“मां पापा, मैंने टिकट आरक्षित करवा लिया है। हम सभी कुंभ चल रहे हैं !”
“मगर बेटा वहां तो बहुत ठंड होगी ना और फिर तुम्हें तो पता है कि हम लोगों को कितनी जल्दी ठंड लगती है बगैर होटल के रहना मुश्किल बगैर गाड़ी के चलना मुश्किल तुम्हारा बहुत खर्च हो जाएगा।”
“पापा आप चिंता मत कीजिए।मैंने सब कुछ तय कर लिया है ।मैंने राजधानी का टिकट करवा लिया है। सेकंड एसी में हम सब चलेंगे।
मां कब से बोल रही थी कुंभ स्नान के लिए और मैं हमेशा ही उनकी इच्छा काटता आ रहा था।
अब जब वह अस्पताल से लौट आईं हैं तो मुझे उनकी इच्छा पूरी कर लेने दीजिए। नहीं तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।”
“हम्म!,जैसी तुम्हारी इच्छा बेटा।”
कुंभ स्नान की बात सुनते ही बीना बच्चों की तरह खुश हो गई।
उसे इस तरह से खुश देखकर चिराग बीना के पैरों के पास आकर बैठ गया और उसके दोनों हाथ पकड़ कर बोला “मां भगवान ने आपको सही सलामत घर भेज दिया ताकि मुझपर कलंक न लगे। अब मैं आपको कुंभ स्नान करवा कर ही रहूंगा।”
“ बिल्कुल चिराग है तू अपने नाम के अनुरूप बेटा।”बीना उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली।
बीना की आंखें आंसुओं से भर आईं थीं। चिराग भी उसके गले से लिपट कर बोला “मां, मैं तो आपका ही अंश हूं ना। आपने ही तो मुझे जीवन दिया है।यह तो मेरा फ़र्ज़ है मां।”
दोनों को बात करते हुए देखकर मेरी आंखें भी भर आईं और सीने में उठ गया एक अनकहा दर्द जो बरसों से मेरे सीने में दफन था।
मुझे इस तरह से भावुक होते हुए देखकर मेरी बहू मनीषा मुझसे बोली “ पापा, क्या हुआ, आप ठीक हैं?”
“हां बेटा,बस वो मां बेटे का प्रेम देखकर आंखें भर आईं। मैंने अपनी नजरें चुराते हुए कहा और वहां से उठकर बाहर चला आया।
मेरी पत्नी बीना काफी दिनों से बीमार चली आ रही थी। कभी कुछ, कभी कुछ, लगातार दवाइयां अस्पताल करते हुए वह दिन-दिन कमजोर होती जा रही थी।
जब भी वह ठीक होकर घर आती उसकी एक ही रट थी “बेटा मुझे एक बार कुंभ स्नान करवा दे, मुझे मोक्ष मिल जाएगा।”
फरवरी मार्च का समय बच्चों के इम्तिहान का होता है जिसके कारण चिराग का जाना हो नहीं रहा था।
इस बार डॉक्टर ने बीना को लेकर बहुत ही गंभीर चेतावनी दी थी।लग ही नहीं रहा था कि वह घर लौट भी आएगी।
उसकी एक ही बीमारी थी उसका हाई ब्लड प्रेशर। जब भी ब्लडप्रेशर बढ़ता,क्रौनिक हो जाता था।
लेकिन ईश्वर की मर्जी या डॉक्टर्स के परिश्रम, बीना सकुशल घर लौट आई थी।
और इसका रिवार्ड चिराग ने उसे दे दिया था।
देखते देखते हमारे जाने का समय भी आ गया।
ट्रेन में बैठकर बाहर के दृश्यों को देखते हुए मेरी आंखों के आगे 28 साल पुरानी बातें घूमने लगी थी।
शादी के कई साल तक बीना मां नहीं बन पा रही थी।कुछ ना कुछ कारण से उसका गर्भपात हो जा रहा था जिसके कारण वह मानसिक रूप से बहुत ही ज्यादा परेशान हो गई थी।
मंदिर, मंदिर माथा टेकते हुए आखिरकार माता रानी ने हमारी फरियाद सुन ली।
बीना गर्भवती हो गई थी।
बीना और मैं, हम-दोनों कितने खुश थे ! वह पल पल उस अनदेखे मेहमान का इंतजार कर रही थी।
बड़े मनोयोग से वह अपने हाथों से उसके लिए स्वेटर, टोपी मोजे आदि बुना करती कभी उसके लिए कपड़े सिला करती थी।
मुझसे कहती “मधुकर कितना सुंदर वह क्षण होगा ना, जब मेरा बेबी मेरे गोद में खेलेगा।
नवें महीने में डाक्टर के दिए तारीख पर मैंने बीना को अस्पताल में भर्ती करा दिया।
डॉक्टर मानसी ने चेतावनी दे दी थी कि बीना को कई बार अबॉर्शन हो चुका है जिसके कारण थोड़ा रिस्क तो है मगर बीना ठीक थी लेकिन अचानक ना जाने क्या हुआ डॉक्टर मानसी भागती हुई मेरे पास आई। पीछे-पीछे नर्स थी।
उसने एक फॉर्म लिया हुआ था। उसने कहा “मिस्टर शर्मा, आप इस में साइन कर दीजिए।
या तो मां को बचाया जा सकता है या बच्चे को !”
“अचानक क्या हो गया? मैं फटी आंखों से डॉक्टर की तरफ देखता रहा, डॉक्टर अगर बच्चा नहीं रहा तो मां अपने आप खत्म हो जाएगी उसे कितनी सदियों से इस अनजाने मेहमान का इंतजार था!”
“आप समझ नहीं रहे हैं! बहुत ही गंभीर मामला है।”
मैंने डरते हुए और कांपते हाथों से साइन कर दिया “डॉक्टर मुझे तो अपनी बीना चाहिए। अगर वह रहेगी तो बच्चे तो हो ही जाएंगे।”
डॉक्टर ने बड़े ही जद्दोजहद के बाद बीना को तो बचा लिया मगर बच्चा नहीं रहा।
वह बेहोश थी।
मैं फूट फूट का रो पड़ा था “डॉक्टर जब बीना होश में आएगी तो उसे मैं कैसे संभाल पाऊंगा।”
डॉक्टर मानसी हमारी परिचितों में से एक थी। उसे भी यही लग रहा था।
थोड़ी देर में उन्होंने मुझे फोन करके अपने केबिन में बुलाया और कहा ”अनाथ आश्रम में एक नवजात शिशु आया है।आप चाहें तो अडॉप्ट कर सकते हैं। यह राज मेरे और आपके बीच रहेगा, किसी को पता नहीं चलेगा।
बेहोश पड़े हुए बीना को हल्का-हल्का होश आने लगा था। आनन फानन में मैंने हां कह दिया।
डॉ मानसी ने एक गोल मटोल बच्चा मेरी गोद में लाकर दे दिया। उसे देखकर बीना कितनी खुश हुई थी।
वह जो उस बच्चे की उसकी जन्मदात्री थी उसे भी कितना दर्द हुआ होगा,उस अनाथालय के बाहर छोड़ने में, मगर उसका चिराग आज मेरे घर को रोशन कर रहा था।
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“मां बोलो हर हर गंगे!” चिराग और मनीषा बीना को दोनों तरफ से पकड़ कर डुबकी लगा रहे थे।
मैं उदयाचल सूरज की तरफ देखकर अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और डुबकी लगाने के लिए पानी के भीतर घुस गया।मेरी आंखों से बहते आंसू और अनकहा दर्द त्रिवेणी के साथ घुल रहे थे।
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सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
#अनकहा दर्द
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के साप्ताहिक विषय अनकहा दर्द के लिए।