” मैं किन्नर हूं, हां सुनो सब मैं किन्नर हूं, किन्नर”
शीला आज रो-रोकर बेहाल हो रही थी, उसकी गोद में एक लगभग बारह साल की बच्ची की लाश पड़ी है, जो खून से लथपथ है, जो भी पास आता उसे झटक कर धकेल देती बहुत दूर, बस यही बोले जा रही थी।
” मैं किन्नर हूं, एक किन्नर, लेकिन तुम मर्दों और औरतों से अच्छी हूं, तुम मर्दों और औरतों से कई गुना शराफत है मुझमें, तुम जैसों की तरह दोहरे रूप वाली नहीं मैं, मेरा जैसा भी रूप है सबके सामने है, दोहरे मुखौटे वाली नहीं हूं, मैं सबको दिल से अपनाती हूं, तुम लोगों की तरह कभी तुम्हारा या किसी का अपमान नहीं करती। अच्छा हुआ मुझे इश्वर ने किन्नर बनाया, तुम जैसा बनाया होता तो शायद मैं भी तुम सब की वहशी और बेरहम, बेदर्द, बद्-दिमाग बन गई होती”
विलाप करते-करते बेहोश हो गई शीला, आस-पड़ोस वालों ने उठाकर उसे कमरे में लिटाया, डाक्टर को बुलाया और डाक्टर ने इंजेक्शन देकर कहा,” गहरा आघात पहुंचा है इनके दिल को, इसलिए इनका ध्यान रखना होगा, हम अपनी कोशिश करते हैं, आगे जैसे इश्वर की मर्ज़ी”
पड़ोस के सुधीर भाई, ” डाक्टर साहब अच्छा ही है अगर ये मर जाए तो, मैं नहीं चाहता कि ये ज़िन्दा रहे”
दूसरा पड़ोसी अजय,” भाई साहब ये कैसी बातें कर रहे हैं, आप को तो वो भाई मानती है, और आप उसके लिए ऐसे शब्द”?
“हां तभी तो कह रहा हूं, ज़िन्दा रही तो पागल हो जाएगी मुनिया के ग़म में, इससे अच्छा है मर जाए” सुधीर भाई आंखों में आंसू हैं, भरे गले से बोले।
डाक्टर साहब जो अब तक उन दोनों की बातें सुन रहे थे बोले, ” ऐसा क्या हुआ इनके साथ और ये मुनिया कौन है”?
“साहब मुनिया शीला की बेटी थी, अभी थोड़ी देर पहले ही उसकी खून से लथपथ लाश मिली है, जिसे देखकर शीला अपने होशोहवास खो बैठी है, पागल हो गई है बेटी की लाश देखकर, अन्दर पड़ी है दूसरे कमरे अभी लाश उसकी, दाह संस्कार भी नहीं करने देती, कहती है जब तक बदला नहीं लूंगी, तब तक बेटी को चिता पर नहीं लिटाऊंगी”
डाक्टर,” शीला की बेटी, ये कैसे हो सकता है, एक किन्नर की बेटी?”
” हां डाक्टर साहब, शीला की बेटी!
सुधीर भाई डाक्टर साहब को शुरु से अब तक का किस्सा बताते हैं।
” साहब शीला को यहां इस मोहल्ले में रहते हुए बीस साल हो गए, शीला और इसके तीन साथी और यहां रहते थे, सभी स्वभाव से बहुत ही अच्छे थे, उनके अच्छे स्वभाव को देखकर मकान मालिक भी कभी-कभी किराया नहीं लेता था इन लोगों से, और अब तो ये मकान उसने शीला की बेटी मुनिया के नाम कर दिया था”
हुआ यूं कि एक दिन शीला और उसके साथी पास के गांव में कहीं शादी की बधाई गाने गए तो रास्ते में आते हुए एक जगह लघुशंका के लिए रूके।
वहां किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनी थी, इधर-उधर देखने पर पता चला कि आवाज़ कूड़ेदान में से आ रही है, शीला ने देखा तो कूड़ेदान में एक बड़े से तौलिए में लिपटी एक सुन्दर सी परियों जैसी बच्ची थी।
शीला की ममता हिलौरें लेने लगी, और उसने बच्ची को उठाकर सीने से लगा लिया, साथियों ने बहुत कहा कि बच्ची को पुलिस स्टेशन ले आते हैं, लेकिन शीला नहीं मानी।
इसी कारण उन सबका आपस में झगड़ा हो गया और बाकी सब शीला को छोड़कर चले गए, लेकिन शीला ने बच्ची को नहीं छोड़ा, शनै: शनै: बच्ची बढ़ने लगी, शीला एक मां की तरह उसका पल-पल ध्यान रखती।
एक दिन शीला कह रही थी कि उसे मकान मालिक पर शक है कि वो मुनिया को ग़लत नज़र से देखता है। अब उसे मकान मालिक का घर आना अच्छा नहीं लगता था, जब मकान मुनिया के नाम किया तो शीला ने बहुत कहा कि सेठ,”मुनिया मेरी बेटी है, मैं ही इसके बारे में सोचूंगी”
तो मकान मालिक कहने लगा,” तुम्हारी बेटी है तो क्या हमारी कुछ नहीं क्या?”
आज जब मुनिया स्कूल से वापस नहीं आई तो शीला को चिंता होने लगी और वो स्कूल में पता करने गई, वहां जब मुनिया नहीं मिली तो शीला पुलिस स्टेशन जा ही रही थी कि इतने में एक गली के बच्चे ने आकर बताया कि मुनिया लड़खड़ाती हुई, खून से लथपथ आ रही है।
हमने शीला को तुरंत फोन करके बुलाया और मुनिया को लेने गली के मोड़ तक पहुंचे ही थे कि सामने मुनिया बहुत बुरी हालत में कपड़े फटे हुए, खून से लथपथ आ रही थी, इतने में शीला आ गई, मां को देख मुनिया उससे लिपट गई और “सेठ” बस इतना कह पाई मुनिया उसके बाद शीला की गोद में सर रखते ही एक तरफ को गर्दन लुड़क गई साहब उसकी।
वो ठंडी हो गई, सो गई मां की गोद में हमेशा के लिए। कहते-कहते फफक कर रो पड़े सुधीर भाई, बोले सच कहती हैं शीला हमसे तो किन्नर अच्छे जिसने उस बच्ची को मां ना होते हुए मां -बाप दोनों का प्यार दिया, और वो सेठ नकली मान देकर, आज उस मान को अपमानित कर दिया, इन्सानियत का अपमान किया, बेटी की उम्र की बच्ची की इज्ज़त को तार-तार कर दिया, ले ली जान उस मासूम की।
इतने में शीला को होशआया और वो ज़ोर से चिल्लाई,” सेठ तुने मेरी बच्ची मुझसे छीनी है, तुने एक किन्नर का अपमान किया है, किन्नर किसी का अपमान नहीं करते, लेकिन अपना अपमान कभी नहीं सह सकते।
मैं इसका बदला लूंगी, मैं तेरा पूरा खानदान तुझसे छीन लूंगी, नेस्तनाबूत कर दूंगी तुझे, हर जन्म में ऐसे तड़पाऊंगी तुझे, जैसे मेरी बच्ची तड़पी थी , तुझे किसी भी जन्म में चैन से नहीं जीने दूंगी”
चिल्लाते-चिल्लाते एक दम से शीला शांत हो गई, डाक्टर ने देखा तो बोले, ” शी इज़ नो मोर, आई एम साॅरी”
चली गई वो अपनी बेटी के पास,एक ही अर्थी पर मां – बेटी को एक साथ ले जाया गया, क्योंकि किसी में हिम्मत नहीं हुई कि मां -बेटी को मरने के बाद भी जुदा करें।
सुना है ऐसा काल का चक्र चला सेठ को लकवा मार गया, सेठानी दिल के दौरे से मर गई, एक बेटे के गुर्दे खराब हो गए वो मर गया, दूसरे को कैंसर हो गया उसके इलाज पर सारा पैसा खत्म हो गया मगर फिर भी ना बच सका, अकेला सेठ वृद्धाश्रम में एक कोने में खाना-पानी को तरसता अपने दिन गिन रहा है।
“कहते हैं कभी किसी मां का अपमान नहीं करना चाहिए, मां की बद्दुआ कभी खाली नहीं जाती
प्रेम बजाज©®
जगाधरी (यमुनानगर)