खुशियों वाली दिवाली – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

चिपकी रहना बस दोनों बहनें इस फोन पर.. शर्म तो बिल्कुल बची नहीं दोनों में ऐसा लगता है दिवाली या सारे त्यौहार बस मेरे लिए ही आते हैं त्योहार क्या आते हैं मेरा तो काम भी दुगना कर देते हैं, इतनी बड़ी हो गई है जरा भी दया धर्म नहीं है की मां के काम में हाथ बटवा दें, पता नहीं ऐसा क्या रखा है

इस मोबाइल में, हे भगवान यह फोन तूने क्यों बनाया,  कल को ससुराल जाएगी और जब सास के सामने ऐसी लगी रहोगी तो मेरी तो नाक कटवा  दोगी, अब मैं घर का काम करूं बाहर का करूं दिवाली की मिठाइयां बनाऊं या और सारे काम देखूं, किसी को कोई मतलब  नहीं है! शारदा देवी

जी के बड़बडाने को सुनकर उनके पति रंजीत जी बोले… श्रीमती जी.. क्यों सारे दिन चिल्लाती रहती हो बच्चियों पर, तुमसे उनकी खुशी नहीं देखी जा रही क्या..? कल को ससुराल चली जाएगी तो अपने आप काम करेंगी ही ना… इनको इतना पढ़ा लिखा रहे हैं किस लिए ? घर का झाड़ू पहुंचा

साफ-सफाई करने के लिए, नहीं.. देखना मेरी एक बेटी डॉक्टर बनेगी और एक बेटी इंजीनियर बनेगी फिर  नौकरों की लाइन लगा देगी! हां.. बस बाप बेटी बैठे बैठे सपने बुनते रहना, चाहे बेटियां कितनी भी पढ़ लिख जाए पर घर के काम तो  आना ही चाहिए अभी देखा नहीं था

कोरोना जैसी महामारी में अच्छे-अच्छे की अकल ठिकाने आ गई थी,! हां मम्मी बताओ क्यों चिल्ला रही हो इतनी देर से? क्या काम करवाने हैं हम दोनों करवाते हैं आपके साथ! देखो बेटा.. अब तुम कोई छोटी बच्ची तो रही नहीं, एक 18 साल की हो गई है एक  20 साल की हो गई है

तुम्हें कम से कम इतना तो सोचना चाहिए कि तुम्हारी मां दिन भर घर के कामों में खट्ती रहती है ऊपर से तुम्हारी फरमाइश भी पूरी करती है, तो बेटा क्या तुमको नहीं लगता कि तुम्हें भी अपनी मां की मदद करवानी चाहिए और हां सिद्धि बेटा तुम्हारे जो नए वाले कपड़े थे

इस कहानी को भी पढ़ें: 

*संकल्प* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

जो 2 साल से तुम पहन नहीं रही हो उनको भी निकाल कर रख दो, अपनी काम वाली  कांताबाई है उनकी स्थिति तो तुम जानती ही हो तो मैं सोच रही थी इस बार तुम्हारे जो सारे कपड़े छोटे हो गए हैं वह कांताबाई की बेटी कविता को दे दूं, वह कई बार मुझसे कह चुकी है आंटी जी… जब दीदी के कपड़े छोटे हो जाए तब और किसी को मत देना

मुझे ही देना तो बेटा उनके घर में भी खुशियों का दीप जलाना चाहिए ना …हम तो सारी चीज खरीद सकते हैं पर वह तो नहीं खरीद सकते! कई बार जो चीज हमारे लिए जरूर कि नहीं होती किंतु दूसरों के लिए वही चीज बहुत काम की होती हैं! शारदा जी की बात सुनकर बड़ी बेटी रिद्धिमा भी बोली.. हां मम्मी मैं भी अपने कपड़े बैग शूज सैंडल भी निकाल देती हूं

