जब अस्पताल में बेटी होने की खबर राघव के कानों में पड़ी, वह पसीने से नहा गया।
एक रूढ़िवादी परिवार का इकलौता चिराग राघव अब एक बेटी का पिता बन चुका था उसने कनखियों से अपनी मां की तरफ देखा।
उसकी मां का चेहरा बुझ गया था। राघव यह सब देखकर बहुत तनाव में आ गया था।
अब न जाने युक्ता के साथ उनकी प्रतिक्रिया कैसी रहेगी?
“ बधाई हो आपके घर लक्ष्मी ने जन्म लिया है!मि.कुमार।अब हमें मिठाई चाहिए।” नर्स ने एक गोलू-मोलू सी बच्ची राघव के हाथों में थमाते हुए कहा।
“किस बात की मिठाई ? अपने गंभीर आवाज में रमा देवी गुर्रा उठीं ,घर में लड़की जन्म ली है तो किस बात की मिठाई? हमारी किस्मत ही खराब थी कि हम एक बदकिस्मत उठा लाए थे। उससे क्या उम्मीद लगाएंगे। वह तो बेटी ही जनेगी।”
“अम्मा ऐसे तो मत बोलो!”राघव अपनी नवजात को देखकर दुख और अपमान से तिलमिला उठा।
रमा देवी राघव की बात सुनकर गुस्से में भर उठी और उसे डांटने लगी
“अब बहू की गलती पर तू पर्दा डालेगा।हमारा नसीब फूटा था जो ऐसी कुलक्षिणी घर ले आए!!!”वह गुस्से में बोली जा रही थी। यह सब सुनकर नर्स का चेहरा उतर गया।
वह धीरे से बोली “अरे माताजी आज के जमाने में क्या लड़का,क्या लड़की?आपके घर में कितनी सुंदर, स्वस्थ लड़की जन्मी है। बिल्कुल आपकी बहू की तरह।
वैसे ही सुंदर निकलेगी!”
रमा देवी के चेहरे पर एक कड़वी से मुस्कान आ गई।
“हां बहुत सुंदर,बहुत सुलक्षणा है मेरी बहू। उससे ज्यादा बहुत किस्मतवाली है कि मेरे जैसी सास मिल गई।”
राघव का चेहरा उतर गया।
“बेटा या बेटी इसमें युक्ता का क्या कसूर? और इस नवजात बच्चे का क्या कसूर है?”
अपनी बच्ची को गोद में लेते हुए उसने कुछ तय कर लिया था।
“नर्स, युक्ता ठीक है ना ?”
“नहीं नहीं ,अभी तो बेहोश है। उन्हें नींद की दवाई भी दी गई है। 4 घंटे बाद होश आएगा।”
लगभग 4 घंटे के बाद जब युक्ता को होश आया उसके सामने राघव अपने गोद में बच्ची लिए खड़ा था।
वह मुस्कुराने की कोशिश कर रहा था मगर चेहरे पर दर्द की लकीरें खींची हुई थी।
उसके उदास चेहरे को देखकर युक्ता सारी बात समझ गई।
“मुझे मालूम है मैं बेटी को जन्म दिया है। मुझे माफ कर दीजिए।”
“ कैसी गंवारों की तरह बात कर रही हो युक्ता तुम?तुम तो पढ़ी-लिखी हो। मां पढ़ी-लिखी नहीं है तो ऐसी बातें करें तो शोभा भी देता है मगर मैं तुमसे उम्मीद नहीं करूंगा कि तुम हमारे बच्ची के प्रति ऐसी भावना रखो!
याद रखना इस बच्ची को मैं ऐसा बनाऊंगा कि लोग कहेंगे कि कितनी किस्मत वाली है युक्ता जो ऐसी बेटी जन्मी है।”
युक्ता की आंखों में आंसू आ गए।
जब राघव के साथ उसकी शादी का रिश्ता तय हुआ था, तब भी उसके घर में, पूरे गांव में आस पड़ोस परिवार के लोग उससे कहते थे
“युक्ता तू कितनी किस्मतवाली है जो ऐसा घर बार मिला है।आज के जमाने में बिना दान दहेज के इतना अच्छा घर बार नहीं मिलता।
तुम्हारे पिता के पास है क्या तुम्हें देने को सिर्फ तुम्हारा रूप और तुम्हारा गुण।उसके अलावा तुम्हारे पास और है क्या?
