रीना ने जब से विनोद के दिल का दौरा पड़ने की बात सुनी है,तबसे अजीब कश्मकश में है।दिल कहता है -“रीना! कभी तो उस व्यक्ति के साथ तुम्हारा प्यार का रिश्ता था,तलाक हो जाने से क्या इंसानियत मर जाती है!”
परन्तु पल भर में ही दिमाग उसपर हावी होकर जाने से मना करता है।
उसके दिमाग में पुरानी यादें गहराने लगीं।पुरानी बातें बाढ़ की पानी की तरह हर हद को तोड़कर उसके दिलो-दिमाग को भिंगोने लगीं।उसकी आवाज भींग गई और वह विनोद के साथ बिताए पल को महसूस करने लगी।
दोनों के माता-पिता की सहमति से उनकी शादी हुई थी।रीना स्कूल में शिक्षिका थी और विनोद मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत। शादी के सुखद पल तो कुछ ही दिनों में छू -मंतर हो गए। छोटी-छोटी बातों पर लड़ाइयाँ होने लगीं।सास और ननद आग में घी का काम करतीं।विनोद भी हर मामले में माँ-बहन का पक्ष लेता,जिसके कारण रीना का गुस्सा भी काबू में नहीं रहता और वह भी जब -तब विनोद से झगड़ बैठती।धीरे-धीरे परिस्थितियाँ बेकाबू होती गईं।अंततः दोनों ने तलाक ले लिया।तलाक मिलने में दोनों का छः साल का समय बर्बाद हो गया।
तलाक के बाद दोनों को एक-दूसरे की कीमत समझ में आने लगी।परिवार के दबाव के बावजूद दोनों ने दूसरी शादी नहीं की।दोनों ने खुद को काम में झोंक दिया।दिन तो काम में बीत जाता था,परन्तु रात के सन्नाटे में रीना को एहसास होता कि अगर उसने थोड़ी समझदारी दिखाई होती,तो तलाक की नौबत ही नहीं आती।विनोद तो उसे दिलो-जान से चाहता थी।माँ – बहन की बात सुनना भी तो उसका कर्त्तव्य था।चक्की के दो पाटों के बीच पिसकर रह गई थी
उसकी जिन्दगी। परन्तु अब पछताए होत,क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।उसके सतरंगी सपने शादी के कुछ दिनों बाद ही बिखरकर टूट चुके थे।रात भर रह-रहकर उसे कुछ कचोटता रहता।ग्लानि,पछतावा,अपराधबोध या कुदरत का खेल?उसे कुछ समझ नहीं आता।वह समझ नहीं पा रही थी कि थोड़ी-सी नादानी के कारण अचानक उसकी हँसती-खेलती जिन्दगी में कैसा जलजला आ गया था।वह आज इस दोराहे पर खुद को खड़ी पा रही थी,जहाँ एक ओर विनोद की जिन्दगी का सवाल था,वहीं दूसरी ओर उसका अहं उसे जाने से रोक रहा था,परन्तु अब उसे विनोद की जिन्दगी की कीमत नजर आ रही थी।
काफी कश्मकश के बाद उसने अपने अहं को दरकिनार कर विनोद को देखने जाने का फैसला किया।अगले दिन उसने स्कूल में छुट्टी का आवेदन भिजवा दिया और अपनी माँ से कहा -” माँ!विनोद को दिल का दौरा पड़ा है,इस कारण उसे देखने पटना जा रही हूँ।”
बेटी की बात सुनते ही माँ की बुझी आँखों में चमक आ गई। माँ तो कब से दुबारा बेटी का घर बसते हुए देखना चाहती थी।माँ ने उत्साहित होते हुए कहा -” हाँ बेटी!जाकर देख आओ।वैसे विनोद बुरा आदमी नहीं है।”
रीना -” माँ!ज्यादा ख्वाब मत देखो।बस इंसानियत के नाते उसे देखने जा रही हूँ।”
माँ ने कहा -” ठीक है बेटी।जाओ,तुम मेरी चिन्ता मत करना।”
रीना -“हाँ !माँ बस दो तीन दिनों में लौट आऊँगी।”
अगले दिन छः घंटे का सफर पूरा कर रीमा अस्पताल पहुँची।विनोद की बाय-पास सर्जरी हो चुकी थी।उसके कलीग मिलकर जा चुके थे।अस्पताल के बिस्तर पर अकेले लेटे-लेटे उसे भी रीना की कीमत समझ में आ रही थी। एक बार बीमार होने पर कैसे वह रातभर सिरहाने में बैठी रही!वही बेवकूफ था जो पत्नी और माँ के बीच सामंजस्य नहीं बिठा पाया।आज वही माँ उसका घर दुबारा बसाने को व्याकुल है,परन्तु उस समय छोटी-छोटी बातों पर समझौता करने को तैयार नहीं थी।
अचानक से कमरे में रीना को देखकर विनोद की आँखें खुशी से नम हो गईं।उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतना लम्बा सफर कर रीना उसे देखने आ सकती है!
