Moral Stories in Hindi
रिटायरमेंट के बाद अशोक जी और सुनिता जी एक छोटे से टाऊन में आकर रहने लगे थे। वक्त के साथ-साथ बच्चे अपने परिवार में व्यस्त और मां – बाप अपनी जिंदगी जीने की जद्दोजहद में लगे थे।
शाम के सात बज रहे थे की डोर बेल बजी।डोर बेल भी कभी कभार ही बजा करती थी वक्त – वक्त पर। कामवाली ही अक्सर होती थी क्योंकि पड़ोसी भी हम उम्र थे तो कुछ ना कुछ तो लगा ही रहता है। कभी कभार सुबह में सभी पार्क में बैठा करते थे। साधारण सी जिंदगी चल रही थी और एक डोर बेल ने जीवन में कुछ तो हलचल किया था।
अरे!” सुनिता जी देखिए तो सही इस वक्त कौन आया है?”
अशोक जी ने टीवी पर प्रसारित समाचार को देखते हुए आवाज लगाई।
आई जी….
नमस्कार आंटी…. सामने एक नवजवान खूबसूरत सा लड़का खड़ा था। बड़ा ही आकर्षक व्यक्तित्व का लग रहा था।
बेटा मैंने तुम्हें पहचाना नहीं… सुनिता जी ने चश्मा ठीक करते हुए कहा।
आंटी मैं इस शहर में नया – नया हूं। अभी नौकरी ज्वाइन किया है। आपके घर में कोई कमरा खाली होगा क्या?
मुझे शख्त जरूरत है किराए के मकान की।
बेटा कमरा तो है खाली पर मैंने ऐसा कोई भी विचार नहीं बनाया है की किराएदार रखना है। तुम ऐसा करो कल आना फिर मैं तुम्हें बताती हूं।
धन्यवाद आंटी अगर मेरी मदद करेंगी तो अच्छा रहेगा।कहकर नौजवान चला जाता है।
सुनिता जी कौन था और अपने दरवाजे से ही रफा-दफा कर दिया।
सुनिए जी एक नौजवान था।अच्छे घर का लगता है, उसे घर किराए पर चाहिए था।
तो आपने क्या कहा? मना तो कर दिया ना उसे?
नहीं… मैंने मना नहीं किया कल फिर से बुलाया है उसे। सुनिए मैं सोच रहीं हूं कि इतना बड़ा घर है हम दोनों ही हैं और बच्चे तो मेहमान की तरह आते हैं चले जाते हैं। क्यों ना हम ऊपर वाला कमरा किराए पर उठा दें। उसकी दूसरी सीढ़ी बाहर से भी है तो अंदर से कोई आना जाना भी नहीं रहेगा और थोड़ी रौनक हो जाएगी घर में भी।
हां तुम्हारी बात तो सही है। ऐसा करते हैं रात को बच्चों से बात करते हैं और वो सही तरीके से एग्रीमेंट वैगरह बनवा कर रख देंगे किसी किरदार को।
पहले तो बेटे ने मना किया कि आप लोग फालतू में परेशान हो रहे हैं आराम से रहिए घर में पर सुष्मिता बहू बहुत समझदार थी उसने सलाह दी कि आप लोग रख लीजिए किराएदार और हां कल जब वो लड़का आएगा तो मेरी बात कराइएगा मम्मी जी।
दूसरे दिन समय से पहले नवयुवक पहुंच गया। सुनिता जी ने घर के अंदर बुलाया और अशोक जी ने सारी जानकारी ली की कहां से है? कहां काम करता है और सुष्मिता ने भी सबकुछ तय करके घर किराए पर दे दिया।
सुबह – शाम घर में रौनक बढ़ गई थी। सुबह से नवयुवक जिसका नाम रोहित था गीत गुनगुनाते हुए घर के काम करता था।घर के अंदर छाई खामोशी में किसी की मौजूदगी के सुर फैलने लगे थे।आते जाते नमस्कार करके हाल खबर पूछा करता।
एक दिन सुनिता जी ने उसे रात के खाने पर बुलाया और उससे थोड़ी जान पहचान भी बढाई जाए और इसी बहाने उसको जानने का भी मौका मिलेगा।
रोहित बहुत ही चुलबुला सा लड़का था।आते ही रसोई घर में सुनिता का हांथ बंटाने लगा और थोड़ी ही देर में ऐसे घुल-मिल गया जैसे वो उसी परिवार का सदस्य हो।
अब धीरे धीरे सभी अच्छे दोस्त बन गए थे। रोहित आते जाते पूछ लिया करता था कि कुछ लाना है तो आंटी बता दीजिएगा।
सुनिता जी भी अब कुछ ना कुछ स्पेशल खाना बनाने लगी थी रोहित के लिए और रोहित बड़े चाव से तारीफें कर – कर के खाता था और सुनिता जी को बहुत खुशी मिलती थी।
जहां एक ओर जीवन बेरंग सी हो गई थी हर समय बीमारी का जिक्र और अकेलेपन का डर रहता था वहीं अब अशोक जी और सुनिता जी एक्टिव रहने लगे थे।
एक दिन रात को अचानक से अशोक जी को दिल का दौरा पड़ गया और सुनिता जी के एक फोन पर रोहित भाग कर आ गया और तुरंत गाड़ी निकाली और अस्पताल में भर्ती कराया। डाक्टर का कहना था कि जरा सी चूक हो जाती तो जान बचाना मुश्किल था। रोहित बड़ी जिम्मेदारी से दोनों को संभाल रहा था।
सुनिता जी के बच्चे तो विदेश में थे।वो इतनी जल्दी नहीं पहुंच सकते थे। थोड़े दिनों में सेहत में सुधार होने लगा था और अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी। रोहित ने चार दिनों तक आफिस से छुट्टी ले ली थी और बहुत देखभाल की थी।
सुनिता जी तो हांथ जोड़ कर रो ही पड़ी थी कि बेटा तुमने जितनी मदद की है मैं अपने बच्चों से भी उम्मीद नहीं कर सकती हूं।
अरे आंटी मैं भी आपके बेटे जैसा ही हूं।आप मुझे शर्मिंदा कर रहीं हैं। देखिए ना मैं भी अपने परिवार से दूर हूं ना ,तो मैं समझ सकता हूं की आपके बच्चों की मजबूरी। आप भी तो एक बेटे की तरह मेरा ख्याल रखती हैं। मां की कमी नहीं खलती है मुझे कभी भी। आपके हांथ का खाना मुझे अहसास दिलाता है की मैं अपने ही परिवार मे हूं।
अब रोहित उस परिवार का हिस्सा बन चुका था। रिश्तों का क्या है…. जरूरी तो नहीं की खून के हों। इंसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा होता है।
कुछ महीनों के बाद रोहित ने शादी कर ली थी और सुनिता जी ने एक और कमरा दे दिया था रोहित को। बहुत अच्छी तरह से बहू का स्वागत भी किया था। सभी एक परिवार की तरह घुल-मिल कर रहते थे। खासियत ये थी की सास बहू तो थे पर शिकवा शिकायत नहीं थी दोनों के बीच में। सभी अपने रिश्ते अच्छे से निभा रहते थे। अब वो किरदार और मकान मालिक नहीं थे बल्कि एक परिवार बन चुके थे।
कुछ रिश्ते भगवान की तरफ से अपने अच्छे कर्मों के फल के रुप में वरदान स्वरूप मिल जाते हैं।
सुनिता जी और अशोक जी खुश रहने लगे थे और उन्होंने फैसला लिया था कि उनके जाने के बाद ये घर रोहित के नाम कर देंगे क्योंकि बेटों को जरुरत नहीं थी और वो अपने देश ना लौटने का फैसला कर चुके थे।
बच्चे निश्चिंत हो चुके थे की रोहित है ना वो सबकुछ संभाल लेगा। अब अपनों से ज्यादा पराए अपने हो गए थे।
ना जाने हमारा समाज किस तरफ जा रहा है जहां लोग सिर्फ अपनी ख्वाहिशों और सपनों को जीने लगे हैं अब उनकी दुनिया में बुजुर्ग माता-पिता के लिए शायद ही कोई जगह बची है। जो कुछ भी नहीं था उसने सारे कर्तव्य और धर्म निभाया और जो सबकुछ था उसने मुड़कर भी नहीं देखा था।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी