जाओ बेटा तुम दोनों आपस में बातें कर लो, हम अपनी बातें करते हैं तुम्हें भी तो आपस में थोड़ा समझ लेना चाहिए, एक दूसरे की प्रकृति के बारे में। लड़के वाले शर्मा जी और मिसेज शर्मा ने अपने बेटे से कहा। मिसेज शर्मा अपनी बात जारी रखते हुए बोलीं, लड़की तो हमें पसंद है ऐसी सुंदर और पढ़ी लिखी बहू भाग्यशाली को ही मिलती है। लड़के की मां मिसेज शर्मा, लड़की के सिर हाथ फेरते हुए बड़े प्यार से बोलीं चलो कुंडली भी मिल गई और नौकरी वाली पढ़ी लिखी भी। वर्ना बेटे के लिए रिश्ते तो इतने आ रहे थे
और एक से एक अच्छे घर के, लेकिन क्या करें कोई लड़की पसंद ही नहीं आ रही थी, कहीं कुंडली नहीं मिल रही थी यहां सब ठीक ठाक लगा, दोनों की एक जैसी जॉब है, अच्छा रहेगा। यह तो खुशी की बात है बहन जी लेकिन रिश्ता पक्का करने से पहले दहेज की बात भी कर लें, लड़की के पिता ने सकुचाते हुए कहा। लड़के की मां मिसेज शर्मा बोल पड़ी देखिए भाई साहब! दहेज से तो हमें सख्त परहेज है, आप जो भी देंगे अपनी बेटी को देंगे हमें तो कुछ चाहिए नहीं।
किंतु शादी ऐसी करना कि हमारी और आपकी समाज के सामने इज्जत बनी रहे। रिश्तेदारों के बीच में आपकी और हमारी नाक ना कट जाए। रवि अच्छा लड़का था, मोनिका के साथ ही जॉब करता था। सब कुछ सही लग रहा था, शादी भी हो गई, लेकिन यह क्या। शादी के अगले दिन ही रवि के माता-पिता ने ताने मारना शुरू कर दिया, अरे! हमें क्या पता थी कि यह इतने भूखे नंगे हैं अपनी लड़की को भी कुछ नहीं देंगे। हम तो सोचे बैठे थे अपनी गाड़ी में ही विदा करेंगे, इन्होंने तो कुछ भी नहीं दिया, हम तो बर्बाद हो गए।
आखिर हमने अपने लड़के को इतना पढ़ाया लिखाया, शालिनी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था, आखिर माजरा क्या है। शालिनी पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की थी, ऐसे तानों को नजरअंदाज कर वह अपने आप को व्यस्त रखने की कोशिश करती। लेकिन घर वाले कभी उसको स्वीकार नहीं कर सके ना ही वह अपने बेटे रवि को शालिनी के घर जाने देते। इस तरह घर में धीरे-धीरे रिश्तों में एक सन्नाटा सा व्याप्त हो गया। जो शालिनी इतनी होशियार चुलबुली हंसती रहती थी, अब अपने आप को बस व्यस्त रखती। समय सदा एक सा नहीं रहता, काफी समय बाद बच्चे भी हो गए, अब वह बच्चों पर ही अपना ध्यान देने लगी।
आखिर क्या मिलता है बेटे की खुशियों में आग लगाकर, कोई यह क्यों नहीं सोचते कि अपनी उम्र में तुम भी तो अपने पति के साथ बहुत खुश थी। तो अपने बेटे और बहू को भी खुश रहने दीजिए। बेटे के लिए मातापिता और पत्नी दोनों ही अजीज होते हैं, लेकिन कई माता-पिता इस चीज को नहीं समझ पाते। उन्हें केवल अपना प्रभुत्व स्थापित करते रहना है। एक दिन ऐसे ही बातों बातों में शालिनी से उसकी सास ने कहा, तेरे ससुर तो मुझे रानी बनाकर रखते थे, हमेशा मेरा ध्यान रखते थे।
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शालिनी ने बचपने में कहो या कुछ और बोल पड़ी, पता नहीं मैं कब रानी बनूंगी? और इस बात का जो हंगामा हुआ उसको लेकर रवि ने भी उसको कई महीनों के लिए अपने मायके में भेज दिया, यह बात शालिनी को आहत कर गई। काफी समय बाद वह ससुराल तो गई लेकिन संबंधों में ठंडापन आने लगा। समय हमेशा एक सा नहीं रहता रवि के माता-पिता को भी अब सब समझ आने लगा था, रवि भी खूब कोशिश करता शालिनी को खुश रखने की, शालिनी भी सारी चीजें भुलाकर जिंदगी में आगे बढ़ रही थी।
सास ससुर भी अब बूढ़े होने लगे थे, लेकिन जो घर में एक अपनापन एक होना चाहिए था, वह नहीं हो पाया। रवि के पिता भी अपने अहम को अहंकार का पोषण दे कर बड़ा करते रहे, एक दिन अचानक चल बसे। अब रवि की मां अकेले रह गई थी, उनकी पूरी कोशिश रहती कि इस ढलती उम्र में, शालिनी उनके पास बैठे, अपने मन की बात करें उनसे कुछ कहे। लेकिन वह बात अब नहीं हो पा रही थी उन्होंने जो शुरू में कांटे बोए थे रवि के मन में भी, उनको निकालना अब मुश्किल हो चुका था।
और इसके लिए जिम्मेदार थी केवल और केवल रवि की मां। आज वह अपने आपको इसके लिए क्षमा भी नहीं कर पा रही थी। सही भी है समय बड़ा बलवान है समय निकल जाता है लेकिन बातें हमेशा याद रहती हैं, कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता। कहते भी हैं, दूसरों द्वारा दिए गए कष्ट समय के साथ धुंधले पड़ जाते हैं, लेकिन अपने जो घाव देते हैं वह कभी नहीं भरते, भर भी जाएं तो निशान तो छोड़ ही जाते हैं।
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान