आज फिर ट्रेन लेट है , रेलवे स्टेशन पर बैठकर ट्रेन का इंतजार करना वो भी अकेले , बहुत अखर जाता है… बड़बड़ाते हुए आकृति बार बार घड़ी की ओर देखती फिर मोबाइल में सर्च करती अभी कहां पर पहुंची है ट्रेन…. और कितना समय लगेगा…?
इसी बीच एक 10 – 11 वर्ष का बालक अस्त व्यस्त मैले कुचले , फटे कपड़े पहने दो पत्थर के टुकड़ों (टाइल्स) को लेकर एक ही हाथ में दोनों टुकड़े को आपस में टकरा टकरा कर बजा रहा था और दूसरे हाथ से गाने के लय से भाव दे रहा था …गजब की आवाज…. पूरे ऊपर के लय में जोर से गाना गा रहा था …आकृति उसे देखकर मुस्कुरा पड़ी तभी ट्रेन आ गई , लोग अपना अपना सामान ले ट्रेन में चढ़ गए..!
बड़े बेफिक्री अंदाज में वो बालक भी ट्रेन में चढ़ा और सबके सामने जाकर वही पत्थर के टुकड़ों द्वारा कलात्मक रूप से बजा बजा कर बहुत प्यारा गाना गा रहा था , कई लोग ₹10 -10 के नोट उसे पकड़ भी रहे थे ..।
वो बालक आकृति के पास आकर पैसे मांगने के लिए जैसे ही हाथ फैलाया …पहले तो आकृति ने पैसे दिए फिर पूछा ….नाम क्या है तुम्हारा..? और कहां रहते हो …?बच्चा बोला , गोकुल नाम है हमारा… हम यही स्टेशन के किनारे में रहते हैं..! बस इतना बोलकर अगले ही स्टेशन पर वो बच्चा उतर गया…।
आकृति सोच रही थी …कितना टैलेंट है इस बच्चे में… इसे सही मार्गदर्शन मिलता तो ये बहुत आगे निकल जाता …..फिर मुस्कुरा कर चुप हो गई ….शायद मन में उसने कुछ निर्णय ले लिया था ….वापस आकर उस बच्चे से एक बार जरूर मिलेगी… इतने सारे टैलेंट वाले प्रतियोगिताएं होती रहती हैं ,यदि इसे मौका मिल जाए तो हो सकता है ये बहुत आगे निकल जाए…।
वापस आते ही आकृति ने उस बच्चे से मिलने की सोची …उनके झोपड़पट्टी में गई , वहां गोकुल के घर के बारे में जानकारी इकट्ठी की… कुछ कच्चे पक्के तंबू कनात जैसे घर के बाहर गोकुल को पुकारा ….वही बच्चा वही गंदे फटे कपड़े में बाहर आया…. आश्चर्य से देखते हुए बोला …मेम साब आप ..? गोकुल पीछे मुड़कर देखा… शायद झेंप रहा था अपने घर की वस्तु स्थिति से….. चारपाई में पड़े अपाहिज पिता थे और अस्वस्थ सी एक महिला भी थी …निसंदेह वो गोकुल की माँ ही थी…।
हां गोकुल , कल पास वाले प्राथमिक विद्यालय में कुछ प्रतियोगिताए रखी गई है ….मैं चाहती हूं तुम उसमें प्रतिभागी बनो ….तैयार होकर शाम 5:00 बजे आ जाना ….
पर मैं वहां क्या करूंगा मेम साब..? आश्चर्य से गोकुल ने पूछा…
अरे वही पत्थर से बजाना और गाना , और क्या… तभी अंदर से आवाज आई …कौन है गोकुल बेटा.. कुछ देंगे तो ले लेना , मना मत करना , कल के समान.. चुनाव का समय है ना शायद कोई कुछ देने ,बांटने आया होगा…।
ओह… अब आकृति को लग रहा था वो आज खाली हाथ क्यों आ गई… आकृति समझ चुकी थी ट्रेन में गाकर बजाकर जो पैसा मिलता है उसी से घर चल रहा था …
अगले दिन नहा धोकर बाल में पर्याप्त मात्रा में तेल लगाकर अच्छे से चिपका कर कंघी करके गोकुल प्राथमिक विद्यालय में पहुंचा , आकृति ने तैयार होकर आने को जो कहा था… आकृति ने और बच्चों के साथ गोकुल को भी बैठाया…!
