिपोर्टर्स ने उसको घेर लिया पर वो जल्द से जल्द अपने परिवार के पास जाना चाहती थी। किसी तरह सबका धन्यवाद करते हुए वो अपने परिवार के पास पहुंची। पापा ने तो उसको गले लगाते हुए कहा कि बेटा आज तेरी मां ऊपर से तुझे देखकर बहुत खुश होगी क्योंकि तूने उसका सपना पूरा कर दिया।छोटे भाई-बहन विवान और रिया को भी उसने अपने गले से लगा लिया।

घर पहुंचते-पहुंचते काफ़ी देर हो गई थी।अब वो कुछ पल मां के साथ बिताना चाहती थी। सब बहुत थके हुए थे जल्दी ही सो गए पर श्रेया की आंखों से नींद कोसो दूर थी। पापा, भाई-बहन के सोने के बाद वो घर की बैठक में आकर बैठ गई। मोबाइल पर मां की जो उसकी सबसे तस्वीर थी उसको अपने सीने से लगाकर फूट-फूट कर रोने लगी।

थोड़ी देर रोने के बाद जब उसका मन हल्का हुआ तब वो मां की तस्वीर से कहने लगी कि काश आज आप मेरे पास होती और देखती कि आपकी बेटी ने आपके दिल में बसे सपने को पूरा कर दिया है। अपनी मां दिव्या की तस्वीर से बातें करते करते वो अपने बचपन की सुनहरी यादों में चली गई। तीन बहन-भाई में सबसे बड़ी थी श्रेया।

उसके जन्म के पांच वर्ष बाद जुड़वा भाई-बहन  का जन्म हुआ था। सब कुछ बेहद खूबसूरत था। पापा-मां के प्यार और तीनों भाई-बहन की शरारतों से गूंजता उनके घर का आंगन। जो भी देखता तारीफ़ किये बिना नहीं रह पाता।श्रेया की मां दिव्या को संगीत का बहुत शौक था। दिन की शुरुआत ही उनके मधुर भजन से होती थी। श्रेया बहुत छोटी थी पर मां को भजन गाते देखती तो वो भी उनके साथ सुर में सुर मिलाने की कोशिश करती। 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

नज़रिया – पुष्पा ठाकुर

दिव्या ने जब श्रेया का संगीत की तरफ झुकाव देखा तो उनके मन को बहुत सुकून पहुंचा। दिव्या अपने स्कूल के समय से संगीत सीखना चाहती थी और इसी में अपना भविष्य बनाना चाहती थी। दिव्या का परिवार थोड़ा रूढ़ीवादी था। उनके यहां नाच गाने को अच्छा नहीं समझा जाता था इसलिए दिव्या को अपने संगीत के प्रति रूझान को मन में ही दबाना पड़ा।

ग्रेजुएशन पूरी करते करते दिव्या की शादी श्रेया के पापा अजय से हो गई। अजय बहुत ही सुलझे हुए और दिव्या की हर इच्छा का सम्मान करने वाले इंसान थे। अजय और दिव्या की शादी के एक वर्ष बाद ही श्रेया भी उनकी दुनिया का हिस्सा बन इस संसार में आ गई थी। उन दोनों को तो जैसे एक खिलौना मिल गया था। उसके जन्म के समय अजय और दिव्या की उम्र काफ़ी कम थी पर फिर भी वो बहुत प्यार से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे थे।

श्रेया का संगीत की तरफ झुकाव देखकर दिव्या उसे स्कूल की सभी संगीत प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती रहती। हालांकि दिव्या अपनी इच्छा श्रेया पर थोपना नहीं चाहती थी पर श्रेया की संगीत की तरफ ललक देखकर कहीं ना कहीं वो अपने अधूरे ख्वाब हकीकत में बदलने की आहट सुनने लगी थी। श्रेया जब पांच वर्ष की थी तब उसके जुड़वा भाई-बहन का जन्म हुआ। श्रेया की मां दिव्या और पापा अजय पर अब तीन बच्चों की ज़िम्मेदारी आ गई थी। 

इतनी व्यस्तता के बाद भी दिव्या श्रेया पर पूरा ध्यान देती क्योंकि उसका मानना था कि बच्चे तो कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं जिनको माता-पिता ही कुम्हार बनकर जीवन के प्रारंभिक समय में जैसा ढाल देंगे वो वैसा ही आकर ले लेंगे। मां के साथ-साथ पापा भी पूरा सहयोग देते। सात वर्ष की होते होते दिव्या ने उसके लिए संगीत की विधिवत शिक्षा का प्रबंध कर दिया था। अजय भी पैसे कमाने के लिए जी जान से मेहनत करते जिससे वो बेहतरीन शिक्षा के साथ-साथ अपने तीनों बच्चों के सपनों को पूरा कर सकें।

