क़िस्मत का खेल – के कामेश्वरी : Moral stories in hindi

भारती बैठक में बैठकर टी वी देख रही थी कि उनका आठ साल का पोता वहाँ आकर कहने लगा कि दादी आप अपने कमरे में जाइए मेरे दोस्त आने वाले हैं ।

भारती ने कहा कोई बात नहीं आनंद मैं तो थोड़ी सी जगह में ही बैठी हूँ तुम्हारे दोस्तों के बैठने के लिए बहुत जगह है ।

वह रोते हुए कहने लगा कि मेरे दोस्त आपको देख कर स्कूल में मेरा मज़ाक़ उड़ाएँगे । भारती की एक आँख नकली है जिसके कारण माँ बेटे को वो पसंद नहीं आती है ।

उसी समय बहू राशी आकर कहने लगी थी कि बच्चे को क्यों रुला रहे हैं ।  जाइए अपने कमरे में जाकर बैठ जाइए ।

भारती तो उस समय वहाँ से चली गई थी पर उसका नतीजा यह हुआ कि घर में बेटे के साथ बहू का झगड़ा हो गया था ।

आपको मालूम नहीं है ना कि मेरा बेटा संदीप शहर का बहुत बड़ा हार्ट सर्जन है । उसने अपनी पत्नी और बेटे को खुश रखने के लिए मुझे अपने अस्पताल के ही स्पेशल वार्ड में भर्ती करा दिया था ।

बीमार हैं तो अस्पताल आना अच्छा लगता है लेकिन एक स्वस्थ व्यक्ति बीमारों के बीच बीमार ही हो जाता है । एक दिन बीमारों के लिए बेड कम पड़ गए थे तो संदीप मेरे सामने आकर खड़ा हो गया था और कहने लगा कि माँ आपको यह कमरा ख़ाली करना पड़ेगा मरीज़ों के लिए बेड़ कम पड़ गए हैं । भारती ने कहा कि मैं तुझसे एक बात कहूँ ।

संदीप उनकी तरफ़ देखने लगा जैसे कह रहा है चल जल्दी से कह दे । भारती को मालूम था कि शहर के सबसे बड़े सर्जन के पास माँ के लिए समय नहीं है । उसने कहा मुझे वापस गाँव भेज दे ।

संदीप ने कहा कि ठीक है इस कमरे से निकलकर आप ओ टी में बैठो मैं आकर आपको छोड़ दूँगा ।

भारती ने अपने पड़ोसी को फ़ोन करके बताया था कि वह आ रही है । मरीज़ों को बेड़ एलॉट करने के बाद संदीप माँ के पास आकर कहने लगा कि चल तुझे छोड़ देता हूँ।

भारती को संदीप गाँव के अपने घर ले गया था । जहाँ आठ महीने पहले माता-पिता  मिलकर रहते थे । पिता की मृत्यु के बाद लोगों के डर से माँ को वह अपने साथ शहर ले गया था । राशि और आनंद को माँ का साथ लाना पसंद नहीं था क्योंकि माँ की एक आँख नकली थी जिसके कारण वे लोगों के बीच शर्मिंदगी महसूस करते थे । दोनों माँ बेटे ने उसका जीना हराम कर दिया था । उनकी रोज रोज की चिकचिक से तंग आकर माँ को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था । वे बिचारी वे बीमार नहीं थी फिर भी मरीज़ों के बीच दिन गुजार रही थी । अब उसे भी तसल्ली है कि माँ के कहने पर ही उन्हें गाँव के मकान में रहने के लिए भेज रहा है ।

पड़ोसी ने वहाँ पहले से ही घर की सफ़ाई करा दिया था । संदीप ने माँ को वहाँ छोड़ते समय उनके हाथ में दस हज़ार रुपये रखा और कहा कि मैं आते रहूँगा माँ आप फ़िक्र मत करो ।

भारती यहाँ आकर खुश रहने लगी । उसने घर को अच्छे से सजा लिया ।  इस घर में वह शादी करके आई थी । अपने पति के साथ सुखदुख के दिनों के गवाह यहाँ की एक एक दीवार थी । संदीप आने की बात कह तो रहा था पर चार महीने गुजर गए परंतु वह नहीं आया सारे पैसे ख़त्म हो गए थे । अब क्या करना है सोच रही थी ।

उसके पास घर का सामान ख़रीदने के लिए भी पैसे नहीं थे । दुकानदार पूछने लगा था कि माँजी आपके बेटे ने पैसे नहीं भेजे हैं क्या?

पड़ोसी भी कहने लगे थे कि संदीप ने तो फिर से आने का वादा किया था पर अब तक नहीं आया है । भारती को उन सबकी बातों का भी बुरा लगने लगा । इसी सोच में वह कुछ तो समय बिताने के लिए अपने घर को सँवारने लगी सामान इधर उधर रखते समय उसकी नज़र पुरानी संदूक पर पड़ी जिसे उसने संदीप के साथ शहर जाने के पहले ऊपर पुराने सामानों के पास रख दिया था ।

उन्होंने उसे नीचे उताकर खोल कर देखा तो उसमें कुछ गहने रखे हुए थे । उन्हें देखते ही भारती में कुछ हिम्मत आई । उसे लगा कि अब मैं बेटे के सहारे के बिना अपने आप कुछ कर सकती हूँ ।

 उसे यह भी याद आया था कि बहुत समय पहले जब पति जीवित थे तब उनके घर में पैसों की तंगी हो गई थी ।  उस साल बहुत बारिश हो गई थी जिसके कारण पूरी फसल तबाह हो गई थी । घर में फसल के ना आने के कारण दाने दाने के लाले पड़ गए थे तब उसने ही पहल करके पति को मनाया और घर पर एक गाय ख़रीद कर ले आई । गाँव के लोगों की मदद से उसने गाय पालने दूध दुहने आदि सभी बातों को सीख लिया उसकी पूरी देखभाल करते हुए कुछ पैसे कमाने लगी थी ।

 संदीप के लिए भी दूध दही बचने लगा अपने लिए कुछ दूध रख कर बाकी सब बेचती थी । इस तरह उसने पति का साथ दिया । हालातों के सुधारने के बाद भी वह इस व्यापार को करती रही । संदीप के साथ शहर जाते समय उसने अपनी गाय को वहीं सरपंच के घर छोड़कर चली गई थी ।

भारती के यहाँ आने के बाद सरपंच ने उसकी तकलीफ़ देख कर उसे उसकी गाय लौटाने का फ़ैसला किया । भारती ने भी सोच लिया था कि अब वही काम फिर से करूँगी ।

भारती का व्यापार धीरे-धीरे बढ़ने लगा । उसने अपने साथ एक बच्चे को भी काम की मदद के लिए रख लिया ।

संदीप अपने परिवार के साथ बाहर घूम फिरकर घर आया देखा तो उसकी बुआ बाहर खड़ी हो उसका इंतज़ार कर रही थी । उसे आश्चर्य हुआ था कि उन्होंने अपने आने की कोई ख़बर क्यों नहीं दी ?

वही बात उसने बुआ से पूछी जो दस साल के बाद इंडिया आई थी । सुशीला बुआ ने कहा कि वह सबको स्पेशली भारती भाभी को सरप्राइज़ देना चाहती थी । भाई की मृत्यु के बाद भाभी को पहली बार देख रही हूँ ।

चल! अब बातें बहुत हो गई हैं भारती भाभी से मिल लेती हूँ । भाभी किस कमरे में है कहते हुए अंदर गई । उनके पीछे पीछे संदीप और राशि यह कहते हुए भागे कि माँ यहाँ नहीं रहती है ।

सुशीला ने पूछा कहाँ रहती है । संदीप ने हकलाते हुए कहा कि वे गाँव चली गई हैं वहीं रहती हैं । राशि कहने लगी कि हमने उन्हें बहुत रोका पर वे नहीं रुकी ।

सुशीला- ठीक है संदीप चलो गाँव चलते हैं । मुझे उनसे मिलना ही है । वे सब एक घंटे में गाँव पहुँच गए ।

उनके पहुँचते ही पड़ोसियों ने कहा कि वाह संदीप माँ को एक बार छोड़कर गए तो फिर वापस मुड़कर नहीं आए । उनके पास पैसे कहाँ से आएँगे वे कैसे जिएँगी क्या करेंगी सोचा भी नहीं ।

संदीप हमने सुना है कि उनकी नकली आँख की वजह से तुम्हारे बेटे और पत्नी को शर्मिंदा होना पड़ता था ।

अरे! भाई उनकी इस नकली आँख के ज़िम्मेदार तुम ही तो हो । बचपन में राम रावण युद्ध कहकर तुम सब बच्चे लकड़ियों से खेलते थे और खेलते हुए तुम्हारे हाथ से लकड़ी वाली बाण तुम्हारी माँ की आँख में लग गया था ।

सुशीला को संदीप की करतूत का पता चल गया था । जैसे ही वे अंदर पहुँची देखा कि वहाँ का माहौल ही अलग था । एक तरफ़ गाएँ बँधीं हुईं थीं तो दूसरी तरफ़ भारती दूध के केन भिजवाने के लिए गिनवा रही थी वह सुशीला को देखते ही उनके गले लग गई थी । नन्द भाभी दस साल बाद जो मिली थी ।

 भारती को लगा जैसे कोई उसके पैर पर पड़ा है देखा तो बहू और बेटा उसके पैर पकड़कर अपनी गलती की माफ़ी माँग रहे थे।

भारती ने उन्हें उठाकर कहा इसमें तुम लोगों की कोई गलती नहीं है ।  मैं ही वहाँ से अपनी मर्ज़ी से आ गई हूँ ।

क़िस्मत का खेल देखो जहाँ मैंने अपनी ज़िंदगी की शुरुआत की है वहीं आकर फिर एक नए सिरे से अपनी ज़िंदगी की शुरुआत कर रही हूँ । संदीप ने कहा माँ चलो ना अब हम से कोई गलती नहीं होगी ।

भारती ने कहा देख संदीप यहाँ मुझे सम्मान मिलता है और मेरा काम अच्छे से चल रहा है ।

मेरी एक बात याद रख जब कामयाबी मिलती है तो घमंड मता करना और जब कामयाबी हासिल नहीं होती है तो निराश मत होना ।

अभी तुम लोग जाओ जब ज़रूरत पड़ेगी मैं खुद आ जाऊँगी ।

उनके जाने के बाद सुशीला और भारती कुछ दिन साथ रहे सबसे विदा लेकर सुशीला अमेरिका चली गई इस वादे के साथ कि ज़रूरत पड़ने पर सुशीला उसे याद करेगी ।

के कामेश्वरी

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