रीना ने कुर्सी नजदीक खींचते हुए पूछा -” विनोद !कैसे हो?”
विनोद -“रीमा!तुम खुद ही देख रही हो कि कैसा हूँ!अभी डाॅक्टर ने बोलने से मना किया है।”
रीना ने भी उसे चुप रहने का संकेत किया।
कुछ देर में दवाई के असर से विनोद सो गया और रीना कुर्सी पर बैठे अपलक उसे निहारती रही।एक सप्ताह तक रीना लगातार आकर विनोद की देखभाल करती रही।अब रीना को एहसास हो रहा था कि एक औरत का अकेले रहना बहुत मुश्किल है।इतने ही दिनों में जिन्दगी की कितनी ही सच्चाईयों उसकी जिन्दगी में जैसे आईना बनकर आ गईं।
विनोद भी जिन्दगी के सफर में खुद को अकेला महसूस करने लगा था।अस्पताल में एक दिन उसने कहा -” रीना!मैं सोच नहीं सकता था कि माँ के अलावे कोई इंसान मुझे इतना प्यार कर सकता है,जो सब कुछ छोड़कर दिन-रात मेरी सेवा में लगा हुआ है!”
रीना -” विनोद!लाख कोशिशों के बावजूद मैं तुम्हारे प्यार और तुम्हारे साथ बिताए अंतरंग पलों को न भूल पाई।”
विनोद -” रीना!मैं भी आजतक अपनी जिन्दगी में तुम्हारी जगह किसी को नहीं दे पाया ।क्या हम फिर से एक नहीं हो सकते हैं?”
इतना सुनते ही रीना के मन में अचानक अनेक प्रकार के फूल खिल उठे।सावन के बिना ही जीवन में बहार आ गई। चारों ओर सतरंगी रंग छितरकर उसके तन-मन को रंगीन बनाने लगें।रीना ने विनोद को मूक सहमति दे दी।अब दोनों को एक दूसरे की कीमत समझ आ रही थी।
दोनों के परिवार भी उनका घर फिर से बसते देखना चाहते थे।दो महीने के बाद तलाक के ग्यारह साल बीतने पर दोनों ने फिर से वैदिक मंत्रों के मध्य अग्नि को साक्षी मानकर शादी कर ली।जीवन भर सुख-दुःख साथ निभाने के कसमों- वादे के साथ एक बार फिर से खुशियों के पथ पर चल पड़े।
एक -दूसरे को फिर से पाकर दोनों की आँखें खुशी से रो रहीं थीं,किन्तु मन एक बार फिर से नवीन आकांक्षाओं के साथ दुबारा फिर से घर बसाने को आतुर था।
सभी परिजन सोच रहें थे कि कैसा पवित्र था यह पति-पत्नी का रिश्ता कि तलाक के बाद भी एक-दूसरे को नहीं भूल पाएँ!
उन्हें दुबारा इकट्ठे देखकर दिल से सभी दुआएँ दे रहें थे।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)