किस्मत का खेल – वीणा सिंह  : Moral stories in hindi

शानदार सजावट झिलमिलाती रोशनी  और मेहमानों से घर भरा हुआ रौनक बिखेर रहा था… दीपा जी बहु के स्वागत की तैयारी में मगन थी.. बनारसी साड़ी और भारी जेवर से दुलहन सी दीपा जी को थोड़ी परेशानी हो रही थी पर.. आधे घंटे में दुल्हन को लेकर दुल्हा पहुंचने हीं वाला था.. बाकी बाराती पीछे गाड़ी में थे..

                      मंगल गीत के साथ नई दुल्हन को सुहागिन महिलाएं गाड़ी में सिंदूर लगा रही थी. फिर दउरा(बिहार में बहु आती है तो बांस के दौरा में पैर डाल कर घर में प्रवेश करती है) में पैर रखते हुए गीत हंसी मजाक के साथ घर में प्रवेश किया.. अपने आलता लगे पैरों की छाप छोड़ते बड़े से हॉल में प्रवेश किया… दुल्हा बना साकेत सुंदर सी दुल्हन पा कर फूला नहीं समा रहा था… नई दुल्हन रिया  मां की सूरत सास में देख रही थी..

क्योंकि उसकी मां बहुत पहले ही दुनिया से चली गई थी.. दीपा जी दुल्हन की नजरें उतार रही थी…. जड़ाऊ हार का सेट बहु को मुंह दिखाई में दे कर अपने हाथों में पहने कंगन उतार कर बहु को पहना दिया और उसका माथा चूम लिया… सब कुछ हंसी खुशी चल रहा था तभी शोर हुआ रितेश जी दूल्हे के पिता को दिल का दौरा पड़ा है और उनको शहर के नर्सिंग होम में भर्ती करवाया गया है.. साकेत अपनी मां को लेकर नर्सिंग होम भागा.…पर उसके पिता को डॉक्टर बचा नही पाए…

            सारी खुशियां मातम में बदल गई.. दीपा जी तो जैसे पागल हो गई थी.. रिया को मनहूस और न जाने क्या क्या बोले जा रही थी…. रिया भी अवाक थी.. #किस्मत कैसे कैसे खेल दिखाता #है…जिसको थोड़ी देर पहले  घर की लक्ष्मी कह कर बलैया ले रही थी दीपा जी वही अभी… रिया का हाथ पकड़े लोगों के रोकने के बावजूद भी दीपा जी गेट से बाहर कर दिया… मनहूस आज के बाद इस घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए मेरे पति को आते हीं खा गई.. मुझे पहले हीं सोचना चाहिए था अपनी मां को खा चुकी है जो लड़की…

                      किसी रिश्तेदार से कहकर साकेत ने रिया को उसके मायके भेजवा दिया.. रिया के पापा को भी दीपा जी ने बेइज्जत कर वापस भेज दिया.. बारहवीं के बाद साकेत सोच रहा था मां से रिया के लिए कैसे बात शुरू करूं…. तभी दीपा जी ने कहा तू रिया से तलाक की प्रक्रिया शुरू कर दे. साकेत बहुत समझाया पर दीपा जी ने अपना फैसला सुनाया वो मनहूस या तुम्हारी मां एक को चुनो…

साकेत दुखी मन से मां से कहा मां मैं रिया को बिना किसी गलती के सजा नही दे सकता… तो मेरा फैसला भी सुन लो आज से अभी से जायदाद में से तुम्हे फूटी कौड़ी भी नही मिलेगी, और मुझसे भी तुम्हारा रिश्ता खत्म.. कभी लौट कर मत आना.. साकेत रोया गिड़गिड़ाया मां जायदाद मत दो पर रिश्ता मत तोड़ो पर..

                       साकेत रिया को लेकर अपनी नौकरी कर पुणे चला गया… वक्त गुजरता रहा. रिया और साकेत कभी कभी दुखी हो जाते काश मां हमे समझती.…

                ईशा और ईशान दो बच्चों के किलकारी से रिया और साकेत का घर आंगन चहक उठा… हर खुशी के मौके पर रिया और साकेत को मां याद आती… कभी किसी से उड़ते उड़ते खबर मिल जाती बड़े भैया और भाभी ने मां के नफरत का फायदा उठा सारी जायदाद अपने नाम करा ली है….

मां अपना खाना खुद बनाती है.. मां पहले से कमजोर और लाचार हो गई है.. ओह दोनो दुखी हो गए…पर विवश थे.. बड़े भैया और भाभी ने मां की नफरत को आग में घी डालने जैसा काम किया.. हमसे भी रिश्ता खतम कर लिया…

                   बड़ी बुआ का फोन आया सुबह में साकेत तेरी मां का पैर फिसल गया है तेरे भाई ने सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया है…कल गई थी मिलने बहुत रो रही थी.. डॉक्टर ऑपरेशन के लिए बोला है.. पर सात दिन हो गए तेरा भाई फोन करने पर बोलता है ऑफिस के काम से शहर से बाहर हूं..

उसकी पत्नी घर में ताला लगा कहीं चली गई है.. बच्चे तो बाहर पढ़ते हैं.. तू हीं कुछ कर… और साकेत शाम की फ्लाईट से पहुंचा… मां की चीत्कार सुन आस पास के पेशेंट भी बेचैन हो गए.. मां बेटे के आसुओं ने एक दूसरे की व्यथा बयां कर दी.. डॉक्टर से राय कर एंबुलेंस से साकेत मां को लेकर पुणे चला गया…. चार घंटे चला ऑपरेशन.. बारह दिन बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया गया… इस बीच बहुत कुछ हुआ रिया ने जी जान से दीपा जी की सेवा की..

            घर आने पर दीपा जी की आरती उतार कर अंदर ले गई…. बच्चे दादी दादी कर रहे थे… रिया रसगुल्ला मुंह में खिलाते हुए कहा मां आपके घर मे आपका स्वागत है… वाकर से चलते समय परछाई सा खड़ी रहती रिया… पसंद पूछ कर खाना बनाती…. बच्चे कहानी सुनने की जिद्द करते… साकेत गोद में आकर लेट जाता मां… रिया कहती अपना वजन मत दो मां अभी बहुत कमजोर हैं… दीपा जी अपराध बोध से भर जाती..

इन बच्चों के साथ मैने कितना बुरा किया. भगवान जिसकी जितनी सांसे देकर भेजते हैं उससे ज्यादा कोई जी नही सकता… ये सच जानते हुए भी मैं बिन मां की बच्ची के साथ ओह… #किस्मत के खेल#देख रही थी दीपा जी… जिसे अपने दरवाजे से हाथ पकड़ कर निकाला था मनहूस और न जाने क्या क्या कहा था वही आज मेरे जीने की खुश रहने की वजह बन गई है… मुझे माफ कर दो मेरे बच्चों दोनो को गले लगाए दीपा जी बड़बड़ा रही थी तभी दोनों बच्चे दादी मां हमे भी आपके पास रहना है कह कर लिपट गए… खुशी के आसूं बहाते दीपा जी किस्मत के खेल देख रही थी…

वीणा सिंह

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