अमर को उसके माता पिता ने बड़े अरमानों से कोटा कोचिंग करने के लिए भेजा था ताकि वह जिदगी में कुछ बन सके। उसे एक PG में कमरा दिलाकर, कौचिंग में प्रवेश कराकर फीस भर उसके लिए आवश्यक सामान जुटाकर सुदेश जी (पिता) लौट गए और बेफिक्र हो गए कि अब तो उनका बेटा डाक्टर बन कर ही रहेगा।
अब सिर्फ उनका काम था बेटे को समय पर पैसा मुहैया कराना । पढना तो उसे है यहि सोच थी सुदेश जी की। फोन पर कभी सुदेश जी तो कभी मम्मी पूछ लेते कि बेटा कैसा चल रहा है। पढ़ तो रहा है न मन लगाकर खाने पीने की व्यवस्था सही चल रही है न । उसके सबकुछ ठीक है कहने से वे संतुष्ट हो जातें। किन्तु उन्होंंने कभी जाकर उसे देखने को जारुरत नहीं समझी।
पहले साल तो उसने मन लगाकर पढ़ाई कि किन्तु फिर भी अच्छी रैंक न आने से उसे दूसरे पीछे वाले बैच में भेज दिया। यह सिलसिला लगातार चलता रहा। जैसे जैसे उसकी रैंक कम होती गई वैसे वैसे उसका मन पढ़ाई से उचाट होता गया। अब उसकी संगत भी खराब होने लगी।
अब यह उन लड़को के साथ हो गया जो पढ़ने नहीं मौज मस्ती करने जीवन का पूरा आननद उठाने में संलिप्त थे। उनके सम्पर्क में आने के बाद उसने पढ़ना लिखना छोड दिया। कोचिंग जाने में भी गैप करने लगा। सारा दिन दोस्तों के साथ घूमना फिरना, सिगरेट पीना शाम को कमरे में दोस्तों को इकट्ठा कर हा हुल्ला करना, शराब पीना शुरू हो गया। घर से फोन आने पर कह देता पढ़ाई अच्छी चल रही है। माता पिता खुश हो जाते।
एक बार मीता जी (मां) ने कहा चलकर देख आते हैं, बेटा कैसे रह रहा है. पढ भी रहा है ढंग से कि नहीं।
सुदेश जी बोले क्या चल कर करना है। बह मेरा बेटा है जरुर पढ रहा होगा। देखना वह जरुर हमारा नाम रोशन करेगा, जब वह एक सफल डाक्टर बनेगा। जो डाक्टर बनने का सपना मेरा पूरा नहीं हो पाया वह मेरा बेटा कर दिखायेगा। तुम चिन्ता मत करो ।बात आई गई हो गई और जाने का कार्यक्रम निरस्त हो गया।
दो साल हो गाए जब उसने कहा पापा मेरी रैंक पीछे आई है मैं एक बार और परीक्षा देना चाहता हूं तो उन्होंने सहर्ष उसकी बात पर विश्वास कर उसे रिपीट करने के अनुमति दे दी।
तीन साल हो गए। वह लौटने का नाम ही नहीं ले रहा था ।अब माता पिता का माथा ठनका कि क्या चक्कर है।
यहां तो बेटा जीवन के आनन्द ले रहा था। खाना -पीना, घूमना ,शाम को शराब पार्टी करना अब तो गर्लफ्रेंड भी बन गई थी तो उसके साथ घूमना फिरना। रात को अपने कमरे पर ही रोक लेता। जब उसकी हरकतों से मकान मालिक परेशान हो उससे कमरा खाली करा लेते तो दूसरी जगह ले लेता। गर्लफ्रेंड को महंगे महगें उपहार देता। घर से कुछ भी बाहना करके और पैसे मंगा लेता और जब कम पडते तो दोस्त थे न उधार देने के लिए।
अब दोस्तों का उधार चुकाने की लिए दोस्तों की सलाह पर चोरी करना शुरू कर दिया। पेट्रोल पंप से पेट्रोल कि चोरी करते, मोबाइल, साईकिलें चोरी करने लगे। पूरा गैंग बन गया था। नए आने वाले बच्चों को स्टेशन पर ही जाकर अपनी गिरफ्त में ले लेते। अंकल चलिए हमारे साथ हम आपको अच्छा पीजी दिलवा देंगे हमारी पहचान का है , कोचिंग भी आपको ले चलेंगे सारा काम करवा देंगे आपको कोई परेशानी नहीं होगी।
कई लोग तो मना कर देते किन्तु जो सीधे सादे होते वे अनावश्यक परेशानी से बचने के लिए उनकी बातों में आ जाते और इस तरह उनसे भी कमीशन लेकर, मकान मालीक से भी कमीशन ले लेते।
ऐसे काम पूरी गैंग करती। इसी कारण कुछ बच्चे तो ऐसे हैं जो आज पांच-पांच साल हो गए वे कोटा से वापस नहीं गये इसी काम में लगे हैं।
आखिर में उसकी असलियत जानने के लिए सुदेशजी मीता जी को साथ लेकर कोटा पहुंचे और उसी मकान पर गए जहाँ उसे वे पहली बार छोड़ गए थे। वहाँ जाकर पता लगा कि वह तो दस माह बाद ही कमरा खाली कर गया था।उन्हें नया पता भी मालूम नहीं था कि कहां रहता है। जब उन्होंने उसे फोन मिलाया तो बोला पापा मैं अभी कौचिंग में हूं, जबकि वह दोस्तों के साथ कमरे पर ही था।