क्योंकि वह अब सिद्धि के भी काम नहीं आने वाले और मम्मी बिल्कुल नए जैसे रखे हैं आप कविता को वह भी दे देना और मम्मी आप इतना चिल्लाया मत करा करो आपकी तबीयत खराब हो जाएगी, आप बस चिल  करो आजकल तो मम्मी सारा सामान ऑनलाइन आ जाता है आप क्यों इतनी बाजार की टेंशन लेती हो,

आप हमसे कहिए ना हम तुरंत सामान मंगवाते हैं आपका! हां तो रिद्धि सिद्धि बेटा मैं सोच रही थी की ऑनलाइन क्या हर सामान मिल जाता है? हां मम्मी सारा सामान मिल जाता है यहां तक की  एक्सचेंज ऑफर में भी  मिल जाता है, रिद्धि और सिद्धि मिस्टर रंजीत और शारदा देवी की दो प्यारी प्यारी बेटियां थी

जो की एक डॉक्टर की पढ़ाई कर रही थी और दूसरी अभी बीटेक कर रही थी, वैसे तो वह हर तरह से लायक थी किंतु बस घर के काम करने में उन्हें थोड़ा आलस आता था और दिवाली के कामकाज की वजह से उनकी मम्मी शारदा देवी थक जाती थी और थकान के बाद बस उनका चिल्लाना शुरू हो जाता,

अच्छा तो मेरी प्यारी बेटियों ऑनलाइन में अच्छी-अच्छी बेटियां भी मिल जाती है क्या और अगर एक्सचेंज करना हो तो, दूसरी बेटियां भी मिल जाएगी क्या.? मम्मी की बात सुनकर रिद्धि सिद्धि और उनके पापा हंसते हुए बोले चलो आपके चेहरे पर ऑनलाइन की बात सुनकर मुस्कान तो आई! 

मम्मी क्या किसी दिन आप हमको सचमुच एक्सचेंज कर दोगी. ? नहीं मेरी लाडली बेटियों ऐसा कभी नहीं हो सकता, तुम दोनों मेरी आंखों की ज्योति हो तुम्हारे बिना तो मैं कुछ भी नहीं हूं, भला कोई मां अपने बच्चों के लिए बुरा सोच सकती है वह तो बेटा जब मैं काम करते-करते थक जाती हूं

तो मुझे गुस्सा आने लग जाता है मम्मी की बात सुनकर दोनों बोली… सॉरी मम्मी आज के बाद ऐसा बिल्कुल नहीं होगा इस दिवाली पर हम आपसे वादा करते हैं हम दोनों भी आपके साथ आपके कामों में बराबर से सहयोग देगी क्योंकि हम नहीं चाहते जब पूरी दुनिया में खुशियों वाली दिवाली हो किंतु मेरी मम्मी सिर्फ काम के बोझ के कारण अपने दिवाली भी ढंग से नहीं मना पाई तो क्या फायदा,अच्छा मम्मी.

आप आदेश कीजिए हमें बाजार से और क्या-क्या सामान लेकर आना है! बेटियों की बात सुनकर मम्मी बहुत खुश हुई फिर उन्होंने कहा… बेटा मैं चाहती हूं तुम्हारे सारे पुराने सामान तो हम दे ही देंगे किंतु अपने पास वाली कच्ची बस्ती के बच्चों को भी मैं पटाखे और मिठाइयां देना चाहती हूं

ताकि उनके घरों में भी खुशियों का दीप जल सके, खुशियों की दिवाली मनाने का सबको अधिकार है, है ना बेटा..! जी मम्मी बिल्कुल ऐसा ही होगा, मेरी मम्मी का भी खुशियों का दीप अवश्य जलेगा और हमारे यहां भी खुशियों वाली दिवाली मनेगी, और फिर  चारों हंसने लगे!

    हेमलता गुप्ता स्वरचित 

   कहानी प्रतियोगिता  (खुशियों का दीप)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!