मेरा वादा है, आपसे जो भी लिख रही हूं सच लिख रही हूं…
मेरे बेटे शुभम की बहू श्रेया के साथ शादी को 6 वर्ष पूरे हो गए हैं। एक आम मां की तरह मेरा भी सपना यही था कि बहुरानी घर में आए… मैं उसे को प्यार करूं.. रानी बनाकर रखूं.. बिल्कुल अपनी बिटिया की तरह” मेरा सपना पूरा हुआ है, पर मेरी बहू आम बहू नहीं है, जब मेरे बेटे शुभम ने
मुझे कहा कि “मम्मी मैंने अपने साथ अपने ऑफिस में काम करने वाली श्रेया को पसंद किया है “तब हम उसके लिए लड़की देख रहे थे.. हम दोनों पति पत्नी ने आपस में विचार किया कि जिंदगी उन दोनों को जीना है अतः हमें हमारी सहमति जताना चाहिए …
श्रेया के मम्मी पापा ,मामा मामी झारखंड से हमारे घर आए ।हमारे साथ दो-तीन दिन रहे, हमको देखा समझा और चले गए, कुछ दिन बाद उनकी सहमति की सूचना आई। तब तक हमने श्रेया को देखा नहीं था ,फिर एक बार योजना बनाकर हम सब श्रेया को देखने के लिए बेंगलुरु गए.. श्रेया हमको
अच्छी लगी… श्रेया पढ़ी-लिखी, सुलझी समझदार निफ्ट कॉलेज से फैशन डिजाइनिंग में एमबीए किए हुए हैं… बहुत प्रतिभाशाली है.. बिजनेस के क्षेत्र में अपनी पकड़ अच्छी रखती है… फिलहाल वह मिंत्रा कंपनी में डिप्टी डायरेक्टर है। छोटे से समारोह में सगाई कर दी गई ।कुछ महीनों बाद मांडव से डेस्टिनेशन वेडिंग का आयोजन किया ,और श्रेया मेरे घर के आंगन में आई… मेरी आंखों में खुशियों के सपने हैं… मैंने स्वागत सत्कार किया…
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शादी के 1 सप्ताह बाद ही उनका यूरोप का ट्रिप था… बीच में मेरे पतिदेव की तबीयत खराब हो गई तब श्रेया ने कहा कि हम ट्रिप कैंसिल करते हैं.. मैंने उन्हें समझाया कि महंगी ट्रिप है और अब तबीयत ठीक है। तुम जा सकते हो । ट्रिपपूरी होने के बाद दोनों बेंगलुरु चले गए… कुछ महीनों बाद जब मेरी गुड़िया को बेटा हुआ तब समारोह में दोनों आए…
मेरी बहु रानी को किचन के कामों की इतनी पकड़ नहीं है… उनके घर पर भी मेड आती है, जो सब काम करती है.. लंच के टाइम पर खाना गर्म करके हम सबको सर्व करती है… हम दोनों आपस में बातें करते हैं ..शॉपिंग करते हैं… मजे करते हैं ..मेरी बहू आम लोगों की तरह नहीं है.. ना साड़ी.. पल्लू ..
.ना किसी प्रकार की औपचारिकता… बस हंसी खुशी के माहौल में हम रहते हैं… जब इनका स्वास्थ्य खराब हुआ तब हम बच्चों के पास 2 महीने रह कर आए… श्रेया ने हमारा बहुत ख्याल रखा.. कौन से डॉक्टर को दिखाना है ?खाने में क्या लेना है? पूरा डाइट चार्ट बनाकर लगा दिया था .
..घर पर कौन सा सामान बुलवाना है… दवाई टाइम टेबल से लेना है ..इन सब बातों का ख्याल रखा… हमारे लिए डॉक्टर का अपॉइंटमेंट लेना, अगर हम अकेले ही जा रहे हो तो केब बुक करवाना.. पूरा ख्याल रखना.. ड्राइवर को हिंदी भी आना चाहिए.. हम वहां से जब कहीं घूमने भी गए तो हमारे लिए वेजीटेरियन होटल बुक करवाना और ऐसी छोटी छोटी बातें जिनका की खयाल रखना …
श्रेया जैसी बहू पाकर मैं अपने आप को धन्य समझती हूं …कोई समझता है ससुराल आने के बाद बहू को एडजस्ट करना पड़ता है.. पर मुझे लगता है, श्रेया के आने के बाद मैंने बहुत कुछ सीखा …और मैंने यह भी जाना कि लड़कियों का यह भी एक रूप है.. यही सच्चा सशक्तिकरण है… यही वुमन एंपावरमेंट है …जरूरी नहीं कि हर किसी के लिए बहुत अच्छा बना जाए …अपने जीवन को अपने हिसाब से जीना ..प्रगति करना ..अपने से जुड़े रिश्तो का सम्मान करना.. और अपना स्वयं का व्यक्तित्व बनाना..
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अपना कैरियर बनाना …पति पत्नी के संबंधों का भी नया रूप देखा… आपसी सामंजस्य ,तालमेल, सहयोग ,अपनापन, प्यार इन सब का एक नया रूप मेरे बेटे में भी देखा… और मुझे लगता है कि यह भी एक जीवन की सच्चाई है.. इसे हम खुशी-खुशी स्वीकार करें या अपने आप को कोसते रहे …बहु सिर्फ हमारे इशारों पर चलने वाली कठपुतली नहीं है.. उसका स्वयं का अपना अस्तित्व है.. और अगर वह अपने हिसाब से चलती है.. तो हमारी नजरों में उसका सम्मान बढ़ना चाहिए…. मेरी नजर में तो मेरी बहू
श्रेया के लिए बहुत सम्मान है.. प्यार है.. यह बात जरूर है कि मेरे आस-पास के परिवेश में सब इस बात को कम समझ पाते हैं ..पर मुझे इस बात की परवाह नहीं है… मेरी बहू की राह सच्ची और अच्छी है तो मैं क्यों ना खुश रहूं? मुझे हर बार मुस्कुरा कर कहती है “अरे आप हर बार क्यों सभी का इतना टेंशन करती हैं ,आप तो मुस्कुराते रहें” मुझे मेरी बहू ने अपना बनाकर मुस्कुराना सिखा दिया है।
#बहू
सुधा जैन
रचना मौलिक