कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता ठाकुर साहब – मीनाक्षी सिंह

निकम्मा घर में ही पड़ा रहता हैँ ,शादी भी हो गयी ,अब भी कोई ज़िम्मेदारी का एहसास नहीं ! मैं क्या तेरा पूरा जीवन खर्च उठाऊँगा ! नालायक कहीं का ,बहू के ज़रूरी सामानों के लिए भी पैसा मुझसे ही मांगता हैँ ! बिल्कुल शर्म हया नहीं हैँ इसकी आँखों में ! देखों अभी भी कैसे रोटी तोड़ रहा हैँ ! मेरी बात से जूँ भी नहीं रेंग रहा इसके कानों में ! पता हैँ कहाँ से पैदा होती हैँ रोटी ,कितनी मेहनत करनी पड़ती हैँ इसे कमाने के लिए ! इस से अच्छा मैं

बेऔलाद ही रहता तो ज्यादा अच्छा था ! आज तो ठाकुर साहब का पारा कुछ ज्यादा ही भारी था ,जो अपना स्कूटर साफ करते करते सुबह सुबह ही अभी हाल ही में ब्याहे अपने बेटे पर बरस रहे थे !

सारे मोहल्ले वाले कान लगाकर सुनने में लगे थे तभी गर्गजी जी से  ना रहा गया वो नीम की दातूँन करते करते अंगोछा बनियान पहने ठाकुर साहब के घर ही आ धमके !

का हो ठाकुर साहब ,सबेरे सबेरे बेचारे अनुराग (बेटे ) पर क्यूँ बरस रहे हो ! अभी तक तो ठीक था पर अब घर में बहू आ गयी हैँ ,कम से कम उसके सामने तो उसके पति का अपमान मत करो ! वो क्या सोचेगी ,अभी ब्याह के दो महीने ही तो हुए हैँ ! अभी तो ठीक से किसी को जान भी ना पायी होगी बेचारी ! और क्या कह रहे हो ठाकुर साहब कि शादी हो गयी ,

जब अनुराग के लिए कोई भी रिश्ता आता  तो पूरे मोहल्ले को इकठ्ठा कर लल्लूलाल की गुमटी पर छाती चौड़ी कर बोलते – आज फलाने के घर से रिश्ता आया हैँ ,आज शहर के सबसे खानदानी घर से रिश्ता आया हैँ बिटवा के लिए ! वो इतना दे रहे हैँ ,इतनी ज़मीन हैँ ,इतने पैसे वाले हैँ ! हमारा नाम ही काफी हैँ तभी तो इतने बड़े बड़े रईस खानदानों से रिश्ता आ रहा हैँ ! कम से कम बेटे को तो पहले कहीं सेट करते तब करते ब्याह !

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भाईसाहब मैने तो सोचा था ये नालायक शायद ज़िम्मेदारियां आने से कुछ सुधर जायें कुछ काम करने लगे पर ये तो ठहरा ठीठ ! चिल्लाऊँ ना तो क्या करूँ ??




बेचारे का नया नया ब्याह हुआ हैँ ,आप अपने दिन भूल गए जब बाऊजी से छुपकर चोरी चोरी से भाभी जी को सिनेमा दिखाने ले ज़ाते थे ,नयी हीरो होंडा निकाल कर लायें थे भाभी जी को घुमाने के लिए ! ऐसा एक दिन भी ना ज़ाता कि आप भाभी जी को कहीं ना कहीं किसी बहाने से ले ना ज़ाते ! एक बार तो आपके स्कूल में चेकिंग आ गयी ,,आप भाभी जी के साथ शिमला घूम रहे थे बिना छुट्टी चढ़ाये ! कैसे सिट्टी पिट्टी गुल  हो गयी थी आपकी ! बाऊजी के गरियाने से कैसे भागते हुए आयें थे आप ! मैने तो बेचारे अनुराग को एक दिन भी बहू

को कहीं ले ज़ाते हुए ना देखा ! घर से बाहर भी बेचारा सोच सोचकर निकलता हैँ जब से ब्याह हुआ हैँ ! आपने पूरे मोहल्ले की नजरों में निकम्मा बना दिया है उसे ! ब्याह तो आपने ही किया हैँ उसका ,उसने तो कहा नहीं था ! छोटी मोटी नौकरी करने नहीं देते आप ,शान जो चली जायेगी आपकी ! दहेज के पैसे आयें उस से ही उसका कोई छोटा मोटा काम खुलवा देते ! बेचारा हमारा अनुराग बहुत सीधा लड़का हैँ ,कभी पलटकर आपको जवाब नहीं देता ! आपने आज कल के बच्चें देखें नहीं हैँ शायद ,माँ बाप की नाक में दम कर देते हैँ !

नहीं हो रहा उस पर पेपर क्लीयर तो कोई बात नहीं ,दुनिया में सब सरकारी नौकरी ही नहीं कर रहे ! पहले ज़माने में लगना आसान था ,पर आजकल की कटऑफ़ ,प्रतिस्पर्धा देखी हैँ आपने जो हर दिन दस बातें सुना देते हैँ उसे ! ब्याह के बाद तो वैसे भी ध्यान भटक जाता हैँ थोड़ा ! य़ा तो इंतजार करते पैरों पर खड़े होने का बेटे के  य़ा उसे जो भी छोटी मोटी नौकरी मिल रही हैँ वो करने दिजिये ! कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता ! बेचारा रोज मेरे पास आता है ,चाचा कोई नौकरी बताओ ! कितनी बार मैने कहा मेरे विभाग में चौकीदारी कर ले या

तू गाड़ी अच्छी चलाता हैँ ,मेरी ओला चला ले पर बोलता हैँ ,पापा मार डालेंगे ऐसा काम किया तो! अगर मैं भी आपकी तरह सोचता ठाकुर साहब तो आज 50 रूपये से करोड़ तक का सफर तय ना कर पाता ! मेरे सब बच्चें काम में लगे हैँ ! थोड़े थोड़े से ही सागर भरता हैँ ! आप भी हद करते हैँ !

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ठाकुर साहब की आंखे गीली हो गयी ,अनुराग को बुलाया – आज से तू गर्गजी के विभाग की वो चौकीदार वाली नौकरी शुरू कर दे !शाम को बहू को घुमा लायाकर ! यहीं उम्र हैँ घूमने की ,बालक बच्चों के बाद कहाँ फुर्सत मिलती हैँ !

गर्गजी ने ठाकुर साहब की पीठ थपथपाई – ये हुई ना बात ! दिल  जीत लिया आज तो !

पहले समझा देते तुम तो कुछ बिगड़ ज़ाता ,बीपी तो ना होती मुझे ! अब आयें हैँ ! ठाकुर साहब बोले !

गर्गजी और घर के सभी सदस्य अपनी हंसी ना रोक सकें !

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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