एक दो प्रदर्शन के बाद गोकुल की बारी आई , स्टेज पर पहुंचते ही निडर , बेधड़क गोकुल जिसे लोगों के सामने ट्रेन में प्रदर्शन की आदत थी …ने अपना शानदार प्रदर्शन दिया… लोगों ने काफी सराहना भी की…।
प्रस्तुति के बाद निर्णायक मंडली ने मजाक मजाक में पूछा तुम्हें अपने प्रदर्शन के कितने नंबर चाहिए गोकुल…! गोकुल माइक हाथ में पड़े भावुक होते हुए भोलेपन से बोला….
” …सर आप जो भी नंबर देंगे वो आपके लिए महज एक संख्या होगी पर इस संख्या से मेरी जिंदगी की दिशा निर्धारित होगी… “
यदि आप लोगों को लगता है कि मेरी प्रस्तुति आगे जाने लायक है तो सर प्लीज …..आप मुझे बस उतना ही नंबर दे दें… जिससे मैं अगले पायदान पर चढ़ सकूं…!
इस बार गोकुल के आवाज में भारीपन था शायद वो भावुक हो गया था और उसने दोनों हाथ जोड़ लिए थे…!
नन्हे गोकुल के इस जवाब से कुछ पल के लिए माहौल एकदम शांत हो गया ….फिर भी निर्णायक मंडली में से एक सदस्य ने पूछा , यह जवाब देना तुम्हें किसने सिखाया है गोकुल…?
जजों को लग रहा था सीखी सिखाई रणनीति के तहत बच्चा भावुक होने का नाटक कर ऐसा जवाब दे रहा है… शायद किसी ने ऐसा कहने के लिए इससे कहां हो…!
इस बार गोकुल थोड़ा संकोचाया , फिर धीरे से बोला…. मेरे बाबूजी बोले हैं ….यदि तू आज इसमें पास हो गया तो मैं भी किसी तरह चलूंगा और गाकर पैसे कमा लूंगा ….फिर तुझे गाना सिखाने वाले स्कूल में भेजूंगा…
सर , आज यहां आने के लिए मेरी माँ भी बगल वाली चाची से मेरे बाल में लगाने के लिए तेल मांग कर लाई थी… अपने बाल को छूते हुए गोकुल ने कहा … वो भी चाहती है मैं आगे बढूं… पर… बाबूजी पहले बजाते थे गाते भी थे…उन्होंने ही मुझे सिखाया था…. पर लकवा मारने के बाद अब वो उठ नहीं पाते हैं…!
गोकुल की आप बीती सब बड़े ध्यान से सुन रहे थे…
तुम पास हो गए हो गोकुल …तैयारी करो , गाने वाले स्कूल में जाने की …और इसके लिए तुम्हारे बाबूजी को कहीं जाने की जरूरत नहीं है… स्कूल प्रबंधन की ओर से होनहार बच्चों के लिए व्यवस्था होती है…!
गोकुल खुशी-खुशी आकृति के पास जाकर आकृति के पैर छुए और बोला …
आज तक सबने मेरे गाने को और पत्थर से आवाज निकालने की कला को संगीत का रूप देने के लिए , बहुत सराहना की ….पैसे भी दिए …जिससे मेरा घर चलता रहा …पर मेम साब ” ऐसा मौका आज तक किसी ने नहीं दिया था “….
मेम साब नहीं दीदी बोलो गोकुल…
इस बार गोकुल के साथ आकृति की आंखों में भी खुशी के आंसू झलक ही पड़े थे..।
( स्वरचित मौलिक सर्वाधिक कर सुरक्षित रचना )
संध्या त्रिपाठी
हृदयस्पर्शी
Of course