क़िस्मत वाली या बदकिस्मत – रश्मि प्रकाश  : Moral Stories in Hindi

आज अपनी तीसरी बेटी को भी हँसी ख़ुशी विदा करने के बाद तनु घर समेटने में व्यस्त थी तभी सुमति जी आई और बोली,“ बहू बड़ी भाग्यशाली है मेरी पोतियाँ जो इतने अच्छे घर में ब्याही गई… तीनों अपने माता-पिता के लिए जितनी फ़िक्रमंद रहती है उससे ज़्यादा उनके पतियों को तुम दोनों की चिंता करते देख रही थी… उपर से दोनों दामाद बारी बारी से मुझे भी आकर पूछ रहे थे कोई दिक़्क़त तो नहीं है ना दादी जी….तू सच में बहुत भाग्यशाली हैं बहू।” सुमति जी तनु को आशीष देते नहीं थक रही थी 

काँपते हाथों से बहू का हाथ अपने हाथ में लेकर सुमति जी रोते हुए बोली,“ बहू मुझे माफ कर देना … बहुत कोसा है मैंने तुझे….तेरी क़िस्मत के लिए … बेटे के लिए….मैं तो अपनी ज़िद पर तेरी ज़िंदगी भी दाँव पर लगाने चली थी…पर सही समय पर मेरे बेटे ने आकर मुझे पाप करने से बचा लिया ।”

“ अरे नहीं माँ…आप अपनी जगह सही थी माफी की बात ही नहीं है… पर जो होना होता है होकर ही रहता है….आप ही तो हमेशा क़िस्मत की बात करती रहती है … इस वजह से मैं भी हमेशा रोती रहती और अपनी क़िस्मत को कोसती रहती थी… पर समय के साथ सब यंत्रवत चलता रहा और आज आप ही मुझे भाग्यशाली कह रही है…..मेरी क़िस्मत को सराह रही है…..चलिए अब आप भी आराम कर लीजिए दोनों बेटियों को आज तक के लिए रोक लिया है… घर समेटने में मदद कर के कल चली जाएगी.. सोच रही हूँ उनके साथ भेजने को थोड़ी मिठाइयाँ और नमकीन हलवाई से कह कर बनवा दूँ…..आप क्या कहती है?” तनु सास से पूछी 

“ हाँ बहू …. बेटियाँ ख़ाली हाथ मायके से जाए अच्छा नहीं लगता ….जो ठीक लगे वो कर मैं भी जरा जाकर आराम कर लेती हूँ… इतने गीत गाएँ है पोती के ब्याह में कि गले में दर्द हो रहा।” सुमति जी कहते हुए हँस दी शायद उन्हें शादी के मज़ेदार गीत याद आ गए थे 

सुमति जी के जाने के बाद तनु कामों में तो लग गई पर खुद को पच्चीस साल पीछे ले गई जब उसकी डिलीवरी होने वाली थी और सासु माँ भगवान से जाने कितने मन्नत माँग चुकी थी पर होना तो वही था जो तनु और मनन के क़िस्मत में लिखा था ।

डॉक्टर ने डिलीवरी के बाद जैसे ही कहा ,“दो जुड़वां लड़कियाँ हुई है जिनमें से एक थोड़ी कमजोर है।”

सुनते ही सुमति जी ने  बिना सोचे समझे झट से कह दिया,“ डॉक्टर अगर ना बचे तो ज़्यादा मेहनत ना करना… तीन तीन बेटियाँ पालना आसान थोड़ी ना है… एक नहीं भी रहेंगी तो कुछ ना बिगड़ेगा ।”

“ ये आप कैसी बाते कर रही है माँ जी… हम जान बचाने की कोशिश करते हैं लेने की नहीं… और आप खुद एक औरत होकर ऐसी बात कर रही है !” डॉक्टर थोड़ी क्रोधित हो कर बोली 

मनन उस वक्त वहाँ पर नहीं था जब आया डॉक्टर को ग़ुस्से में देख कर पूछ बैठा ,”क्या हुआ?”

जैसे ही डॉक्टर ने सुमति जी की बातें बताई… 

मनन ग़ुस्से में माँ को देखने लगा 

जब तनु को वार्ड में शिफ़्ट कर दिया गया तो मनन अपनी दोनों बेटियों को देख ख़ुश हो रहा था और सुमति जी लड़कियों को कोसें जा रही थी 

“ बस भी करो माँ… कितनी कोसोगी इन दोनों को.. जो होना था हो गया.. अब जो सामने है उसे स्वीकार कर लो।” मनन ने अपनी नवजात बच्ची को गोद में लेते हुए कहा 

“ मेरा क्या है…..कुछ दिनों में भगवान को प्यारी हो जाऊँगी…वंश बेल के लिए एक लड़का हो जाता तो अच्छा था… पता नहीं कौन सी क़िस्मत लिखा कर आई है ये तीनों… और बहू की क़िस्मत में बेटा लिखा ही नहीं ।”सुमति जी ने मुँह बिचकाते हुए कहा

तनु ये सब सुन कर लाचार सी हो कर मनन को ताक रही थी… उसकी गोद में भी एक बेटी थी और पास के एक बिस्तर पर तीन साल की बेटी कुहू सो रही थी… 

सुमति जी ये सब कह कर कुहू के पास जाकर बैठ गई 

“ तुम ज़्यादा सोचो मत ऑपरेशन का शरीर है अपने शरीर पर ध्यान दो…आज नहीं तो कल माँ समझ जाएगी ।” मनन तनु के हाथ पर अपना हाथ रख सांत्वना देते हुए बोला 

“ मनन क्या हम सच में तीन तीन बेटियों की परवरिश ठीक से कर पाएँगे… इनकी पढ़ाई लिखाई और फिर ब्याह?” तनु  भविष्य को लेकर चिंतित नजर आने लगी