समय अपनी गति से चल रहा था। तभी श्रेया के संगीत वाले गुरुजी ने देश की सबसे बड़ी प्रतियोगिता के ऑडिशन के विषय में बताया। जिसमें सभी शहरों से प्रतियोगी अपनी योग्यता के अनुसार चयन किए जायेंगे। श्रेया के मां-पापा भी उसको ऑडिशन दिलवाने वहां लेकर गए। पूरे दिन की दौड़ धूप के बाद श्रेया के गाने का नंबर आया। श्रेया की आवाज़ ने निर्णायक मंडल का मन मोह लिया। इस तरह श्रेया देश के तेरह प्रतियोगी में अपनी जगह बनाने में सफल हो गई। 

श्रेया को मुंबई आने का निमंत्रण मिला। अभी मुंबई जाने में दो तीन महीने का समय था। दिव्या का भी श्रेया के साथ मुंबई जाना तय था। कुछ समय से दिव्या की तबियत ठीक नहीं चल रही थी। उनको जल्दी-जल्दी बुखार हो रहा था। उसको बहुत कमज़ोरी महसूस होती।

अभी श्रेया की प्रतियोगिता में थोड़ा समय बाकी था तो दिव्या को लगा की कहीं वो मुंबई जाने के समय बीमार ना पड़ जाएं इसलिए उन्होंने अपने सारे स्वास्थ्य संबंधी टेस्ट करवाए। हालांकि घर आकार उन्होंने कहा था कि सब ठीक है पर दिव्या को रक्त कैंसर था जिसकी वजह से वो बार बार बीमार पड़ रही थी।

डॉक्टर्स ने दिव्या को तुरंत हॉस्पिटल में एडमिट होकर कीमोथेरेपी करवाने की सलाह दी थी क्योंकि कैंसर की कोशिकाएं सारे शरीर में तेज़ी से फैल रही थी। डॉक्टर के ये कहने के बाबजूद कि उनके पास समय बहुत कम है। तब भी दिव्या अपनी बेटी के सपनों को हर हाल में पूरा होते देखना चाहती थी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 ‘ अन्याय ‘ –  विभा गुप्ता

दर्दनिवारक दवाइयों के सहारे अपने दर्द को दबाते हुए वो श्रेया के साथ मुंबई पहुंची। श्रेया की हर गाने की परफॉर्मेंस में वो दर्शक दीर्घा में बैठ उसका हौसला बढ़ाती रहती। दिव्या का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा था l अभी भी घर पर सबको यही लग रहा था कि श्रेया के साथ साथ दिव्या की भी काफ़ी भाग दौड़ हो रही है इसलिए वो बीमार पड़ रही है।

असल वजह किसी को भी पता नहीं थी।इधर अजय ने भी दिव्या के गिरते स्वास्थ्य के चलते अपना ट्रांसफर अपनी कंपनी की मुंबई शाखा में करवा लिया था।कंपनी से मिले घर में पूरा परिवार रहने लगा था हालांकि श्रेया को संगीत प्रतियोगिता के आयोजक द्वारा होटल में अन्य प्प्रतियोगियों के साथ ठहराया गया था। 

अब श्रेया अंतिम पांच प्रतियोगी में अपनी जगह बना चुकी थी। श्रेया को अपने आगे होने वाले प्रतियोगिता के चरणों की तैयारी में व्यस्त थी। उधर उस दिन दिव्या की तबियत काफ़ी खराब थी। वो चक्कर खाकर बेहोश होकर गिर गई थी। उनको आनन-फानन में हॉस्पिटल ले जाया गया। वहां जाकर उनकी बीमारी का सच सबके सामने आ गया।

ब्लड कैंसर ने बहुत जल्दी उनके पूरे शरीर पर डेरा जमा लिया था। डॉक्टर के अनुसार उनका कैंसर आखिरी अवस्था में था। आने वाले सात दिनों में कुछ भी हो सकता था।आज जब श्रेया की परफॉर्मेंस थी तो प्रथम बार ऐसा हुआ था कि दिव्या दर्शक दीर्घा में उपस्थित नहीं थी पर उसके पापा और भाई बहन वहां पर थे।

