कोरा कागज़ – अमित किशोर

इंदु ने जब पहली बार अहान को अपनी गोद में लिया तो ऐसा लगा जैसे प्रसव की सारी पीड़ा एक पल में ही छू मंतर हो गई हो। पहली संतान के रूप में बेटी पाने की हसरत तो थी पर बेटे के प्रथम स्पर्श ने इंदु को मातृत्व की वो मिश्री दे दी जिसके मिठास के सामने बेटा और बेटी का अंतर गौण हो गया। ऐसा ही कुछ हाल मोहन का भी था।

मोहन और इंदु की शादी को तकरीबन सात बरस हो चुके थें पर आंगन किलकारियों से अब तक सूना ही था पर जैसे ही अहान ने अपने आने की दस्तक दी, वह सात साल का इंतजार अदृश्य हो गया। सास ससुर के पूजा पाठ का ही तो परिणाम था अहान। विलंब से हुए संतान के कारण इंदु फिर दुबारा मां न बन सकी और अहान ने ही अगली पीढ़ी की जिम्मेदारी अपने नन्हें कांधों पर ले ली।

अहान जैसे जैसे बड़ा होने लगा, स्कूल जाने लगा, मोहन के मन में शंकाओं के बीज जन्म लेने लगे। उसे हमेशा डर रहता कि आने वाले समय में अहान कैसा इंसान बनेगा। शुरू से ही अपनी परवरिश में इंदु और मोहन ने अहान के लिए संस्कार परोसे पर शक कभी दूर नहीं हुआ।

मोहन के मन का डर जब हद से ज्यादा उछाले मारता, कहता, ” कहीं ऐसा न हो, राम के घर रावण पल रहा हो।” इंदु बहुत गुस्सा करती और कहती, ” कभी तो अच्छा भी सोच लिया करो, आप। हमारी परवरिश से कोई रावण बन ही नहीं सकता। बच्चे तो कोरे कागज़ की तरह होते हैं। मां बाप जो तस्वीर उकेरेंगे, कल उसी में बच्चे रंग भी भरेंगे। एक ही तो बच्चा है अपना। क्यों, इतना सोचते हो !! सब ईश्वर पर छोड़ दो। ” अहान की जब भी स्कूल से कोई शिकायत आ जाती पति पत्नी के बीच शास्त्रार्थ शुरू हो जाता। 

“आज स्कूल से शिकायत आ रही है, कल पड़ोस के घरों के शीशे तोड़ेगा , बड़े होने पर लड़कियों के पीछे लगेगा, आने वाले समय की तुम्हें कुछ भी फिकर नहीं। “

“फालतू का सोचो मत, कुछ नहीं होगा। बच्चा है तो शैतानी करेगा ही।”

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यह एक दिन की बात नहीं थी। दरअसल अहान को शरारतें करने में मजा आता था। थोड़ी-बहुत शैतानी तो सभी बच्चे करते थें, वह तो जैसे सब पूर्व योजनानुसार करता था। मोहन खुद बहुत सीधा साधा सज्जन आदमी था। मोहन की तरह इंसान मिलना बहुत मुश्किल था। उसे अफसोस यही था कि इंदु के प्यार और दुलार ने अहान को कभी अनुशासित होने ही नहीं दिया।इसी लाड़ दुलार और प्यार के छांव तले कई साल बीत गए।

जैसे तैसे अहान ने इंजीनियरिंग कर ली पर नौकरी नहीं मिली। डिग्री लेकर केवल इधर उधर भटकता रहा। इंदु ने सोचा कि अगर अहान की शादी हो जाए तो स्त्री सौभाग्य से अहान का भाग्य भी बदल जाएगा। उम्र के एक पड़ाव पर मोहन ने इंदु की हर बात पर हामी भरी और अहान के लिए दुल्हन ढूंढी जाने लगी।

सवाल ये था कि एक यायावर जैसे इंजीनियर से भला शादी कौन करे !!! रिश्तेदारी में खोज हुई पर दुल्हन नहीं मिली। सभी अहान के तुनक मिजाजी से वाकिफ तो थें ही, कोई जान बूझकर गड्ढे में बेटी डालना नहीं चाहता था। फिर से अहान की शादी के लिए मन्नतें मांगी गई पर इस बार इंदु और मोहन को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। एक रिश्ता खुद चलकर अहान के लिए आया जिसे बिना कुछ सवाल जवाब किए इंदु और मोहन ने स्वीकार कर लिया। पायल से अहान की शादी हो गई।