पापा बोले वो तो ठीक है पर तुम्हारा कमरा कहाँ है तुमने कमरा बदल लिया पता तो बताओ।
अमर पापा वो में आपको बाद में भेजता हूं अभी क्लास में हूँ।
पापा अभी भेज हम यहाँ पहले वाले मकान पर खड़े हैं जहाँ में तुझे छोड़ कर गया था।
अमर क्या पापाआप लोग कोटा आए हैं। पापा हां।
मैं अभी आता हूँ। जल्दी से दोस्तों को रवाना किया।कमरा थोड़ा सेट किया किन्तु सिगरेट के टुकड़े व शराब की बोतल पलंग के नीचे ही रह गए । हड़बड़ाहट में उन्हें उठाना भूल गया।
वह मम्मी पापा के पास पहुंचा चलो कमरे पर चलते है. उसने सामान उठाते हुए कहा।
पापा- अमर तू तो क्लास में था फिर इतनी जल्दी क्लास छोडकर कैसे आ गया ।पापा में एक दोस्त के साथ उसकी मोटरसाइकिल से आ गया।
सुदेश जी को उसकी हडबडाहट चेहरे पर उडती हवाइयाँ कुछ और ही सोचने को मजबूर कर रहीं थी। खैर कमरे पर पहुँचे कमरे की हालत देख उनकी समझ में आ गया कि वह कोई पढ़ाई बढ़ाई नहीं कर रहा है। लेटने के हिसाब से जैसे ही गद्दा उन्होंने नीचे डाला तो पलंग के नीचे पड़े सिगरेट के टुकडों और शराब की बोतल ने उसकी चुगली कर दी। उन्होंने वह उठा कर उससे पूछा कि यह क्या है।
वहअवाक रह गया कि क्या जबाब दे। फिर बोला कल मेरे दोस्त आए थे उन्होंने ही ये सब किया था मै नहीं लेता।
तभी एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके मुँह पर पड़ा तू हमें बेबकूफ समझता है दोस्त लेते हैं तो तू अनछुआ रहेगा ।बता क्या करता है क्यों तेरी पढाई पूरी नहीं हो पा रही। अब सब हमें समझ आ गया है। अभी उन लोगों में बहस चल ही रही थी कि एक लड़की ने आकर दरवाज़ा नॉक किया। उसकी मम्मी ने जैसे ही दरवाजा खोला लडकी को देखकर चौंक गई। उसके पापा ने उसको अन्दर आने को कहा। अब उसकी हालात खराब हो गई वह पसीने पसीने हो रहा था। उसे फोन करने का समय ही नहीं मिला और वह अपने नियत समय पर आ गई। लडकी भी घबरा कर अमर की तरफ देख रही थी।
अंकल अभी मैं चलती हूँ।
नहीं जो काम करने आई थी वो कर लो।
कुछ नहीं अंकल केवल कुछ प्राब्लमस साल्व करने आई थी वो बाद में कर लूंगी।
किन्तु तुम्हारे पास तो कोई किताब कापी नहीं है फिर कौनसी प्राब्लेम सॉल्व करने आई थी.
लडकी बुरी तरह घबड़ा गई उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था।
सुदेशजी बोले अमर तुम बताओ कौन है यह और क्या करने आई थी।
पापा वो मेरी क्लासमेट है ऐसे ही कुछ डिस्कशन करने आ गई थी। क्यों कोई लड़की इसके साथ नहीं पढ़ती क्या, जो ये उससे पूछ सके।
कडककर बोले जबाब दो क्या रिश्ता है तुम दोनो का मैं जानना चाहता हूँ ।
पापा ये मेरी गर्ल फ्रेंड है।
बाह बेटा हम सोच रहे थे कि बेटा डाक्टर बनने की तैयारी कर रहा है और ये देखो किस्मत का खेल बेटा यहाँ लाइफ इनजाँय कर रहा है। तुमने अच्छा सिला दिया हमारे विश्वास का। हम ही गलत थे जो तुम पर इतना विश्वास किया। मेरे को पूरा यकीन था कि मेरा बेटा कभी गलत हो ही नहीं सकता, पर कहीं हमारी ही परवरिश में कमी रह गई जो तुम्हें संस्कारवान नहीं बना पाए । सिर पकड कर बैठ गये ये किस्मत भी क्या-क्या रंग दिखाती है सपना तो चकनाचूर हुआ ही बेटा भी हाथ से निकल गया। मीता जी की आँखों से भी ऑसू बह रहे थे कि बेटे ने उनके साथ कितना फरेब किया।
सुदेश जी बोले चलो इसी वक्त समेटो सामान और घर चलो बहुत हो गई पढ़ाई। फिर उस लड़की से बोले बेटी तुम्हारे माता पिता ने भी तुम्हे विश्वास के साथ भेजा होगा पढ़ने के लिए और तुम यहाँ इस तरह उनके विश्वास की धज्जियां उडा रही हो। लडकी होकर भी तुमने न अपनी इज़्ज़त का मान रखा न अपने माता पिता की। जाओ अब तुमसे कुछ नही कहना सुनना। हो सके तो आगे से अपने माता-पिता का मान रखने की कोशिश करना।
देखा मीता किस्मत भी क्या -क्या रंग दिखाती है।
क्या सोचा था क्या पाया
किस्मत ने क्या रंग दिखाया
किस्मत के खेल निराले
कहीं प्रकाश तो कहीं अंधियारे
शिव कुमारी शुक्ला
3-1-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित