“ओ, नेहा तुम, क्या तुम दिल्ली में आ गई? तुम तो पटियाला में थी।” नेहा को मार्केट में देख अनु ने हैरानी से पूछा।
“मेरे हस्बैंड डेपुटेशन पर दिल्ली आये है। अभी पिछले महीने ही हम लोगों ने दिल्ली शिफ्ट किया है ।” नेहा ने बताया। साथ ही कहने लगी मेरा घर बिल्कुल पास है चल अनु वहीं बैठ कर बातें करते हैं। अपनी क्लासमेट का प्यार भरा आग्रह और कॉलेज की यादें उसे नेहा के घर ले गई। नेहा का घर देख अनु की तो आंखें चुनदिया गई। क्या कालीन, क्या फर्नीचर , क्या डेकोरेशन का सामान सब एक से बढ़ कर एक। जाते ही नौकर पहले पानी, फिर जूस , फिर स्नेक्स के साथ चाय ले आया ।नेहा के बुलाने पर अनु दो-तीन बार उसके घर गई। परंतु उसे नेहा को अपने घर बुलाने पर हिचक हो रही थी। क्योंकि उसके घर में न तो नौकर चाकर थे न वैसा सामान। एक दिन नेहा शाम को अपने आप ही उसके घर आ गई। अनु के पति सोमेश भी घर पर थे, नेहा से मिले और कहने लगे ,”तुम दोनों सहेलियां गप्पे मारो। मैं चाय लाता हूं।” तीनों ने चाय पी। फिर सोमेश बोले,” डिनर का इंतजाम करने जरा बाजार जा रहा हूं। नेहा जी पहली बार आई है।”
अनु आराम से बात करते करते साथ-साथ शाम के लिए सूप तैयार कर आई, बैठे बैठे रशियन सलाद तैयार कर दी और नेहा से कहने लगी , “नेहा मेरे घर मे तुम्हारे घर जैसा न सामान है न नौकर चाकर। तुम तो बहुत किस्मत वाली हो।”
नेहा तपाक से बोली, “किस्मत सामान और नौकर चाकरों से नहीं होती। पति पत्नी में आपसी अंडरस्टैंडिंग हो ,प्यार हो, एक दूसरे के लिए इज्जत हो। जो तुम्हारे और सोमेश में मैंने देखी है। मेरे पास सामान और पैसा तो है पर यह नहीं है। काश ! मैं भी तुम्हारे जैसी किस्मत वाली होती।”नेहा ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा।
डॉ अंजना गर्ग