हरी के घर में उसकी पत्नी विमला और उसके दो बच्चे कृष्णा और माधव थे। खुशहाल परिवार था उसका। मेहनत मजदूरी करके कमाता था और अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। दोनों बच्चों को सरकारी स्कूल में डाल रखा था। विमला भी छोटा-मोटा फॉल पीको करके थोड़ा बहुत कमा लेती थी। पैसा नहीं था लेकिन संतुष्टि जरूर थी। और यही कारण था कि उनका परिवार बड़ा खुशहाल था।
पर किस्मत हमेशा एक जैसी नहीं होती। और उनके साथ किस्मत खेल खेल गई।
पिछले साल एक रोड एक्सीडेंट में बिरजू के एक पांव कट गया और घर का सारा भार विमला पर आ गया। विमला करती भी तो कितना क्या करती? बच्चों को संभालना, घर का खर्चा, ऊपर से हरी की हालत भी ऐसी थी, उसका खर्चा अलग। हॉस्पिटल से भी इतनी जल्दी छुट्टी मिलने के आसार नहीं। और अगर हॉस्पिटल से छुट्टी मिल भी जाती है तो भी इतनी जल्दी हालात सुधरने के आसार नहीं थे।
बहुत बुरी तरह हार गई थी। कई लोगों से मदद की गुहार लगाई पर कोई रिश्तेदार, संगी साथी मदद करने को तैयार नहीं। समाज के ठेकेदारों के पास गई तो उन लोगों ने विमला की ही कीमत लगा दी। वहाँ से अपनी इज्जत आबरू बचाकर विमला जैसे तैसे निकली थी। पैसे पैसे को मोहताज विमला ने अपने दोनों बच्चों के साथ आत्महत्या करने की ठान ली।
गांव में पंचायत लगी थी। आज हरी और उसके परिवार को कटघरे में खड़ा किया गया था। सारे लोग हरी को देखकर कानाफूसी किए जा रहे थे। जो चुप थे वो उन्हें ऐसे घूर रहे थे जैसे पता नहीं हरी और उसके परिवार वाले कोई जघन्य अपराध करके आ गए हो।
जबकि बेचारे हरी को तो पता ही नहीं कि बात क्या हो गई। बेसाखी का सहारा लेकर बड़ी मुश्किल से खड़ा हुआ था। उसे बैठने तक को जगह नहीं दी गई और उसके दोनों बच्चे निरअपराध से अपने पापा के पास चुपचाप खड़े हुए थे। क्यों अचानक से पंचायत ने उसे और उसके परिवार को बुला लिया, बस यही बात उसके दिमाग में चल रही थी। थोड़ी देर बाद पंच आए और पंचायत शुरू कर दी गई। पंचों में से मुरारी जी बोले,
” क्यों रे हरी तेरी पत्नी विमला कहाँ है? उसको भी तो लाता”
” जी बाऊजी, वह घर पर आराम कर रही है। उसकी तबीयत ठीक नहीं है”
” काहे तबीयत ठीक नहीं है, सब पता है हमको। अभी के अभी उसको बुला यहां पर”
गांव के दबंग सुखलाल ने हरी को घूरते हुए कहा। सब लोगों ने उसकी हां में हां मिलाई। हरी को ही भेजा गया उसके घर उसकी पत्नी विमला को लाने के लिए। जबकि उसके 9 साल के दोनों जुड़वा बच्चों को वहीं पंचायत में रोक लिया गया। हरी को गांव के ही बनबारी लाल के साथ पैदल भेज दिया। हरी जैसे तैसे अपनी बेसाखियों के सहारे अपने घर पहुंचा। हरी को देखते ही उसकी पत्नी बोली,
” क्या बात है जी, क्यों बुलाया था आपको पंचायत में? और दोनों बच्चे कहां है?”
