किस्मत का खेल- पूजा मिश्रा   : Moral stories in hindi

 आज कुसुम की शादी है ,उसके परिवार रिश्तेदार सब आंखे फाड़े उसकी शादी का स्वागत और दहेज देख रहे थे ,रात दिन काम में लगी रहने वाली कुसुम शादी के जोड़े में बहुत सुंदर लग रही थी ।

      मिसेज अग्रवाल  चेयर पर बैठी सब इंतजाम देख रही थी आज उनके मन से कुसुम की सेवा के ऋण से  मुक्त होने का थोड़ा सा अहसास था जिसे वह उसके पसंद की शादी करके उसकी गृहस्थी बसा कर पूरा करना चाह रही थी ।

  उन्हें  वह दिसंबर का महीना आज याद आ रहा था ,जब बी पी बढ़ने से उन्हें लकवा हो गया था ,दोनो बेटे बाहर थे पति देव खुद भी आर्थराइटिस के मरीज थे अब क्या होगा

यही सोचकर मेरी तबियत और खराब हो रही थी ।एक हफ्ते अस्पताल में रहने के बाद जब घर आई  तब तक दोनों बेटों और बहू अंजना ने मेरी सुविधा के लिए शांता बाई की बेटी कुसुम को सेवा के लिए एक अच्छी पगार पर रख दिया था ,उन्हें भी अपने काम पर वापस जाना था ।

           कुसुम ने अब मेरी पूरी जिम्मेदारी ले रखी थी उसकी निश्छल मुस्कान के साथ सुबह सुबह आंटी जी हरे कृष्ना अंकल जी हरे कृष्णा कहते हुए घर में आना हम दोनो को बहुत अच्छा लगने लगा ।

       मुझे चाय बनाकर पिलाना अंकल को पूछकर नाश्ता बनाना ,मेरे सुबह के सारे काम मेरे नहलाने से लेकर पूजा की तैयारी करना पूजा घर में मुझे ले जाना सब खुशी खुशी करती रहती थी ।

   मै बहुत उदास होती थी की मेरे बेटी नही है पर ईश्वर की कृपा से मुझे अब कुसुम अपनी बेटी लगने लगी थी ।

कुसुम कभी मेरी बेटी से ज्यादा मेरी मां बन जाती थी आंटी जी आपको पूरा पीना है केसे आप ठीक होंगी डांटते हुए पूरा सूप पिलाना ।

“अभिमान” – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

    उसकी सेवा ने मुझे फिर से अपने काम करने लायक बना दिया था परंतु अब कुसुम ने हम दोनो के दिल में अपनी बेटी की जगह बना ली थी अब वह घर की सदस्य हो गई थी । उसकी ईमानदारी ने सेवा ने कभी अहसास ही नही होने दिया की वह किसी और की संतान है हम उसके मोह में पड़ गए ।

   तीन चार साल हो गए थे कुसुम अठारह की हो गई थी शांता बाई उसकी शादी की बात करती तो मुझे अच्छा नहीं लगता ,अभी उसकी उम्र क्या है क्यों जल्दी शादी कर रही हो ?

   आप माजी जानती नही लड़की सयानी नीद खराब करती है ।कुछ ऊंच नीच न हो जाए अपनी इज्जत रह जाए ये अच्छे अपने घर जाए हमे भी चैन हो जाय।

     वह कुसुम की बात अपने स्तर पर जहां करती मुझे उसका कोई रिश्ता पसंद नहीं आता ।

     एक दिन ड्राइवर रामलाल अपना लड़का लेकर जब आया था तभी मुझे वह कुसुम के लिए ठीक लगा था ,अग्निबीर की परीक्षा में सफल हो गया था आशीर्वाद लेने आया था मैने  पांच सौ का नोट मन में शगुन सोचकर उसे आशिवाद में दिया था ।

    अग्रवाल साहब को मैने मन की बात बताई उनको भी ये रिश्ता अच्छा लग रहा था उस लड़के राजीव में कोई खराब आदत नही थी बहुत सौम्य और संस्कारी है ।

     कुसुम भी हम लोगों के साथ रहते अच्छे ढंग से रहना बोलना सीख गई थी देखने में अच्छी है रामलाल को भी रिश्ता पसंद आ गया ।

  #  किस्मत का खेल ,कुसुम अब एक अच्छे घर में एक अग्निवीर की पत्नी बनने जा रही है ,और मेरी बेटी भी बनी रहेगी मेरी हर जरूरत की साथी ।

    एक बेटी की शादी का अरमान भी हम दोनो उसकी शादी करके पूरा कर रहे थे । आज कुसुम ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से जो जगह हम दोनो के दिल में बना ली थी ईश्वर उसे ढेरों खुशियां दे उसकी बिदाई को सोच कर आंखे भर आई हैं ।

         स्वरचित

                पूजा मिश्रा 

              कानपुर ( U P )

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