श्रेया को थोड़ा अजीब लगा लेकिन उसने पूरी जी जान से अपना गाना गाया। आज की परफॉर्मेंस के बाद वो अंतिम तीन में अपनी जगह बना चुकी थी क्योंकि आज पांच में से दो प्रतियोगी बाहर होने थे। उसके गाने के बाद अजय उसके पास आए और उसको प्यार से दिव्या की बीमारी के विषय में सब कुछ बताया। श्रेया को तो सब कुछ बुरे सपने जैसा लग रहा था वो रोना चाहती थी पर दोनों भाई-बहन के मासूम से चेहरे देखकर उसने अपनेआप पर नियंत्रण रखा।

अजय संगीत कार्यक्रम के आयोजकों से बात करके श्रेया को दिव्या के पास ले गए। शायद दिव्या श्रेया का ही इंतजार कर रही थी। श्रेया और दोनों छोटे बच्चों को देखते ही उसने कहा बेटा मां को माफ कर देना। मां तुम लोगों का साथ सिर्फ यहां तक ही दे पाई। जाते जाते दिव्या ने श्रेया से वादा लिया कि वो पूरी लगन और हिम्मत से इस प्रतियोगिता का बाकी सफ़र पूरा करेगी और अपनी मां की आखिरी इच्छा जरुर पूरी करेगी। 

इतने दर्द में होने के बाद भी दिव्या ने अजय को भी मुस्कराते हुए बोला कि पार्टनर इस जन्म में केवल इतना ही साथ था। अगले जन्म में फिर साथ होंगे। श्रेया और दोनों छोटे बच्चे विवान और रिया की भी सारी ज़िम्मेदारी अब उसे ही निभानी है और उसके जाने का दुख नहीं मानना है क्योंकि उनका साथ तो सात जन्म का है।

अजय आज अपने आपको बहुत लाचार महसूस कर रहा था। असल में दिव्या की बीमारी का जब तक पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी। यहां तक की जब खुद दिव्या को भी अपनी बीमारी का पता चला चला था तब भी इसके बचने की उम्मीद बहुत कम थी। अजय ने दिल पर पत्थर रखते हुए आंखों में आंखों में प्यार जताते हुए दिव्या को विदा किया।

इस तरह इतने दर्द में भी मुस्कराते हुए दिव्या इस संसार से चली गई। दिव्या की आखिरी इच्छा को देखते हुए अजय ने उसकी अंतिम क्रिया और सारे रीति-रिवाज जल्दी ही पूर्ण कर दिए। अपने आंसुओं को अपने अंदर ही समेटते हुए तीनों बच्चो को हिम्मत दी और कहा कि मां कहीं नहीं गई वो हम सबके पास ही हैं इसलिए कोई दुख नहीं मनाएगा।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मेरा परिवार-मेरी दुनिया – निधि जैन

मां की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए श्रेया भी संगीत प्रतियोगिता में लौट आई। बाकी दो प्रतियोगियों को भी कड़ी टक्कर देकर प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर पहुंची। आज सब जगह उसके ही चर्चे थे। दिव्या आसमान से अपनी लाडो की सफलता देख रही थी। ये सब सोचते-सोचते श्रेया कब नींद के आगोश में चली गई उसे पता ही नहीं चला।

अगले दिन एक बड़े न्यूज चैनल के साथ उसका इंटरव्यू था। अजय ने उसको उठाया और तैयार होने के लिए कहा।पहले तो श्रेया किसी भी इंटरव्यू के लिए मना करने लगी तब अजय ने उसको समझाते हुए कहा कि सुख-दुख तो जीवन भर साथ चलेंगे पर उनसे घबराकर हमें अपने कदम पीछे नहीं हटाने हैं। श्रेया इंटरव्यू देने के लिए तैयार हुई और उसने अपनी कामयाबी का हकदार अपने माता-पिता को ही बताया।

उसने कहा कि इस पूरे संसार में माता-पिता ही होते हैं जो अपने सुख-दुख को भूलकर अपनी संतान के सपने को हर हाल में पूरा करने की कोशिश करते हैं। उधर अजय को आज श्रेया पर बहुत गर्व हो रहा था उसने आसमान की तरफ देखते हुए कहा कि दिव्या तुम सही कहती थी कि बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं इनको कुम्हार बनकर हमें ही आकार देना है।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। सुख-दुख जीवन के अटूट रंग हैं। अब ये हमारे ऊपर है कि हम उन रंगों से निखरना चाहते हैं या बिखरना।

नोट: ये कहानी एक वास्तविक घटना पर आधारित है पर काल्पनिक रूप देने के लिए पात्रों के नाम और चित्रण बदल दिए हैं। 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

#सुख-दुख

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!