कुछ बेटे भी पराये होते है – संगीता अग्रवाल :  Moral Stories in Hindi

” माँ मुझे भी अपना कमरा चाहिए जैसे भैया का बनवा रहे हो मेरा भी एक बनवा दो ना!” पंद्रह साल की नंदिनी अपनी माँ गीता से बोली.

” तू दादी के कमरे मे रहती तो है अपना कमरा क्यों चाहिए फिर तुझे!” गीता ने उससे पूछा.

” माँ दादी मुझे उस कमरे मे कुछ नही रखने देती बोलती है मेरे कमरे मे फालतू का कुछ नही रखना… मैं अपना एक कमरा चाहती जिसमे अपनी पसंद की चीजे रख सकूँ… अपने हिसाब से सज़ा सकूँ!” नंदिनी ठुनक कर बोली.

” अरे लड़कियाँ तो चिड़ियाँ होती है जो दूसरे घर उड़ जाती है .. तू भी जब अपने घर जायेगी तब सजाइयो अपना कमरा!” नंदिनी की दादी शारदा जी हँस कर बोली.

” फिर भैया के लिए क्यों बन रहा है कमरा!” नंदिनी पैर पटकती हुई बोली.

” वो तो इस घर मे ही रहेगा हमेशा… जैसे तू अपने घर चली जायेगी शादी के बाद वैसे उसकी बीवी भी तो आयेगी यहाँ!” दादी ने समझाया.

अब बस नंदिनी का तो ये जैसे सपना ही बन गया… उसका अपना कमरा होगा जिसे वो अपनी मर्जी से सजायेगी ! ! 

कुछ साल बीते नंदिनी के भाई निशांत की इंजिनयरिंग पूरी हो गई और नौकरी पर लगते ही उसने अपने साथ पढ़ने वाली पाखी से शादी का एलान कर दिया. नंदिनी भी अब कॉलेज मे आ गई थी.

” माँ मैं शादी करूँगा तो बस पाखी से!” एक दिन निशांत अपनी माँ से बोला.

” पर बेटा तेरे पापा गैर बिरादरी मे शादी को कभी हाँ नही करेंगे!” माँ ने समझाया.

” माँ मैं शादी तो पाखी से ही करूँगा भले आप लोग के आशीर्वाद से या बिन आशीर्वाद!” निशांत ने दो टूक कहा.

” अरे लड़के का जहाँ मन है करने दो ना शादी… ज़िद मे लड़के को दूर ना कर दो खुद से… मैं अपने पोते के साथ हूँ.. तुम लोग साथ दो या ना दो!” शारदा जी बोली.

मजबूरी मे ही सही निशांत के पापा धीरज को भी इस शादी की अनुमति देनी पड़ी. अब नंदिनी भी नौकरी करने लगी है! 

निशांत की शादी हो गई… निशांत और पाखी दोनो नौकरी करते थे… दोनो सुबह के गए रात को ही घर आते.. और खा पीकर अपने कमरे मे चले जाते.

” बेटा पाखी मैं समझती हूँ तुम लोग थक जाते हो पर बेटा थोड़ा वक़्त हम लोगों के साथ भी बैठा करो हम भी तो तुम्हारे अपने हैं!” गीता ने एक दिन बहु से प्यार से कहा.

” मम्मी सारे दिन तो हम बाहर खटते है कुछ देर तो अपने लिए जीने दिया करो!” पाखी गुस्से मे टका सा जवाब दे कमरे मे चली गई अपने. गीता की आँखों मे आँसू आ गए… बहु तो अपनी बनी नही बेटा भी दूर हो गया.

नंदिनी ये सब देख रही थी… उसे बहुत बुरा लगा उसने पास आ माँ के आँसू पोंछ उन्हे चुप कराया। 

” माँ हम ऑफिस के पास अपना घर ले रहे हैं ये घर हमे दूर पड़ता है… पाखी का कहना है आने जाने मे इतना समय खराब होने के कारण हम अपने लिए समय नही निकाल पाते हैं!” एक दिन निशांत ने ऑफिस से आकर कहा.

