किस्मत – भगवती सक्सेना गौड़ : Moral Stories in Hindi

बीसवीं सदी में जन्मी रवीना, अब उन्मुक्त जीवन जी रही थी। जीवन मे किसी वस्तु की कमी नहीं थी।

पर कुछ है, जो कभी कभी दिल मे चुभ जाता है। आज जो स्वतंत्रता लड़कियों को मिल रही है, वह रवीना के बचपन या कॉलेज लाइफ में उसको नही मिल सकी। घर मे एक बंधन रहता था, लड़की हो, ऐसे रहो, ये पहनो, दुपट्टा बिना लिए बाहर मत जाओ, लड़को से बात नही करनी, पिक्चर नही जाना,

और और और, ढेर सारी बंदिशें। अब याद आता है, झिझकती ही रह गयी, मम्मी से बैठकर दुनिया जहान की बाते नही करी, हाथों में हाथ लेकर उनके साथ रवीना कोई बगीचे में नही घूमी, बहने उम्र में बड़ी थी, खुलकर मज़ाक नही कर पायी। घर मे पढ़ाई का माहौल था स्कूल, कॉलेज, पढ़ाई, डिवीज़न अच्छा लाने के चक्कर मे कई वर्ष बिता दिया।

प्यारी सी एक सहेली थी, ग्रेजुएशन के बाद शहर बदला, वह भी छूटी। उसके बाद रवीना जॉब में सुबह से शाम व्यस्त हो गयी। मन की कोठरी में कई अधूरी हसरतें जमा होती गयी, जब मौका लगेगा मस्ती करेगी, वह अपनी हसरतों से वादा करती रही। इस बीच इक दोस्त भी मिला, सिलसिला प्यार तक भी बढ़ा, पर फिर वही उस सदी की संस्कृति, नियम और कानून बीच मे आ गए। और रवीना एक गाना गुनगुनाती ही रह गयी…बिछड़े सभी बारी बारी !!

परिवार की आज्ञा से रवीना ने नए संसार मे कदम रखा। और फिर….जो भी प्यार से मिला वो उसी की हो गयी। बस जिंदगी की गाड़ी नयी पटरी पर एक्सप्रेस की गति से दौड़ने लगी। रवीना घर, परिवार, श्रीमान जी और बच्चो के जीवन को आकार देने में लग गयी। फिर उसने मन के आईने में कई दशक बाद चेहरा देखा, तो अद्भुत रह गयी, श्वेत बाल और झुर्रियों की रेखाएं उससे पूछ रही थी, तुमने एक लंबा समय व्यतीत कर लिया, अपने मन की संतुष्टि के लिए क्या किया। 

फिर से कुछ अधूरी हसरतें सपनो में कुछ अपनो को सामने खड़ा कर देती, पर जब आंखे खुलती तो पाती, जो लोग दिल के सबसे करीब थे, सब भगवान को भी प्यारे थे, और रवीना किसी से खुलकर कुछ बोल नही पायी, सब चल दिये।

कई दिनों से रवीना बीमार थी, बुखार, खांसी और गले के दर्द से परेशान थी। दवाइयों के कारण सुबह ही गहरी नींद लगी थी, रात पूरी खांसते बीती।

अचानक उसे लगा पैर के तरफ के कम्बल को किसी ने स्पर्श किया, उंसकी छठी इन्द्रिय उसे बहुत जल्दी इंगित करती थी। 

उठकर बैठ गयी, अरे आप, पैर क्यों छू रहे थे।

राजेश बोले, “अरे मैं देख रहा था, जगी हो कि सो रही, चाय बन गयी है।”

और वो जल्दी से टेबल से ट्रे लाकर बिस्तर में रखने लगे। जिसमे चाय, थाइरोइड की गोली, पानी, 2 बिस्कुट सब था। और बोले जाओ जल्दी से मुँह धोकर आओ।

और वह धीरे से उठकर वॉशरूम में गयी, और विचारों में खोने लगी। जीवन का सबसे मधुरिम पल वो दोनो रिटायरमेंट के बाद ही जी रहे थे। लगता है इस उम्र में आकर पासा पलट गया है। आफिस जाते समय जो रुआब नखरे दिखाते रहे, उंसकी भरपाई अब हो रही। कमजोरी और बीमारी के कारण अनुराधा चिड़चिड़ी हो गयी है।

जल्दी से आकर इतने सलोने श्रीमान जी के साथ रवीना ने चाय पी, फिर थर्मामीटर से बुखार देखा। 

“कम है, ऐसा करो फिर भी दवाई ले लो।”

दवाई लेकर रवीना फिर बिस्तर पर लेट गयी। विचार थे कि दवाई खाने के साथ फिर लाइन पर आ गए। ये कैसा रिश्ता होता है, कई वर्षों तक एक दूसरे से अनजान रहकर दो अजनबी मिलते हैं, दो जिस्म एक जान बनते हैं। अपने दिल का हवाई जहाज हमेशा एक ही रन वे पर चलाते हुए, उस रास्ते के स्थायी राही बन जाते है।

कभी प्यार तो कभी तकरार और कभी अबोला रहकर भी चार दशक तक आराम से एक दूसरे को देखकर जी लेते हैं। इतने दिनों के साथ के बावजूद, एक दिन का भी बिछोह उनसे सहन नही होता। आजकल रवीना की कुछ दिनों की बीमारी से ही परेशान हैं। 

पहले तो उसने मेड और कुक दोनो रखी थी, पर राजेश को ही कुक का बनाया खाना पसंद नही आता था तो मेड से ही कुछ रसोई की तैयारी करा लेती थी, पर खाना स्वयं ही बनाती थी। एक लाभ ये जरूर था कि राजेश खाना बनाने और खाने दोनो का शौक रखते हैं। इसीलिए रिटायरमेंट के बाद उस की चांदी ही चांदी थी, घूमना फिरना बढ़ गया था।

अब वह कुछ सही अनुभव कर रही थी, ग्यारह बज रहे थे, सोचा चलो, किचेन में जाकर लंच बनाती हूँ। जाकर देखा तो, दो कुकर सीटी बजाते हुए उसे अंगूठा दिखा रहे थे

“अरे, मैं आ ही रही थी, क्यों आप बनाने लगे।”

मस्ती के मूड में जो हमेशा बोलते थे बोल पड़े, मैम, आप बैठो, ये खानसामा आज आपको आपके पसंद की डिश खिलाता है।

और उनके हाथ मे दो थाली थी, दाल, रोटी और लौकी की उबली सब्ज़ी…

तभी रवीना ने बोला, “मेरे लिए तो ठीक है, पर आप क्यों ऐसा खाना खा रहे।”

वो बोल पड़े, मैं पत्नीव्रता बनने की कोशिश में लगा हूँ, सात फेरे लिए हैं, सबकुछ साथ साथ होना चाहिए।

और अपने भाग्य को धन्य समझ मेरी आँखें धुंधली होने लगी थी। #क्यों ना करूँ अपनी किस्मत पे नाज़

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बेंगलुरु

#क्यूँ न करूँ अपनी किस्मत पे नाज

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!