घड़ी की सूइयाँ रात के तीन बजा रही थीं। बाहर घना अंधेरा था और अंदर उतनी ही गहरी ख़ामोशी थी। राजन की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। वह कुर्सी पर बैठा सामने रखी शराब की बोतल को घूर रहा था। हर घूंट के साथ एक चेहरा उसकी आँखों के सामने आता— एक खूबसूरत लड़की, मासूम, बेबस और सहमी सी। जब भी याद आती वह घटना, घबरा कर उठ बैठता। नींद आंखों से कोशों दूर हो जातीं और एक अजीब सी बेचैनी महसूस होती।
देखते देखते कब 15 साल बीत गये और यह सीलसीला जीवन का एक हिस्सा बन चुका था। 15 साल पहले की घटना…. राजन कॉलेज का बहुत बढ़िया, लम्बा चौड़ा और सुन्दर स्मार्ट छात्र था। ईश्वर ने उसे किसी चीज की कमी नहीं दी थी। अपने घर परिवार से भी सम्पन्न था। उस दिन भी वह अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर रहा था, तभी एक लड़की, सुहानी पर उसकी नज़र पड़ी। बहुत ही खूबसूरत सौम्य लग रही थी। राजन की नजरें बार-बार उस लड़की से टकरा जा रही थी जिससे लड़की भी थोड़ा घबरा सी जाती।
तभी उसके कई और भी फ्रेंड वहां आ गए और वह लड़की सभी से बातों में लग गईं। फिर अचानक वह गायब हो गई, कही नहीं दिख रही थी। पार्टी समाप्त होने के बाद राजन बाहर निकला अपनी गाड़ी चला कर कुछ देर चला ही था उसने देखा,अँधेरी रात में तेज रफ्तार से एक गाड़ी आई, किसी ने गेट खोलकर एक लड़की को बाहर फेंका और गाड़ी तेजी से आगे निकल गई।
राजन ने अपनी गाड़ी रोक दी। वह घबराया और जिज्ञासा के कारण आगे बढ़ा। सड़क पर पड़ी लड़की
हल्की-हल्की सिसक रही थी। जब उसने चेहरा देखा, तो उसकी साँसें रुक गईं—यह तो वही लड़की थी, सुहानी!
उसकी हालत बुरी थी, कपड़े अस्त-व्यस्त थे और चेहरे पर खरोंचों के निशान थे। ऐसा लग रहा था कि किसी ने उसके साथ ज्यादती की थी। राजन ने उसे सहारा देकर उठाया।
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“तुम ठीक हो?” उसने घबराए स्वर में पूछा।
सुहानी की आँखों में आँसू थे। वह कुछ बोल नहीं पा रही थी, बस काँप रही थी।
राजन ने उसे अपनी कार में बैठाया और सोचा कि उसे अस्पताल ले जाए, पर तभी सुहानी ने उसकी कलाई पकड़ ली, “क..कृपया… मुझे घर छोड़ दो…”।
राजन ने कुछ पल सोचा, फिर गाड़ी स्टार्ट कर दी। रास्ते भर सुहानी चुप थी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, पर वह कुछ बोल नहीं पा रही थी।
जब वह उसके घर पहुँचा, तो सुहानी ने कहा, “कृपया किसी को मत बताना…”।
राजन ने सहमति में सिर हिलाया। वह कुछ और कहना चाहता था, पर सुहानी भीतर चली गई।
राजन के दिलो-दिमाग पर इस घटना का गहरा असर हुआ। इस घटना के बाद सुहानी कभी दिखाई नहीं दी।
15 साल बाद…
शराब का गिलास हाथ में लिए राजन का दिमाग झंझोर रहा था। उस रात के बाद सुहानी कॉलेज से गायब हो गई थी। किसी को नहीं पता था कि उसके साथ क्या हुआ। राजन ने कभी सच्चाई जानने की कोशिश भी नहीं की। वह जानना चाहता था, पर कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया।
पर आज, 15 साल बाद भी, उसकी आँखों के सामने वही मंजर था। सुहानी की बेबस आँखें, उसकी काँपती आवाज़—सब कुछ। क्या वह कुछ कर सकता था? क्या उसे सच का पता लगाना चाहिए था?
वह बुदबुदाया और एक बार फिर शराब की घूँट भर लिया।
सोया नहीं जा रहा था। उसके दिमाग में बस एक ही सवाल गूंज रहा था। सुहानी अब कहां होगी??क्या वह ठीक होगी? अचानक उसके मोबाइल की स्क्रीन चमकी और एक अनजान सा मैसेज आया.. ” क्या तुम्हें अब भी वह रात याद है?”
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राजन का शरीर कांप गया और उसके हाथ से गिलास छूट कर जमीन पर गिर पड़ा। यह कौन हो सकता है! उसने खुद से सवाल किया, काँपते हाथों से उसने रिप्लाई किया… तुम कौन हो??
कुछ सेकेंड बाद जवाब आया -जिसका चेहरा तुम्हारे हर शराब की बोतल में दिखता है….
मिलना चाहोगे? राजन का दिल जोड़ से धड़कने लगा।
सोचा,यह जरूर सुहानी ही है।पर यह कैसे हो सकता था?उसने तुरंत जवाब दिया.
जरूर मिलेगे, लेकिन कहां??
थोड़ी देर में जवाब आया– कॉलेज के पास वाली उसी गली में ।
राजन का पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो गया था।
उसने घड़ी देखी रात के 3:00 बज रहे थे।उसने बिना समय गंवाए जैकेट पहन कर बाहर निकल ही रहा था, कि अचानक उसको डर जैसा महसूस हुआ।
अपने कमरे में वह लौट आया और जा भी नहीं सका ।
पता नहीं कब नींद आ गई।कल सुबह देर से आँख खुली। सर पूरा भारी भारी लग रहा था।
जल्दी-जल्दी नाश्ता करके सुहानी का पता लगाने राजन निकल पड़ा। बहुत खोजबीन के बाद पता चला सुहानी ने आत्महत्या कर ली थी।
यह जानकारी मिलते हैं राजन के दिलों दिमाग पर गहरा असर पड़ा।
उसे लगा शायद वह उसे बचा सकता था ।सुहानी उसे काफी उम्मीद भरी नजरों से अंतिम बार देख रही थी।
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जैसे कह रही हो मुझे थाम लो..।
लेकिन कुछ नहीं कर सका था।
रात के 12:00 बज रहे थे।
राजन ने आखिरी बार अपने कमरे को देखा। शराब की बोतलें, फर्श पर टूटे काँच, बिस्तर पर बिखरे पुराने अख़बार। वह आईने के सामने खड़ा हो गया।
“कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता…” उसने खुद से बुदबुदाया।
फिर धीरे से उसने दराज खोली, और पिस्तौल बाहर निकाली।
एक ठंडी मुस्कान उसके चेहरे पर आई। “लेकिन शायद, मौत के बाद… कुछ दर्द कम हो जाए।”
धमाक!!!
कमरे में सन्नाटा छा गया। दीवार पर खून के छींटे थे। फर्श पर गिरी पिस्तौल से धुआँ उठ रहा था।
सुबह की पहली किरण…
सुबह की हल्की धूप खिड़की से अंदर आ रही थी। पुलिस के जवान कमरे के अंदर खड़े थे। किसी ने राजन का सुसाइड नोट उठाया और पढ़ा—
“कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता…”
पुलिस अफसर ने एक गहरी साँस ली और नोट बंद कर दिया।
कमरे के कोने में रखे आईने में अब भी राजन की धुंधली परछाईं झलक रही थी।
शायद, मौत के बाद भी, कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता…।
ममता सिंह, स्वरचित