” पर बेटा यहाँ सब हैं वहाँ अकेले से पड़ जाओगे!” गीता ने कहा जबकि मन ही मन सोच रही थी ऑफिस से बचा वक्त दोनो अपने लिए ही तो रखते है कौन सा किसी ओर के साथ उठते बैठते है ।

” माँ कौन सा बहुत दूर जा रहे है हम आप भी ना…!” ये बोल निशांत कमरे मे चला गया.

निशांत और पाखी के जाने के बाद शारदा जी को ऐसा सदमा लगा की बिस्तर पकड़ लिया और दो महीने बीतते बीतते दुनिया ही छोड़ दी उन्होंने. निशांत उनके मरने पर आया उसके बाद तो माँ के फोन करने पर बहाने ही बनाता रहा ।

धीरज जी पहले बेटे का घर से जाना फिर माँ का यूँ दुनिया से चले जाना बर्दाश्त नही कर पा रहे थे… गुमसुम से हो गए. 

एक दिन कहीं से नंदिनी के लिए रिश्ता आया… गीता जी ने धीरज जी से बात भी की! 

” माँ मैं शादी नही करूँगी मैं भैया की तरह आप लोगों को छोड़ कर नही जा सकती!” तभी वहाँ आ नंदिनी बोली.

” बेटा दुनिया की यही रीत है बेटियों को पराये घर जाना ही होता है !” धीरज जी बोले.

” पापा बेटा भी तो चला जाता पराये घर शादी के बाद फिर बेटियों को ही क्यों ऐसा बोला जाता है… मैं नही मानती ऐसी रीत को जो एक माँ बाप को अकेला कर दे…. आज के बाद कोई मेरी शादी की बात नही करेगा… मैं बेटी नही बेटा बनकर रहूँगी आप लोगों की देखभाल करूँगी यही मेरा फैसला है.!” नंदिनी दृढ़ता से बोली.

“पर बेटी ऐसे जिंदगी नही कटती!” गीता जी ने समझाया.

” माँ शादी से जरूरी आप हो मेरे लिए फिर भी अगर कोई ऐसा मिला जो मुझे आप लोगों की जिम्मेदारी उठाने से ना रोके तो मैं शादी कर लूंगी पर आप लोगों को छोड़ कर कभी नही!” नंदिनी बोली।

” पर बेटा कोई लड़का अपने माता पिता के साथ हमारी जिम्मेदारी क्यो उठाएगा !” धीरज जी बोले।

” पापा मैं अच्छा कमाती हूँ आप लोगो की जिम्मेदारी खुद उठा सकती हूँ । रही मेरी शादी की बात तो आप मेरे लिए कोई अनाथ लड़का ढूंढ लीजियेगा जिससे उसे भी माँ बाप मिल जाये और मैं भी आपको छोड़ कर ना जाऊं !” नंदिनी हँसते हुए बोली। मजाक मे ही सही नंदिनी बहुत बड़ी बात बोल गई । वो अपने माता पिता के लिए किसी अनाथ से शादी को तैयार थी और एक बेटा है जिसके लिए सब किया वो बुढ़ापे मे माँ बाप को अनाथ कर गया । धीरज और गीता जी ने उसे गले लगा लिया। 

” बेटा ये तेरा कमरा है… इसे जैसा चाहे वैसा रख मैं गलत था जो सोचता था बेटियां पराई होती हैं और बेटे अपने… पर सच यही है… बेटियाँ कभी पराई होती ही नही… हाँ ये बात अलग है कुछ बेटे जरूर पराये हो जाते!” धीरज जी निशांत का कमरा नंदिनी को सोंपते हुए बोले.

नंदिनी धीरज जी को देख रही थी । आज उसका सपना पूरा हो रहा था पर ऐसे जैसा उसने कभी सोचा ही नही था । 

दोस्तों आज समय बदल गया है… अब बेटियाँ भी सहारा बनती है.. और कुछ बेटे भी पराये हो जाते हैं… । उम्मीद है नंदिनी को ऐसा जीवनसाथी मिल जाये जो उसे उसके कर्तव्य से ना रोके ।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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