कीमती धन – दर्शना जैन

धनतेरस पर निशा ने कॉलोनी के दोस्तों को खाने पर बुलाया था, वे आधे घंटे में आने वाले थे। डाइनिंग टेबल साउथ इंडियन, पंजाबी और इटालियन पकवानों से सज चुका था, पति राजेश की आँखें खुली की खुली रह गयी। निशा ने कहा – चौकिये मत, ये सब हॉटल से नहीं बुलवाया है, अपने हाथों से बहुत तैयारी के बाद बनाया है।

    राजेश तो दोस्तों को बुलाने का मना कर रहा था, उसे निशा के हाथ का खाना कभी पसंद जो नहीं आता था। वह कितने भी जतन से खाना क्यों न बनाये, मजाल है कि कभी राजेश के मुँह से तारीफ निकल जाये। उल्टा पत्नी के खाने में कमियाँ निकालना, खाते वक्त मुँह बनाना, दूसरे के बने खाने की तारीफ करना राजेश की आदत थी। दिल टूट जाता था निशा का और तब उसका एकमात्र सहारा होती थी उसकी बेटी खनक।


     दोस्त आये, खाने बैठे और तारीफों की बौछार शुरू हो गयी। कोई कह रहा था वाह, क्या स्वाद है, कोई बढ़िया खुशबू पर फिदा था, एक ने कहा कि कहीं खाने के साथ अंगुली न खा बैठूँ।

       सबके जाने के बाद खनक का फोन आया, उसने मम्मी को बधाइयाँ दी और पापा से पूछा – आपने मम्मी की तारीफ में क्या कहा? राजेश जवाब सोचे कि तभी बेटी ने कहा – पापा, आज धनतेरस पर मेरे कहने से मम्मी को कुछ दे दीजिये। पापा ने पूछा – क्या? खनक बोली – उन्हें कोई बहुत बड़ा धन नहीं चाहिये पापा, सिर्फ चाहिये आपके मुख से तारीफ के दो बोल। यही उनके लिये सबसे कीमती धन होगा।

दर्शना जैन

खंडवा मप्र

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