‘कोमल हूँ, कमज़ोर नहीं ‘ – विभा गुप्ता

  ” मैं तुमलोगों को छोड़ूँगी नहीं, दोहरे चेहरे का मुखौटा उतारकर समाज को तुम्हारा असली रूप न दिखाया तो मेरा नाम कृतिका नहीं।”।एक भद्दी-सी गाली देते हुए बदहवास-सी कृतिका सारंग के कमरे से निकली और लगभग दौड़ती हुई घर चली गई।

          तीन महीने पहले ही कृतिका ‘ग्रीनलैंड इंटरनेशनल’ में होटल रिसेप्शनिस्ट के पद पर अपाॅइंट हुई थी।होटल का मालिक तो श्रीधर शर्मा थें लेकिन पूरा कार्यभार उनका मित्र सारंग ही संभालता था।कृतिका को यह जाॅब भी सारंग की ही सिफ़ारिश पर ही मिली थी क्योंकि उसका साँवला रंग देखकर श्रीधर ने तो ‘ना’ ही कह दिया था।बस तभी से वह सारंग का बहुत सम्मान करने लगी थी।अपने काम से फ़्री होती तो वह सारंग के साथ ही कभी कॉफ़ी पीती तो कभी उसके साथ लंच करती।

          सारंग के साथ कृतिका की निकटता किसी से छिपी न थी, उसके सहकर्मियों ने कई बार उसे सारंग के रंगमिज़ाजी स्वभाव के लिए उसे आगाह किया लेकिन वह यह सोचकर नज़रअदाज़ कर देती कि जिस इंसान ने उसे नौकरी दिलवाकर उसपर एहसान किया हो,वो तो गलत हो ही नहीं सकता।

          एक दिन सारंग ने जब कृतिका से कहा कि आज कुछ एक्स्ट्रा वर्क है,तुम रुक जाना तो वो मना न कर सकी।सात बजे जब सभी स्टाफ़ चले गये तो सारंग ने उसे अपने केबिन में बुलाया।वहाँ जाकर उसने सारंग के साथ दो-तीन संभ्रांत लोगों को बैठे देखा तो चौंक गई।उसे कुछ खटका-सा लगा,वह मुड़कर जाने लगी तो सारंग ने लपककर उसका हाथ पकड़ लिया और बोला कि आज इन लोगों को खुश कर दो।सारंग, जिसे वह अपना हमदर्द समझती थी, उसका ऐसा घिनौना रूप देखकर तो उसके पैरों तले ज़मीन ही निकल गई।

उसने साधू-बाबाओं के दोहेरे रूप के बारे में तो सुन रखा था लेकिन ऐसे एजुकेटेड और हाइ सोसाइटी नकाबपोशों को आज पहली बार देख रही थी।सारंग की चंगुल से उसने स्वयं को छुड़ाना चाहा तो समाज के दोनों सफ़ेदपोश उसकी ओर बढ़े तब वह चंडी बन गई।वह अकेली-निहत्थी अवश्य थी लेकिन कमज़ोर नहीं, उसने अपने कुदरती शस्त्र नाखून और दाँत का प्रयोग कर स्वयं को उनके चंगुल से मुक्त किया और उनके चेहरे पर लगे समाजसेवक के मुखौटे को अनावृत करने का ठान लिया।

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          अगले दिन जब कृतिका सारंग की करतूतों का पर्दाफ़ाश करने श्रीधर के पास जाने लगी तो सभी ने उसे समझाया कि जाने से कोई फ़ायदा नहीं, सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं लेकिन वह नहीं मानी और अंदर गई तो वहाँ का दृश्य कुछ और ही था।सारंग पहले ही कृतिका के खिलाफ़ श्रीधर के कान भर चुका था।श्रीधर ने उसे एहसानफ़रामोश कहा और बोला कि काम नहीं करना तो रिज़ाइन कर दे।

