सागर की मां ने सागर के पिता जी के रिटायर्ड होने पर गांव में मानस और यज्ञ, तथा भंडारा का आयोजन किया था।
उन्होंने अपनी बेटी, दामाद और बेटे बहू को भी आग्रह पूर्वक आने का आमंत्रण दिया,,
बेटी, दामाद तो पहुंच गए थे यथासमय ,
परंतु मां, पिता के बहुत अनुनय विनय करने पर भी बेटे,बहू,पोते, पोती ने आने से स्पष्ट इंकार कर दिया था,
बेटा सागर ने कहा,, किससे पूछ कर आपने ये अनुष्ठान ठान लिया है,, हमसे पूछा था आपने,,
हम सब तो नहीं आ सकते हैं, बच्चे गांव में नहीं रह सकेंगे,,
मां ने कहा,बेटा,सब रिश्तेदार,आ गये हैं, तुम नहीं आओगे तो हमारी बड़ी बदनामी और जगहंसाई होगी,, वो रोती रही,, गिड़गिड़ाती रही,पर बेटे बहू का पत्थर दिल नहीं पिघला,,
मां और पिताजी ने बहुत अनमने भाव से सब कार्य पूर्ण किया,, आंखें अंत तक सड़क पर लगी रही कि शायद सब आ जायेंगे।
लोग पूछते तो कह देते, बच्चों की परीक्षा चल रही है,बहू की तबियत ठीक नहीं है, बेटा तो आ रहा था, हमने ही मना किया,,
सागर की मां उनकी बेरूखी सहन नहीं कर पाई और अवसाद की शिकार हो गई,, एक ही बेटा है, और उस पर उसका ऐसा कठोर रवैया,,उनका बुढ़ापा कैसे पार होगा,,
एक वक्त था जब पिता रिटायर नहीं हुए थे,तब यही बेटा,बहू कितने मान सम्मान करते और प्रेम से रहते थे,, क्यों कि साथ रहने पर सब खर्च पिता के मत्थे रहता था,,
अब तो गांव में रहने चले गए, तो बेटे ने स्वार्थ वश नाता ही तोड़ लिया।
हर वर्ष बेटा और बहू अपनी कार से साल में एक बार जाते और जितना चावल, गेहूं, सरसों का तेल उनकी गाड़ी में आता, खूब ठूंस ठूंसकर भर लाते,बस एक हफ्ता रहते, मां बाप निहाल हो जाते,चलो, किसी बहाने तो आते हैं,,सब गांव वालों को खुश हो कर सुनाते, मेरे बहू बेटे आयें हैं,,
इस बार उनको आये चार दिन ही हुए थे कि एक दिन काम करते करते मां जल्दी में गिर पड़ी,, उनके पैर में फ्रैक्चर हो गया था,, पिता जी ने किसी को बुला कर घरेलू इलाज किया।
बहू ने देखा,कि मां तो अब बिस्तर पर आ गई है,चल फिर नहीं सकती,अब तो सब काम मुझे ही करना पड़ेगा, ये पता नहीं कब तक ठीक होगीं। बहू ने बेटे को वापस चलने की जिद की और दोनों ने गाड़ी में अनाज लादा, मां से कहा,अपना ख्याल रखना, हमें ज़रूरी काम से जल्दी जाना है।
मां दर्द के मारे रोते हुए बोली,बेटा,मेरा पैर टूट गया है, बाबू जी अकेले कैसे मुझे संभालेंगे और कैसे सब काम करेंगे,,अभी कुछ दिन और रुक जाओ, पर दोनों अनसुना कर के चले आये।
इधर मां को प्लास्टर चढ़ गया, गांव वालों की मदद से मां को अस्पताल ले जाया गया था।
तन के दर्द से ज्यादा दर्द अपने खून के दुर्व्यवहार से हुआ ।मां का दिल टूट गया, पत्थर पूजा, कितने व्रत उपवास किया, तीर्थ यात्रा किया, इस बेटे को पाने के लिए,सब कष्ट सह कर कितने जतन से पाला पोसा,आज यही दिन देखना बदा था,, और एक दिन सागर के पिता जी खाना बना कर जब अपनी अपाहिज पत्नी को खिलाने गये तो उनकी गर्दन एक तरफ लुढ़क गई,कौर फेंक कर पिता घबरा कर चिल्लाते हुए बोले,, तुम तो पुत्र मोह में छोड़कर मुझे चली गई, मैं किसके सहारे रहुंगा, मेरे लिए जरा भी ना सोचा।
बेटे को फोन किया,लोक लाज के डर से बेटा बहू तो आये पर बच्चों को नहीं लाये,,
गांव वाले तो सब जानते थे, हिकारत भरी नजरों से देखते हुए बोले,, मां कलपती, तड़पती हुई चली गई,अब आयें हैं नाटक करने। तेरहवीं के बाद अपने पिता को साथ चलने को बोले,पर पिता ने स्पष्ट इंकार कर दिया।
कई साल बीत गए,,सब लोग सब कुछ भूल गए,पर दुखियारी मां की तड़पती आत्मा और समय नहीं भूला,ना ही भगवान भूले।
सागर अपने आफिस जा रहा था, मोटरसाइकिल खड़ी करते समय अचानक भरभरा कर गिर पड़ा,उसका वही पैर टूटा, जो उसकी मां का टूटा था, बाहर ले जाया गया, पूरा पैर ही बेकार हो गया था,हिप से लेकर पूरा पैर नकली लगाया गया, भयंकर कष्ट झेलना पड़ा,, उसे शायद कहीं आभास हुआ हो, अपराध बोध हुआ हो, जो निष्ठुरता अपनी मां के प्रति उसने किया था। उसके बेटे और बेटी जो बाहर रहते थे, वो भी नहीं आ सके और सागर को अकेले ही बाहर इलाज के लिए जाना पड़ा।
आज उसे अपनी करनी एक एक करके याद आ रही थी
आज सालों बीत जाने पर भी ना तो वो कार चला सकता है और ना ही बिना किसी सहारे के चल सकता है,,साथ ही अपने किये पर शर्मिन्दा होने के कारण अवसाद से ग्रस्त हो रहा है,, उसके पिता ने भी उसे माफ़ नहीं किया और सारे रिश्ते तोड़ लिए,
इसीलिए कहते हैं कि,, भगवान के घर देर है,,पर अंधेर नहीं है,,
उनकी लाठी में आवाज़ नहीं होती है,,
सच ही कहा गया है, किस्मत के खेल निराले मेरे भाई।
किस्मत के आगे चले ना किसी का जोर मेरे भाई।
सागर के साथ किस्मत ने पलटवार करके अपना हिसाब चुकता कर लिया,,
काश, उसने अपने माता पिता का कहना मानकर अपना फ़र्ज़ निभाया होता, तो सबकी जिंदगी एक खुशनुमा जिंदगी रहती।।
सुषमा यादव पेरिस से
# किस्मत का खेल