सुगुनी का विवाह अपने से बड़ी उम्र के आदमी किशना से हो गया था । किशना अच्छा पैसे वाला शख्स था । उसका बहुत पैसा सुगुनी के बाप राम चन्द्र पर उधार
था । राम चन्द्र कैसे भी उस पैसे को नहीं चुका पा रहा
था । किशना की पहली बीबी चार बच्चों को छोड़ कर परलोक सिधार गयी थी ।
जब कर्ज नहीं चुका पाया तो किशना ने कहा कि अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दो मेरे को भी और मेरे बच्चों को भी घर में किसी महिला का होना जरूरी है। किशना और सुगुनी में 20 साल का अन्तर था । वह 18 की थी वह 38 का । बच्चे भी बड़े बड़े थे । वह मन से सुगुनी को मां न मानते थे । धीरे धीरे समय कट रहा था । सुगुनी के कोई सन्तान नहीं हुई फिर भी उसने किशना से कभी शिकायत नहीं की ।
बच्चे उसे मां मानते ही नहीं थे पर उसे तो अपना कर्तव्य निभाना था । धीरे धीरे सबकी शादी होगयी । लड़कियां ससुराल चली गयी और लड़के बहू और पैसा लेकर शहर में बस गये । सुगुनी और किशना दोनो अकेले रह गये । किशना बहुत बूढ़ा हो गया था । सुगुनी की भी उम्र बढ़ने लगी थी फिर भी वह सारा काम सम्भालती थी ।
कोरोना की आपदा ने सब कुछ बदल दिया । गांव में भी कोरोना ने पांव फैला दिये । किशना पता ना कैसे इसकी गिरफ्त में आगया । बच्चों ने तो पहले से ही उनसे दूरी बना ली थी । अड़ोसी पड़ोसी भी एक दूसरे की मदद नहीं कर पा रहे थे । 15 दिन से किशना बिलकुल अकेला एक कमरे में और सुगुनी दूसरे कमरे में । आज जब वह सही होगया और कमरे से बाहर आया तब सुगुना खुशी से झूम रही थी उसने किशना को स्नान कराया । उसे बाहर पंलग पर लिटाया । किशना एक दम सुगुनी का हाथ पकड़ कर रो गया और बोला कि तेरे साथ बहुत अन्याय हुआ । सुगुनी बोली ना अब कुछ ना कहो अब सब बीत गया । बस हम अब एक दूसरे के सहारे ही जिन्दा है।
स्व रचित
डा.मधु आंधीवाल