          कृतिका के पास कोई चारा नहीं था।उसने नौकरी छोड़ दी लेकिन सारंग को बेनकाब न करने का अफ़सोस उसे अभी भी था।एक दिन उसकी मुलाकात श्रेया से हुई जो एक एनजीओ में काम करती थी और उसकी सहेली भी थी।उसने श्रेया को अपनी परेशानी बताई तो श्रेया ने मुस्कुराते हुए कहा, ” तू अपनी नौकरी छोड़ दे।” 

   ” क्या मतलब! फिर करुँगी क्या?” कृतिका ने पूछा तो श्रेया बोली कि तू फिर से सारंग के होटल में रिसेप्शनिस्ट बन जा। ” लेकिन कैसे” पूछने पर श्रेया ने उसके कान में कुछ कहा जिसे सुनकर कृतिका मुस्कुराने लगी।

          कुछ दिन बाद कृतिका ने श्रीधर को एक माफ़ीनामा मेल करके फिर से उस होटल को ज्वाइन कर लिया।इस बार उसका लुक देखकर सभी हैरत में पड़ गये।मिनी स्कर्ट, टाॅप , ज्वैलरी और पैरों में पहने हाई हील वाली कृतिका को देखकर तो सारंग भी दंग रह गया।वह सारंग के पास रहने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देती थी।सारंग भी मछली जाल में फँसती देख बहुत खुश हो रहा था।




      फिर एक दिन जब सारंग ने उसे रुकने के लिए कहा तो वह तुरंत तैयार हो गई।डिनर के बाद जब वह सारंग के केबिन में गई तो तीन नये चेहरे देखकर वह ज़रा भी नहीं हिचकचाई,मुस्कुराते हुए सबका स्वागत किया।बारी-बारी से सभी उसे छूने का प्रयास कर रहें थें,वह भी मुस्कुरा रही थी और जैसे ही एक ने उसे अपनी ओर खींचने का प्रयास किया, तभी कमरे में पहले से छिपे बैठे श्रेया और उसका एक सहयोगी तालियाँ बजाते हुए बाहर निकल आये।श्रेया बोली, ” विधायक जी, कल आप अखबार के मुखपृष्ठ पर छपेंगे और..।”  ” मंत्रीजी तो टेलीविजन पर अपना कुकृत्य करते ही दिखाई देंगे।सब कुछ मेरे मोबाइल फ़ोन में कैद हो चुका है।” हँसते हुए कृतिका बोली तो सारंग सहित तीनों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।बौखलाते हुए सारंग कृतिका पर चिल्लाया, ” तो यह है तुम्हारा असली रूप! मुझसे नाटक करते तुम्हें शर्म …।”

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” असली रूप! नाटक! शर्म!..हा-हा।” हँसते हुए कृतिका बोली, ” तुम जैसों के चेहरों पर पड़े नकाब को उतारने और समाज को तुम्हारा असली रूप दिखाने के लिए ही तो मैंने यह मुखौटा लगाया था।मैं कोमल हूँ, कमज़ोर नहीं।” कहकर वह श्रेया के साथ बाहर निकलने लगी तो श्रीधर आ गया और माफ़ी माँगते हुए इस मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की मिन्नत करने लगा लेकिन उसने एक न सुनी।

        अगली सुबह कृतिका फिर से जब नया काम तलाश कर रही थी कि उसकी नज़र एक खबर पर ठहर गई, ” बिहार के एक अनाथालय में मासूमों के साथ दुराचार करने वाला सफ़ेदपोश सबूतों के अभाव में बाइज्ज़त बरी।” कृतिका का मन व्यथित हो उठा,उसने निर्णय किया कि वह हर उस आदमी को बेनकाब करेगी जो चेहरे पर चेहरा लगाकर मासूम लोगों का शोषण करता है और बेखौफ़ दोहरी ज़िंदगी जीता है।उसने ट्रैवल एजेंट से एक टिकट बुक कराया और अपने नये सफ़र के लिये निकल पड़ी। 

                   — विभा गुप्ता 

                       स्वरचित 

        # दोहरे_ चेहरे

          अपने आसपास दोहरे चेहरे वालों से सामना हो जाए तो उसकी असलियत सबके सामने लाने प्रयास अवश्य करना चाहिए ताकि बाकी लोग उसका शिकार न हो सके जैसा कि कृतिका ने किया।

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