कुछ ख़्वाब जो बने हकीकत – डॉ.नीतू भूषण तातेड

 मेरा एक ख़्वाब था कि लोग मुझे डॉ नीतू के नाम से जाने जो अब पूरा  हो चुका है…..

बात लगभग आज से 35-36 वर्ष पहले की है जब मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी ।पढ़ने में मेरी बिल्कुल भी रुचि नहीं थी। माँ-पिता की सबसे छोटी संतान होने के नाते अधिक प्यार ने मुझे थोड़ा बिगाड़ दिया था।

एक दिन अचानक माँ ने मुझसे कॉपियां मंगवाई और कहा,”बेटा! चलो दीपावली का गृहकार्य करने में मैं तुम्हारी मदद करती हूँ।मैं अपना बस्ता बहुत खुशी-खुशी ले आई ।माँ के मन की थाह भला कौन जान पाया है ?मैं भी उसी में फँस गई? माँ ने जब एक-एक करके मेरी कॉपियाँ निकलवाई और दीपावली का गृहकार्य लिखकर पेज सजाने के लिए कहा तो मैंने खुशी-खुशी उनके साथ कार्य शुरू किया। माँ ने कहा, “इसके पहले भी तो कुछ कार्य किया होगा?”

मैं बगले झांकने लगी क्योंकि मैंने उसके पहले कक्षा में कोई कार्य किया ही नहीं था ।मैं आपको पहले ही बता चुकी हूँ कि पढ़ने में मेरी रुचि कतई नहीं थी। बस उस दिन घर में माँ  के द्वारा एकतरफा निर्णय लिया गया, “अगले साल यह लड़की छात्रावास जाएगी।”

पिताजी, बहन -भाई कोई भी बोल नहीं सका ।माँ का निर्णय अडिग था ।

सातवीं से दसवीं कक्षा मैंने छात्रावास में उत्तीर्ण की और थोड़ा-सा मुझमें सुधार भी हुआ। बिगड़ैल लड़की अब थोड़ी अनुशासित हो गई थी।

11वीं में मैं वापस अपने माता-पिता के पास आई और 11वीं 12वीं में मैंने साइंस ली थी और उसके बाद 12वीं में मैं एक बार फिर टीवी की तरफ अधिक रुझान होने के कारण कक्षा में असफल रही। माँ कहती रही पर मुझे अक्ल न आई। पर माँ की सख्ती ने मेरे जीवन को अलग ही दिशा दी। मुझे जिम्मेदारी और कर्त्तव्य के साथ अधिकारों की भी सीख दी।

बस उस समय में थोड़ी सचेत हुई क्योंकि आस-पास वाले कहने लगे,”अब पढ़ कर कौनसी नौकरी करनी है ?घर का काम सीख लो ,विवाह करके वैसे भी तो ससुराल ही जाना।”

उस समय गाँवों में चलन नहीं था कि लड़कियों को यह सीख दी जाती थी कि जीवन में अपने पैरों पर खड़ा होना है,आत्मनिर्भर बनना है। चूल्हा चौका और ससुराल जाकर कैसे सबको खुश करना है, यही समझाया जाता था ।


तब मैंने एक निर्णय लिया,” मैं इस तरह घर पर नहीं बैठूंगी।”

मैंने विषय परिवर्तित किया ।साइंस की जगह आर्ट्स लिया और अपनी पढ़ाई दूसरे शहर जाकर पूरी की। ग्रेजुएट होने से पहले मेरी सगाई हो गई। बीए अंतिम वर्ष में जब मैं थी और मेरा अंतिम पर्चा बचा था उसी समय मेरे पिताजी का भयानक एक्सीडेंट हुआ ।एक्सीडेंट के दो दिन बाद ही मेरा अंतिम पर्चा था।जिसे  देने का बिल्कुल भी मन नहीं था । पापा में मेरी जान बसती है।

मेरी सगाई जिससे हुई वह बहुत सुलझा व संभला हुआ इंसान था जो आज मेरे प्रिय पति है।

उस समय उन्होंने व मम्मी (सास) ने कहा ,”बहुत ही मेहनत से पूरे साल पढ़ाई की है, पढ़ने का मन नहीं है तो मत पढ़ो पर परीक्षा देदो।

आज  जब मैं याद करती हूँ, उस दिन यदि परीक्षा न दी होती तो आज जहाँ हूँ वहाँ शायद कभी ना हो पाती ।उसी वर्ष परीक्षा में उत्तीर्ण हुई और मेरी शादी भी हो गई।

शादी के बाद मैंने भी कई सपने देखे थे। अपने परिवार और पति को लेकर। घूमने -फिरने में ,अपना आशियाना सजाने में और बच्चों को सही परवरिश देने में अपना समय खुशी से व्यतीत किया परंतु सदा मन में एक कीड़ा कुलबुलाता रहता था कि मैं बिना लक्ष्य के जिये जा रही हूँ।

