कौन अपना- कौन पराया – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

एक क्षणिक आस और गोद मे लिये अपने आठ माह के रानू के साथ उर्मि बदहवास सी हॉस्पिटल के खाली पड़े कॉरिडॉर में चक्कर पे चक्कर लगा रही थी।इतना बड़ा हॉस्पिटल,पर उसमें सन्नाटा पसरा पड़ा था।उर्मि के सामने ही उसके सागर को सामने वाले रूम में ले जाया गया था।उसके बाद कही से कोई जवाब नही।आखिर कैसे पता करे, कोई दिखाई भी तो नही देता।बेबसी में बार बार उसकी रुलाई फूट पड़ती।

     सन 2021 के वे भयावह दिन जब पूरे विश्व मे कोरोना महामारी का प्रकोप फैला था,तभी सागर को भी कोरोना हो गया।घर के ही एक कमरे में वह कोरेन्टाइन हो गया।शेष फ्लैट में अपने मात्र आठ माह के रानू के साथ अकेली रह गयी उर्मि।एक ही फ्लेट में पूरे 10 दिन सागर अलग कमरे में रहा, पास होते हुए भी बहुत दूर।अपने धर्म मे अस्पर्शियता को अभिशाप माना जाता है,पर उस दौर में तो एक पति अपनी पत्नी और अपने नवजात बेटे को छूना तो दूर देख भी नही पा रहा था।उसे खाना भी ऐसे दिया जा रहा था

जो कभी किसी जानवर को भी उस तरह से न दिया जाये।धीरे से कमरे के दरवाजे को थोड़ा सा खोलकर नीचे प्लेट में ऊपर से खाना रख देना।बर्तन तक न छू जाये।उर्मि मात्र 22 वर्ष की तो थी दो वर्ष ही शादी को हुए थे,कि गोद मे रानू आ गया,उसे कहाँ इतना हौसला था जो वह इस स्थिति को अकेले संभाल ले।उसने गाँव मे सागर के भाई व अपने सास ससुर से कहा भी कि कोई तो उसके पास आ जाये,पर सबने मीठे से बोलकर सहानुभूति दर्शाकर कोरोना के कारण आने से मना कर दिया।

घर मे राशन खत्म हो गया था,वो तो गनीमत थी कि सोसाइटी का गार्ड दरवाजे पर दूध रख जाता था तो रानू के तथा चाय बनाने के काम आ जाता था।लॉक डाउन के कारण दुकानें भी बंद थी।जैसे ही सोसायटी में यह पता चला कि सागर को कोरोना हो गया है तो सोसायटी की मैनेजमेंट ने उनकी मंजिल को ही लॉक डाउन कर दिया।उर्मि समझ ही नही पा रही थी वह करे तो क्या करे,किससे मदद मांगे?जब अपने सगे ही नही आ रहे थे तो गैरो से अपेक्षा रखना भी निर्रथक ही था।

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तभी अचानक मोबाइल की घण्टी बजी,कई दिनों बाद किसी ने फोन किया,यह उर्मि के लिये सुखद आश्चर्य था।फोन सागर के मित्र आशू का था।उसने कहा भाभी बिल्कुल भी चिन्ता न करना,मैं सब व्यवस्था करवा दूंगा।उसने एक स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से उर्मि को राशन और जरूरत की सब चीजें भिजवा दी।उर्मि ने राहत की सांस ली।वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये आशू ने सागर से भी बात की।आज उर्मि कई दिनों बाद सहज हुई।शाम को उसने सागर के लिये खाना बनाया,

पर आज सागर ने दरवाजा नही खोला,खटखटाने के बाद भी।उर्मि घबरा गयी, उसे कुछ सूझा ही नही तो उसने आशू को फोन कर दिया।आशू ने भी सागर से फोन संपर्क करने का प्रयास किया पर फोन नही उठा तो आशू समझ गया कि मामला गड़बड़ है।वह सागर के फ्लैट पर तो जा नही सकता था सो उसने उर्मि से कहा भाभी,मैं एम्बुलेंस की व्यवस्था करता हूं, सागर को एडमिट कराना पड़ेगा,हॉस्पिटल में बेड की व्यवस्था मैं कर रहा हूँ,आप फोन पर सम्पर्क में रहना,ईश्वर सब ठीक करेगा।

