” जानती हो ‘मंजुला ‘ को ब्रेस्ट कैंसर हो गया है उसका औपरेशन अगले सोमबार को होना निश्चित हुआ है। ” फोन पर उर्मी थी।
” उफ़ ! मंजुला मेरी ननद हैं।
मैं हतप्रभ !!
दुखी और लाचार होने की तो सीमा ही नहीं थी “
मुझको सूचित करके उर्मी ने फोन काट दिया।
थोड़ी देर तो मुझे यथास्थिति में लौटने में लग गया।
तकरीबन आधे- पौन घंटे के बाद जब थोड़ा स्थितप्रज्ञ हुई तब मैंने मंजुला को फोन लगाया ,
” हैलो , हां मंजुला … कह कर मेरी तरफ से चुप्पी छा गई… “
— मंजुला,
” क्या हुआ कल्पना ?
कुछ बोल क्यों नहीं रही हो ?”
” क्या बोलूं ? फिर … ,
” मंजुला हंस पड़ी … ओ मतलब तुम्हें मेरी बुरी खबर मिल गई है ” फिर हंसते हुए वही बोलने लगी ,
” यार … चिंता काहे की ? सारी उम्र मैंने इनकी सेवा की आज इन्हें अपनी सेवा करती देख कर मन प्रफुल्लित हो रहा है।
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मन में सदैव यही इच्छा रही थी ,
‘ मातारानी, मरने के बाद रूप आपके जैसा हो ‘
बेटा जो इधर खुद के परिवार की वजह से मेरी तरफ से लापरवाह हो चला था।
वह गाड़ी में साथ बैठा हुआ इधर- उधर घूम रहा है “
अब चिंता काहे की और क्यों करूं ? “
दुबई से प्राची बिटिया भागी हुई कल रात में पंहुच रही है “
जानती हो कल्पना ,
और तो और बैंगलोर से ‘अनाया’ भी आ रही है। जिसे अपने ऑफिस के बिजी शेड्यूल के कारण मुझसे बात तक करने की फुर्सत नहीं मिलती थी “
अब ऐसे में तुम्ही बताओ मैं किस प्रकार दुःखी और घबराई रहूं ?
आखिर जिंदगी भर दोनों हाथ फैला कर ईश्वर से यही सब तो मांगा है हमने , जिसे अब फलीभूत होते देख रही हूं “
सखी , देखो ना ! बच्चों का ध्यान मुझ पर कहां जाता था ?
अब देखो वे ही किस तरह सारे के सारे मुझ पर ध्यान दें रहें हैं”
मैं निशब्द … आंखें भर आईं, लेकिन जाहिर नहीं होने दिया ।
मुझे महसूस हो रहा था। बात तो वह बिल्कुल सही और खड़ी -खड़ी कर रही है।
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मतलब अब वह धर्म -पूजा-पाठ से उपर उठ कर अध्यात्म की चरम सीमा को छू रही है।
उसे मैं क्या सीख और सांत्वना दे सकती थी ?
बस चुपचाप उसकी मधुर हंसी के साथ बोले हुए भावपूर्ण बातों को आत्मसात् करने में जुटी हुई मैं ठगी सी खड़ी हूं।
सीमा वर्मा / नोएडा