” उन दोनों को वही रोक लिया है और तुझे पंचायत में बुला रहे हैं”
” आपने कहा नहीं मेरी तबीयत खराब है”
” कहा था, पर उन लोगों ने कहा कि विमला को बुलाकर लाओ”
” अरे ऐसा क्या कर दिया जो पंचायत बिठा दी इन लोगों ने”
“शायद…… “
हरी शायद के आगे बोल ही नहीं पाया और विमला सुनकर एक पल के लिए बिल्कुल चुप हो गई। फिर हिम्मत करके खाट पर से उठी। अपने कपड़े सही कर रही थी हरी के साथ चलने के लिए।
इतने में बाहर से बनबारी लाल की आवाज आई,
” अरे हरी भैया, तनिक जल्दी करो। वहां सरपंच जी तुम्हारे साथ साथ हमें भी दो बातें सुनाएंगे”
आवाज सुनकर दोनों पति पत्नी घर के बाहर आए और बनबारी लाल के साथ पैदल चल दिए। पंचायत तक पहुंचे तो विमला को देख कर लोगों ने मुंह बनाने शुरु कर दिए।
” आ गई बेशर्म, सारे गांव की इज्जत मिट्टी में मिलाकर रख दी”
” हाय दैया! पैसा कमाने के लिए कोई इतना नीचे कैसे गिर सकता है”
” हाय! उसके पति ने भी ना रोका”
” काहे रोकेगा? उसे भी तो खाने को मिल रहे हैं”
जितने मुंह उतनी बातें। शोर बढ़ गया तो सरपंच जी ने सब को चुप करा दिया,
“शांति से बैठे रहो आप लोग। जिसे जो कहना है बाद में कहना। सबको मौका दिया जाएगा”
” काहे बुलाए हो सरपंच जी? अब तो बताओ” हरी ने कहा।
” हरी तेरी नाक के नीचे तेरी पत्नी क्या कर्म कर रही है? तुझे नहीं पता”
सुन कर हरी सकपका गया और गर्दन झुका कर खड़ा हो गया। फिर मुरारी जी विमला की तरफ मुखातिब हुए,
” क्यों री विमला, तुझे इस गांव की इज्जत मिट्टी में मिलाते शर्म ना आई। पैसों के लिए कुछ भी गलत काम करने को तैयार हो गई”
” ऐसा क्या कर दिया मैंने सरपंच जी, जो पूरे गांव वालों को पंचायत बिठानी पड़ी” विमला ने कहा।
” हाय राम! देखो इस बेशर्म को। कुकर्म करने के बाद भी सामने बोलने को तैयार बैठी है” तभी पंचायत में से किसी ने कहा।
” हां काहे की शर्म आएगी। पैसों के लिए लोगों के बच्चे जनने का काम करने लगी है। बड़ी इज्जत वाला काम कर रही है, जो सीना ठोक कर यहां पर सबके सामने मुंह चला रही है” दबंग सुखलाल ने कहा।
” देख विमला तूने जो भी किया है वो अपराध ही माना जाएगा। इसलिए तुझे और तेरे परिवार को ये गांव छोड़कर जाना पड़ेगा, यही हम पंचों का फैसला है। तू इस गांव में नहीं रह सकती। तेरे जैसी चरित्रहीन को हम हमारे गांव में जगह नहीं दे सकते”
” जैसी आप लोगों की इच्छा” विमला ने सपाट शब्दों में कहा।
” ये देखो, अपने कुकर्म के लिए माफी नहीं मांग सकती थी। कैसे बेशर्मी से कह रही है जैसी आप लोगों की इच्छा। अरे इसका साया ही हमारे घर की औरतों के लिए खराब है” दबंग सुख लाल बोला।
” किस बात की माफी मांगू। अपनी कोख किराए पर दी थी, किसी के साथ सोई नहीं थी। जब पैसों की जरूरत थी तब आप लोगों के सामने भी हाथ फैलाए थे। और आप सब ने मना कर दिया। तो क्या अपने पति और परिवार को मरने देती। और सुखलाल जी आप तो और भी महान थे। आपने तो मेरी इज्जत की भी कीमत लगा दी थी। तब बेशर्म मैं थी या आप थे?
मैं तो अपने बच्चों के साथ आत्महत्या करने ही जा रही थी। वो तो भला हो उस औरत का जिसने मुझे हिम्मत दी। हर कोई मुझसे कीमत ही तो मांग रहा था उसने भी मांग ली, तो क्या हर्ज है। उसने मेरे पूरे परिवार को बचाया। एक साल तक मेरा और मेरे परिवार का पूरा खर्चा उठाया। मेरे पति का पूरा इलाज करवाया। बदले में मैंने अपनी कोख उसे किराए पर दे दी तो आप सब लोग मुझे बेशर्म कहने लगे। कोख किराए पर दी थी, अपने स्वाभिमान और इज्जत को मारा नहीं था मैंने।
काहे माफी मांगू आप लोगों से। जब जरूरत पड़ी तो आप सब ने मुंह फेर लिया, रिश्तेदार बगले झांकने लगे। हमें मरने के लिए छोड़ दिया। किसी के साथ सो कर अपने स्वाभिमान को मारने से अच्छा है कि अपनी कोख किराए पर दे दूँ। गांव छोड़कर जाना मंजूर हैं पर तुम लोगों से माफी मांगना मंजूर नहीं”
“पंचायत अगर ऐसी औरतों की बाते सुनने लगे तो हर कोई अपनी मनमानी करने लग जाएगा। अरे हमारे घर की औरतों को बिगाड़ रही है ये। निकालो इसको अभी के अभी” सुखलाल ने अपनी पोल खुलते देख कर चिढ़ते हुए कहा।
वही पास खड़े हुए सुखलाल के चमचे हरिया ने पत्थर उठाकर के विमला के ऊपर फेंक दिया। जिससे उसके सिर पर चोट आ गई। कुछ और लोगों ने भी फिर कोशिश की लेकिन सरपंच की फटकार सुनते ही सब शांत हो गए। सरपंच जी की देखरेख में ही विमला और उसके परिवार को वहां से निकाल दिया गया।
घर आकर विमला ने अपना सामान समेटा और अपने परिवार के साथ हमेशा के लिए कहीं और रहने चली गई। लेकिन मन ही मन रोती हुई अपनी किस्मत को कोस रही थी, भगवान से बिनती कर रही थी भगवान जैसा तूने मेरे साथ खेल खेला वैसा किसी की किस्मत के साथ मत खेलना।।
मौलिक व स्वरचित
✍️गौरी भारद्वाज