पायल एक औसत दर्जे की सुंदर पर पढ़ी लिखी लड़की थी। अहान के साथ शादी करना उसकी और उसके मायके की थोड़ी आर्थिक मजबूरी थी पर वो अपने आप में बहुत मजबूत थी। नौकरी करने की चाहत थी और डिग्री भी ले रखा था उसने। जल्द ही सरकारी स्कूल में सरकारी टीचर के रूप में भर्ती हो गई।

अहान को भी पायल के रूप में एक सहारा मिल गया पर उसका स्वभाव नहीं बदला। अपनी जिंदगी के साथ रोज़ नई नई कारीगरी करता। इंदु और मोहन के लिए पायल के आ जाने से अहान कहीं नेपथ्य में जा चुका था। इधर पायल ने अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों से पूरे घर को संभाल लिया।

जिस जुबान पे अहान ने कब्जा किया हुआ था अब वहां से केवल पायल का नाम ही सुनाई देता।बुढ़ापे और लाचारी के दहलीज़ पर खड़े दोनों पति पत्नी पायल की तारीफ करते नहीं अघाते। जब भी कभी उनसे मिलने कोई रिश्तेदार या पड़ोसी आता, पायल के लिए इंदु की तारीफों का टेप चालू हो जाता। शायद इसी बहाने इंदु अपने लाड़ले की नाकामयाबी को पायल के स्वभाव से ढकने की कोशिश करती। 

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इंदु कहती, “कितना ध्यान रखती है सबका, हमारी पायल। सुबह घर का सारा काम करके जाती है स्कूल और आते ही फिर अपने कामों में लग जाती है। मुझे तो कुछ करने ही नहीं देती। कहती है, आप सबकी जिम्मेदारी मेरी है। आपने भी तो मेरी खुशियों का ध्यान रखा। मुझे नौकरी करने दिया। मुझ पर विश्वास किया। इस विश्वास और अपनी जिम्मेदारियों को भला कैसे छोड़ सकती हूं मैं? “

आखिरकार, अहान की जिंदगी में लेडी लक ने काम किया। नैनीताल में एक टूर एंड ट्रैवल कंपनी में उसकी नौकरी लग गई। पहले तो वो जाने को तैयार ही नहीं हुआ। पर पायल के समझाने पर थोड़ी बात समझ में आई। मोहन ने अपने बेटे अहान से कहा, ” ये तो पत्थर पर दूब उगने जैसा हुआ है, बेटा।

अब तो थोड़ी समझदारी दिखाओ। पहला कदम बढ़ाने के लिए ईश्वर ने तुम्हें रास्ता दिखाया है तो आगे बढ़ो। कल को और कोई बेहतर रास्ता मिले, तो लौट आना।” पायल के संगत में समझदार तो अहान हो ही रहा था। इंदु के लिए अहान की पायल से शादी कारगर सिद्ध हुई थी।

अहान को नैनीताल के लिए छोड़ते हुए मोहन और इंदु के आंसू रुक नहीं रहे थें। अहान का भी बुरा हाल था पर एक सुकून था मन में। सुकून इस बात का कि जिस जिम्मेदारी की चाहत मोहन और इंदु ने पूरी जिंदगी उससे की थी, आज वही जिम्मेदारी पायल निभाने को तैयार थी।

उसे सुकून था कि एक बेटे के जिम्मेदारी एक बहु उस बेटे से कहीं बेहतर निभा सकती थी। ट्रेन की सीटी बजते ही अहान ने स्टेशन पर पायल को गले से लगाकर भींच लिया। मानो कह रहा हो अब इस कोरे कागज़ पर तुम ही रंग भरो, पायल। 

पायल भी नम आंखों से उसे जिम्मेदारियों के लिए बेफिक्री का एहसास करा रही थी और अपने सास ससुर के साथ अहान के नई जिम्मेदारियों के लिए शुभकामनाएं दे रही थी……..

#जिम्मेदारी

स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित

अमित किशोर श्रीवास्तव

धनबाद (झारखंड)

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