“ मैं हूँ ना ….अच्छी नौकरी कर रहा हूँ और फिर तुम पर पूरा भरोसा है तुम मेरा हर परिस्थिति में साथ दोगी।” मनन ने भरोसा जताते हुए कहा 

मनन नौकरी पर रहता और तनु बच्चों के साथ साथ सुमति जी का भी ध्यान रखती… बेटियाँ ज्यों ज्यों बड़ी हो रही थी दादी से इतना लाड लड़ातीं कि सुमति जी भी पोतियों को मानने लगी थी ममता भी लुटाती पर दिल के एक कोने में कभी कभी पोते  के लिए हुक सी उठ जाती और दुखी हो कर कह देती एक बेटा तो कर लेता…तनु को एक दिन सुमति जी ने इतना सुनाया की वो मनन से जाकर बोली ,”एक और बच्चा कर लेते हैं क्या पता बेटा हो जाए कम से कम माँ को तसल्ली हो जाएगी ।”

“ तनु तुम भी माँ की बातों में आ रही हो… हमारी क़िस्मत में ये बेटियाँ ही है और मुझे इसका कोई दुख नहीं है।”मनन तनु को कह कर समझा देता

सुमति जी भी अब शरीर से लाचार होने लगी थी और धीरे-धीरे पोते की ज़िद बंद कर दी थी ।

तनु की तीनों बेटियाँ पढ़ाई में होशियार निकली…जब बड़ी बेटी नौकरी करने लगी तब दोनों छोटी बहनों पर वो पूरा ध्यान देने लगी थी… मनन को अब बड़ी बेटी की शादी की फ़िक्र सताने लगी थी संजोग से उसके लिए रिश्ता उसके ही दोस्त के बेटे के लिए आया जो खुद आकर मनन की बेटी को अपने घर की बहू बनाना चाहता था…मनन के लिए जाना समझा परिवार था सबकी सहमति से शादी हो गई ।

दोनों जुड़वां बेटियाँ भी अब जॉब करने लगी थी पर दोनों का ब्याह एक साथ कर मनन घर ख़ाली नहीं करना चाहता था…इसलिए पहले दूजी का ब्याह कर दिया था और कुछ समय बाद ही उसी बेटी के ममेरे ससुर ने अपने बेटे के लिए सबसे छोटी बेटी का हाथ माँगा….और इस तरह से तीसरी बेटी का भी ब्याह कर मनन और तनु एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी निभा कर ख़ुश थे ।

 “ माँ ऽऽऽ माँऽऽ कहाँ खोई हुई हो…कब से आवाज़ दे रही हूँ सुन ही नहीं रही हो।” बड़ी बेटी की आवाज़ कानों में पड़ते तनु वर्तमान में लौट आई

“ कहीं नहीं बेटा बस तुम सब का बचपन याद कर रही थी ।” तनु ने कहा 

“ माँ देखो ना दादी ने ये तीन जोड़े कंगन निकाल कर दिए है… कह रही है तुम तीनों बहन एक एक ले लेना।” बड़ी बेटी ने कहा 

“ ये कंगन तो…।” तनु कंगन देख आश्चर्य करने लगी 

“ क्या हुआ माँ..?” बेटी ने पूछा 

“ पता है ये तेरी दादी के कंगन है मैं जब भी देखती तो हँसते हुए कहती माँ जी मुझे ही देगी ना… पर तेरी दादी कहती ये मेरे पोते की बहू के लिए सँभाल कर रखे हैं सब उसको ही दूँगी ।” तनु कंगन देखते हुए बोली 

“ हाँ एक कंगन तेरे लिए भी रखा है… ये ले।” सुमति जी कमरे में आ कर बोली

“ पर माँ ये कंगन तो आप…।” तनु कुछ कहती उससे पहले ही सुमति जी बोल उठी,“ बहू अब इस उम्र में भी आँखें ना खुलेंगी तो बंद कैसे होगी…मैं बेकार ही पोता पोता करती रही… पोतियाँ भी कम नहीं होती बस अच्छे संस्कार में पल बढ़ जाए तो अपने माता-पिता का ध्यान बेटों से ज़्यादा रखना जानती है ।” सुमति जी कहते हुए कंगन तनु को दे दी 

आज तनु अपना एक वो वक्त याद आ रहा था जब सुमति जी के तानों से आहत हो वो रोती रहती और अपनी क़िस्मत को कोसती जाती थी और एक आज का वक़्त है जब उसे अपनी क़िस्मत पर फ़ख़्र हो रहा था।

दोस्तों आज भी कई लोगों के मन में बेटा बेटी को लेकर एक अवधारणा बनी हुई है…समय के साथ सोच तो बदल रही हैं पर बहुत कम… पुराने जमाने की औरतें हो तो वो तो जाने कितने बच्चे इस आस में पैदा करवा दे कि एक बेटा तो होना ही चाहिए…. मेरा मानना है बेटा बेटी कोई भी हो हम उन्हें अच्छे संस्कार दे… माता-पिता की सेवा करना सिखाए तो शायद हम इन सब अवधारणाओं से खुद को मुक्त कर सकते हैं कि बेटा होना ज़रूरी है ।

आप इस बारे में क्या कहते हैं… क्या आपको भी लगता समाज में अभी बदलाव आया है और नहीं?

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# वाक्य कहानी प्रतियोगिता 

# रोते रोते बस अपनी क़िस्मत को कोसे जा रही थी

3 thoughts on “क़िस्मत वाली या बदकिस्मत – रश्मि प्रकाश  : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत ही मार्मिक कहानी है, मुझे बहुत अच्छी लगी ।

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