एक दिन अचानक जिम में मेरी एक दोस्त ने कहा,”देखो नीतू !मेरे बच्चे बड़े हो गए ।अब मैं पछता रही हूँ कि काश! यदि समय रहते  मैंने कुछ किया होता अपने आप को व्यस्त रखने के लिए तो सही होता ।अभी तुम्हारे पास समय है। बच्चे तुम्हारे छोटे हैं, कुछ कर लो ।”

रात में यही बात आकर मैंने अपनी पतिदेव को बताई तो उन्होंने कहा, “बेशक जो करना चाहो करो ।मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

हमेशा से ही उन्होंने मेरा इसी तरह साथ निभाया ।जब आप कुछ करने की सोचते हैं तो सारी परिस्थितियां भी आपका साथ देती है।

ऐसे ही अचानक एक मित्र का मुझे कॉल आया और कहा “किसी हिंदी ट्यूशन टीचर की जरूरत है।”

मैंने बड़े जोश में कह दिया” अपने बच्चों को तो मैं पढ़ाती हूँ, मैं पढ़ा दूंगी ।”

और मैंने अपने सफर की शुरुआत की।

मैंने जिस छात्र को ट्यूशन पढ़ाया वह बहुत ही अच्छे अंको से पास हो गया ।उसकी माताजी एक नामचीन विद्यालय में वाइस प्रिंसिपल थी उन्होंने मुझे सलाह दी ,” नीतू! तुम्हें बी.एड. करना चाहिए क्योंकि तुम्हें बच्चों को पढ़ाने का तरीका आता है और उनकी मानसिकता समझती हो।”



बस फिर क्या था ?पतिदेव से अपने मन की बात कही। उन्होंने मेरे लिए भागदौड़ शुरू कर दी ।राजस्थान में पढ़े-लिखे इंसान का मुंबई में पढ़ना आसान नहीं है। मुश्किल से सालों पुरानी डिग्रियां ढूँढ़ कर लाई गई ।इसमें कई रिश्तेदारों ने सहयोग किया। इस तरह मैंने बी.एड. में एडमिशन ले लिया ।मैं आपसे झूठ नहीं कहूँगी लेकिन जब मैंने शादी के तेरह वर्षों बाद 34 वर्ष की उम्र में बी.एड. में प्रवेश किया तब मैंने किसी को नहीं बताया क्योंकि मुझे ऐसा लगा था सालों बाद पढ़ने की राह पर चलना आसान नहीं और इस साल अगर में असफल हुई तो लोगों को बताने में भी मुझे शर्म आएगी। लेकिन अपने आप को निखारती हुई जो मैं आगे बढ़ी तो मैंने कॉलेज में टॉप करके दम लिया ।बिना चुनाव के मुझे जीएस बनाया गया तथा मैंने ‘ओ’ ग्रेड भी प्राप्त किया।

मेरा हौंसला बढ़ता गया ।

मैंने अच्छी स्कूल से नौकरी की शुरुआत की साथ ही साथ एम.ए. भी किया ,वह भी प्रथम श्रेणी के साथ ।अब पढ़ने में मेरी रुचि अचानक की बहुत बढ़ गई थी। शायद बचपन जो कमी रखी थी वह भी अब पूरी कर रही हूँ। एम.ए. जब पूरा हुआ तभी निर्णय लिया गया कि मैं पीएचडी भी जरूर करूँगी। आज माँ -पिताजी और पूरे परिवार को मेरी सफलता से बहुत खुशी होती है।

बस यही  ख्वाब मैंने पूरा किया।खुद के नाम के आगे डॉ. लगा ही लिया।

साथ ही साथ कविता लेखन, कहानी लेखन में भी हाथ आजमाती रहती हूँ। एक कविता संग्रह की किताब छप चुकी है और लघु कथा संग्रह प्रकाशनाधीन है।आज मैंने ज्यादा तो नहीं अपनी थोड़ी-सी पहचान अपनों के बीच बना ही ली है।

तो मैं अपने इस सफर के लिए कहना चाहूँगी

कुछ ख्वाब ऐसे जो अधूरे-से लगते थे

कुछ लक्ष्य असम्भव महसूस होते थे

उन्हें  पूरा करने का ठान ही लिया जब

अपनो ने भी खूब साथ दिया है तब

चाहे कुछ हो अब आसमां छू कर रहूँगी

जो सोचा उसे हासिल करके ही दम लूँगी

प्यारे दोस्तों उमर तो बस एक भरम है

मंसूबे रख ऊंचे तेरे,ताकत तेरी करम है

(मेरी अपनी कहानी

अपनी लेखनी से।)

किसी एक को भी ये कहानी हौंसला दे जाए तो मैं खुद को सफल मानूँगी।)

डॉ.नीतू भूषण तातेड

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