तुम्हारी किस्मत बड़ी तेज है जो तू ऐसे घर जा रही है ।”
उत्तर में युक्ता खिसिया कर मुस्कुरा दिया करती थी।
एक तरफ जहां अपनी शादी को लेकर उम्मीद और आशाओं की उमंग थी और दूसरी तरफ आईने में अपने आप को देखकर वह शुक्र मनाया करती
“तू सच में किस्मत वाली है युक्ता जो तेरे पास रूप है ।इतने बड़े घराने में तुम्हारा रिश्ता पक्का हो गया।”
बगैर तिलक दहेज लाए युक्ता ससुराल आ चुकी थी।
सुबह से रात तक घर से एक-एक काम की देखरेख, सास ससुर,नन्द देवर सब की सेवा सत्कार करती हुई अपने किस्मत को कोसते हुए कुछ महीने बीते ही थे कि इस नन्ही परी ने उसके कोख में दस्तक दे दी थी।
युक्ता ने अपनी बच्ची को अपने गले से लगा लिया।
“आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं जी, दुनिया यही कहेगी कि कितनी किस्मत वाली है इस परी की मां, जिसने इस जैसी परी को जन्म दिया है!”
“हां बिल्कुल!”राघव ने युक्ता के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
“सचमुच मैं बहुत ही भाग्यवान हूं, भले ही ससुराल मेरा नहीं लेकिन मेरा पति तो मेरा है।”
देखते ही देखते समय गुजरता गया।इन सबके बीच राघव और युक्ता दोनों को कई मुशकिलों का सामना करना पड़ा।
गांव के समाज का माहौल ऐसा नहीं था, जहां लड़कियों की उच्च शिक्षा को अच्छा माना जाता था।
घर बाहर, खासतौर पर रमादेवी के व्यंग्यबाण दोनों को बेध देते थे लेकिन युक्ता और राघव हार मानने वालों में नहीं थे।
राघव दिन रात मेहनत करता, वहीं युक्ता सिलाई कढ़ाई, बुनाई कर कुछ पैसे जमा कर लेती थी।
देखते ही देखते नन्ही परी बड़ी हो गई।
“राघव, अब परी खातिर लड़का ढूंढो! अब और कितना पढ़ेगी। फिर लड़का कहां से मिलेगा?”रमा देवी अपनी चिंता जाहिर करतीं तो परी कहती
“नहीं दादी मुझे डाक्टर बनना है।”
घर के तनाव पूर्ण माहौल में भी रहकर परी ने सचमुच अपनी अथक परिश्रम से मेडिकल की परीक्षा उत्तीर्ण कर एक सफल डॉक्टर बन गई थी।
जब मेडिकल कॉलेज में उसे सम्मानित किया जा रहा था तब युक्ता और राघव दोनों ही रो पड़े।
मेडिकल कॉलेज के चीफ डॉक्टर और कालेज प्रबंधन कमिटी के चेयरमैन ने जब परी की तारीफ करते हुए कहा
“परी गांव के स्कूल से पढ़ी हुई स्टूडेंट है। उसने अपनी अथक परिश्रम से सफलता की इस शिखर तक पहुंची है जो बहुत ही दुर्लभ है।
इसलिए परी की इस कामयाबी पर बहुत बहुत बधाई।”
सभागार तालियों से गूंज उठा था।
राघव ने युक्ता का हाथ पकड़ कर कहा
“याद है ना मैंने तुमसे कहा था कि दुनिया कहेगी कि तुम कितनी किस्मतवाली हो!”
“हां जी, याद है। मैं तो बहुत ही किस्मत वाली हूं।”युक्ता की आंखें बह रही थी।
डॉक्टर परी को स्टेज पर बुलाया गया था।
उसने माइक पर आते ही कहा
“दुनिया मुझे बहुत ही तेज, स्मार्ट और बुद्धिमान समझती है। मैंने गोल्ड मेडल हासिल किया है। मैं बहुत किस्मत वाली हूं लेकिन इस बात के लिए नहीं कि मैं अपने कालेज की टॉपर हूं, एक डॉक्टर हूं बल्कि इसलिए कि मैं अपने मां बाबा की लाडली बेटी हूं।
उन्होंने अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया मुझे बनाने में,मेरा भविष्य संवारने में।
इसलिए सारी तालियां उनके लिए,सारा श्रेय उन्हें।
“मां, बाबा प्लीज मंच पर आइए ना!”
परी की आवाज सुनकर युक्ता और राघव दोनों रो पड़े।
फिर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर मंच की तरफ बढ़ गए।
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प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
#किस्मतवाली
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना
बेटियां के लिए
VM