किस्मत वाली – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

सोनम (४४  बर्ष ) बहुत ही अच्छी महिला थी | वह अपना होटल चलाती  थी | बहुत ही कम दाम में खाना खिलाती थी लोगो को  | और रात को १० बजे होटल बंद करती थी | जो कुछ भी खाने  का सामान बच जाता वो पैक कर के  रख लेती | रास्ते में  जो भी सड़क पे  गरीब लोग दिखते उनको वो खाना दे देती | सब  उनको  बहुत बहुत आशीर्वाद देते | 

सोनम बहुत खुश हो जाती | यही उसका रोज का काम हो गया था | ४,५  दिनों  से एक बुजुर्ग दंपति रोज उनके होटल में आता था | और चाय ब्रेड खा के जाता था  |

सोनम ने  बोला आंटी अंकल आप रोज चाय ब्रेड ही खाने आते है मेरे होटल में , यहां बहुत तरह का खाना मिलता है  | आप और कुछ क्यों नहीं खाते? चाय ब्रेड तो आप घर पे भी खा सकते है | क्या हुआ? आप लोगो को बुरा लगा

क्या? नहीं नहीं बेटा   , आप की बात बुरी नहीं लगी | आप सही कह रही है , लेकिन क्या करे हम, हमारी मजबूरी है ,  जेब को देखते हुए खाना,  खाना पड़ता है बेटा | अंकल आप को देखने से तो नहीं लगता की आपको कोई कमी है | सही कहा बेटा |

भगवान ने कमी तो नहीं की थी | लेकिन बेटों ने कमी कर दी | उन्ही के कारण आज हम दोनो की ये हालत है | 

सोनम ने बोला मै कुछ समझी नहीं ? क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकती हु?

बेटा मै सरकारी कर्मचारी था | १ साल पहले ही रिटायर हुआ हु | पैंशन आती है मेरी | ए टी एम, से पैसे निकलना नहीं आता था | इस लिए मैने बेटे को ए टी एम दे दिया | बेटे को पैसों का लालच हो गया |

कुछ महीनों तक दो ,चार  हजार कभी कभी दे देता था |  लेकिन अब ३ महीने से  कुछ भी पैसे नहीं दे रहा है | ना ही ए टी एम दे रहा है | रोज रोज लड़ाई झगड़ा करने की ताकत बची नहीं है | समाज में इज्जत के कारण किसी से  कुछ कह भी नहीं सकते | अब हमारे पास खाने  तक को पैसे नहीं है | 

उनकी बात सुन सोनम दंग रह गई | और बोला अंकल आंटी आज से आप लोग मेरे होटल में ही खाना खा लेना | मेरा  इस दुनिया में कोई नहीं है | बेटा हमारे पास तुमको देने के लिए कुछ भी नहीं है | 

है ना, आप अपना  आशीर्वाद देना, ताकि मैं अधिक से अधिक लोगों को खाना खिला सकू |और आंटी आप को जो भी खाना बनाना आता होगा ,आप बताना हमको |हम दोनो मिल के अच्छा अच्छा खाना बनाएंगे “आप दोनों की मदद कर के मै अपने आपको  बहुत किस्मत वाली समझूंगी |” 

भगवान बिना औलाद रखे | लेकिन ऐसी  औलाद ना दे जो अपने मां बाप को  दो रोटी तक नहीं खिला सकते |

 

रंजीता पाण्डेय

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