“कोई भाग्यहीन नहीं होता” –  हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

मां.. मुझे नहीं पता था की पहली संतान ही लड़की होगी अन्यथा मैं किसी भी हालत में इतने बड़े अस्पताल का खर्चा नहीं उठाता, आपको तो पता ही है पहले ही मेरा भाग्य साथ नहीं दे रहा व्यापार में लगातार घाटे पर घाटा हो रहा है, ऊपर से घर में भी लड़की पैदा हो गई, यहां मुझे बेटा होने की पूरी उम्मीद थी,

कितना भाग्यहीन हूं मैं… इससे तो सरकारी अस्पताल में मुफ्त में साधना की जचकी करवा देता, तो पैसों की बचत तो होती! नहीं बेटा.. ऐसा क्यों कहते हो ऊपर वाले ने भी कुछ सोच समझ के ही तुझे कन्या के रूप में इतनी सुंदर पुत्री भेजी है तो कम से कम उसका तो सम्मान कर! लेकिन मां.. अब यह जिंदगी भर मेरे ऊपर बोझ बनी रहेगी,

कैसे इसके सारे खर्च उठाऊंगा, कैसे इसकी शादी ब्याह करूंगा? रमाकांत की बात सुनकर मां ने उसको बहुत समझाया पर रमाकांत कोई भी बात समझने को तैयारी नहीं था और वह अपनी पत्नी को अस्पताल से भी नहीं लाया बल्कि वहीं से सीधा दो दिन के लिए व्यापार के सिलसिले में बाहर चला गया, जैसे तैसे करके मां अपनी बहू और पोती को घर ले आई,

अब चमत्कार की बारी थी, रमाकांत व्यापार के सिलसिले में जब बाहर गया था उसे पता चला उसका वह माल जो गोदाम में सड़ने की कगार में  था उसके भाव दोगुने हो गए, उसकी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा धीरे-धीरे करके उसकी व्यापार में तरक्की होती चली गई, शहर के प्रतिष्ठित और इज्जतदार व्यक्तियों में उसका नाम होने लगा, 

अब उसे समझ आ गया यह सब उसकी बेटी के जन्म के पश्चात ही हुआ है और उसने अपनी बेटी को भाग्यशाली मानकर स्वीकार कर लिया, अब तो उसकी स्थिति ऐसी हो गई कि अगर वह सुबह-सुबह कार्य के सिलसिले में घर से बाहर भी जाता तो सबसे पहले अपनी बेटी का चेहरा देखता और उसको प्रणाम करके घर से बाहर जाता! मां और पत्नी उसकी बदले हुए रूप को देखकर बहुत प्रसन्न रहती  किंतु कई बार दोनों सोचती..

अगर यह सब बदलाव नहीं होता तो क्या मेरी पुत्री हमेशा पिता के प्यार के लिए तरसती या हमेशा उनकी नफरत का शिकार बनती? खैर.. ऊपर वाला जो भी करता है अच्छे के लिए करता है रमाकांत को बेटी प्रिया के जन्म के 5 वर्ष पश्चात फिर से एक और बेटी हुई किंतु इस बार उसने पूरे मन से अपनी बिटिया रानी का स्वागत किया,

अब उसकी बेटियों के प्रति धारणा पूरी तरह से बदल गई अब तो दोनों बेटियां उसकी जान थी, वह बेटियों का जन्म घर में शुभागमन मानता और बेटा और बेटी दोनों में कोई अंतर नहीं करता, अपनी बेटियों को अच्छी से अच्छी शिक्षा और संस्कार देना उसने जरूरी कर्तव्य समझा, रमाकांत के बदले व्यवहार को देखकर मां और पत्नी दोनों खुश थे, अब रमाकांत को भी समझ आ गया बेटियां अपना भाग्य स्वयं लेकर आती हैं और कोई भी भाग्यहीन नहीं होता यह सब व्यर्थ का ब्रह्म है भगवान ने जिसकी किस्मत में जो लिख दिया है वही उसे मिलेगा!

   हेमलता गुप्ता स्वरचित 

   कहानी प्रतियोगिता भाग्यहीन

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