      दो घंटे बाद एम्बुलेंस आ गयी  किसी प्रकार ताला तोड़कर सागर के कमरे में प्रवेश किया गया तो देखा सागर एक हड्डियों के ढांचे में परिवर्तित हो गया था और अब वह चेतनाशून्य अवस्था मे था।काफी मना किये जाने के बावजूद  उर्मि हॉस्पिटल गयी,जहां सन्नाटा पसरा पड़ा था।हॉस्पिटल के कर्मचारी सागर को अंदर ले गये साथ ही उर्मि को वापस जाने की हिदायत भी दे दी गयी।अब सागर के बिना उर्मि कैसे जाये।आशू को जब फोन से जानकारी मिली कि उर्मि हॉस्पिटल में है तो वह किसी प्रकार हॉस्पिटल से उर्मि को अपने घर ले आया,जहां वह अपनी माँ के साथ रहता था।

      दो दिन बाद ही सागर के अंतस में विलीन हो जाने का समाचार हॉस्पिटल से आ गया।उर्मि की हालत खराब हो गयी थी।डेड बॉडी मिलनी नही थी,अंतिम क्रिया कोरोना प्रोटोकाल से वही होनी थी।बहुत प्रयास और प्रार्थना से उर्मि को दूर से सागर के मृत शरीर को दिखा दिया गया।उर्मि गश खा कर गिर पड़ी,किसी प्रकार आशू उर्मि को घर ला पाया जहां उसकी मां ने उर्मि को संभाला।

      गावँ में सागर के भाई व माता पिता को सूचना भिजवा दी गयी,पर वे आ ही नही सकते थे।आशू ने कहा भी कि यदि वे आना चाहे तो वह प्रशासन से विशेष अनुमति दिलवाने का प्रयास कर सकता है।पर उनका उत्तर था जब बेटा रहा नही,उसका शरीर भी पंच तत्व में विलीन हो चुका तो अब आकर क्या करेंगे और हममें से किसी और को कुछ हो गया तो और मुसीबत।इस सब वार्ता में उन्होंने एक बार भी उर्मि के विषय मे कुछ भी नही पूछा।आशू को बड़ा आश्चर्य हुआ, पर उसने उर्मि से कुछ नही कहा।

           आशू ने कोशिश करके कुछ दिनों बाद उर्मि का जॉब लगवा दिया,उस समय वैसे भी कंपनियों का काम घर से ही हो रहा था,इसलिये उर्मि को जॉब में दिक्कत नही आयी।समय अपनी गति से चलायमान था।कोरोना का काल भी बीत गया।इस बीच उर्मि के ससुराल वालों ने उर्मि की कोई सुध नही ली।उर्मि अकेले ही जीवन नौका को खे रही थी।हर मौके पर सहायता का सम्बल बन कर आशू ही आगे आता रहा।उर्मि अब कभी भी आशू के घर उसकी माँ से भी मिलने चली जाती थी।आशू की माँ उर्मि को अपनी बेटी की तरह ही दुलार करती थी।

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     एक दिन आशू की माँ उर्मि के फ्लैट पर ही आ गयी।उर्मि माँ को देख खूब खुश हुई।माँ ने भी उर्मि को खूब आशीर्वाद दिया।फिर अचानक माँ उर्मि से बोली,बेटा आज मैं तुमसे कुछ मांगने आयी हूँ, मेरी मांग पूरी करोगी ना बेटी?अरे माँ जी कैसी बात कर रही हैं, मैं भला आपको क्या दे सकती हूं,आपने तो मुझे नया जीवन दिया है।

        बेटी,आशू की शादी मैंने बड़े अरमान से की थी,पर वह आशू को छोड़ अपने प्रेमी के पास चली गयी,इससे आशू एक बार तो बिल्कुल अवसाद में ही चला गया था बड़ी मुश्किल से उसे संभाला है।उनका तलाक हो चुका है,पर आशू अब शादी के लिये तैयार ही नही होता।पर ऐसे क्या जिंदगी चलती है।मेरी हार्दिक अभिलाषा है,बेटी तुम आशू का घर संभाल लो,मना मत करना बेटी,आशू को अपना लो।अवाक सी उर्मि मां के चेहरे को देखती ही रह गयी।

      माँ बोली बेटा कोई दवाब नही यदि तुम नही चाहोगी तो भी हम तुम्हारे निर्णय को स्वीकार करेंगे,अपना नसीब मानेंगे।अच्छा बेटा चलती हूँ।माँ उठकर दरवाजे की ओर बढ़ चली,तभी उर्मि बोली माँ आशीर्वाद नही दोगी?बेटीईईई कहते कहते माँ ने उर्मि को अपने मे समेट लिया।माँ को लेने आया आशू दरवाजे पर खड़ा उर्मि के मासूम चेहरे को देख रहा था।मां उन्हें छोड़ बाहर चली गयी।सागर से तजी उर्मि को आशू ने अपने आगोश में ले लिया।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

#ये जीवन का सच है साप्ताहिक विषय पर आधारित कहानी:

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