Moral Stories in Hindi : आज मीरा का मन बहुत अशांत था। बचपन और माँ बहुत याद आ रही थी । सुनने वाले बोलेंगे पचपन में बचपन क्यों याद आना..। पर शायद हर इंसान के दिल में एक बच्चा छुपा होता है,जब दिल पर चोट पड़ती तो, उसे अपना बचपन और माँ शिद्दत से याद आते ।
पत्नी के मन की उथल -पुथल से अनजान किशोर जी ऑफिस चले गये। अलमारी से मीरा ने पुराना अल्बम निकाला, जो उनके बचपन, उनकी मधुर स्मृतियों का पिटारा है। उस पर हाथ फेरते ही अपनेपन की सोंधी महक से उनका दिल पुलकित हो जाता, आज ऐसा नहीं हुआ।
अल्बम में माँ की तस्वीर लगी थी, मुस्कुराती हुई, कुछ जीवंत सी, लगा पूछ रही हो -“बिट्टो का हुआ “। अंतर्मन की आवाज सुनते ही, आज कई बरस बाद वह अपनी माँ के सामने बिलख पड़ी…”कहाँ हो माँ,आज क्यों नहीं तुम्हे बिट्टो के आँसू विचलित कर रहे। इतनी निष्ठुर तो ना थी कभी, अपनी बिट्टो के लिये.., बिट्टो आँसू बहाती रहे और तुम पूछो भी ना….”। माँ तब भी मुस्कुरा रही थी। जब भी वो गुस्सा होती, माँ से झगड़ा करती, माँ ऐसे ही मुस्कुराती रहती। जब उसका गुस्सा शांत होता तो समस्या का समाधान करती।
रोते -रोते मीरा की हिचकी बंध गई। क्या हुआ जो उम्र पचपन की है, क्या उम्र बढ़ने से जज्बात खत्म हो जाते। क्या उम्र बढ़ते ही इंसान को सब छोड़ कर भगवत -भजन में लीन हो जाना चाहिये। आज छोटी सी बात मीरा को आहत कर गई। क्यों वो सब की झिड़की सुन कर भी प्रतिवाद नहीं करती। पत्नी, माँ होने से क्या सारे दायित्व सिर्फ उसे ही निभानी है।
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बहू के सामने पति की झिड़की उसे शूल की तरह चुभ गई।”इतने बरस हो गये आज तक कोई काम सही नहीं कर पाई,”किशोर जी ने झिड़कते हुये कहा।पति के ताने से आज जाने क्यों ऑंखें भर आई।हड़बड़ी में लाते,चाय की ट्रे उनके हाथ से छूट गई थी , बस ऐसी गलतियां उसके किये धरे पर पानी फेर देता है। वैसे घर में कुछ भी गलत हो उसकी जिम्मेवार वो हमेशा मान ली जाती, वो भी कहाँ प्रतिवाद करती।
बहू की ओर देखा वो और बेटा सर झुका नाश्ते में व्यस्त थे। उनको भी ऑफिस जाना था।माँ को उदास देख बेटा बोला -माँ संभल कर काम किया करो, पापा का गुस्सा जायज था। हड़बड़ी में आप कुछ ना कुछ गिरा देती हो, रिलैक्स रहो, इतना क्यों हड़बड़ाना,”कह बेटा चला गया। पर एक प्रश्न मन में छोड़ गया। क्या सारी गलती उसी की होती। क्या सबकी चिन्ता करना, सबको समय पर खाना -नाश्ता देना सिर्फ उसी की जिम्मेदारी है, वो घर में रहती है तो क्या बाकी सदस्य की जिम्मेदारी उसके प्रति नहीं होती है।
सब चले जाते तब वो नाश्ता करती। ये आज से नहीं, तब से है, जब से वो शादी कर इस घर में आई। सास ने उसके आते ही रसोई की जिम्मेदारी उसे सौंप दी। सास -ससुर और एक ननद यही छोटा परिवार था। किशोर जी ने पहले दिन कह दिया था। मेरे माँ -बाप और बहन को कोई कष्ट नहीं होना चाहिये। मीरा जी ने पति की बात गांठ बांध ली और तन -मन से अपने इस छोटे से घर को संवारने में लग गई। कभी उन्होंने किसी चीज की शिकायत नहीं की, शायद यही बड़ी गलती वो कर बैठी। अपने वजूद को घर में खोते वो भूल गई, कि अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती, भले ही वो प्रेम की क्यों ना हो।
सब उनसे प्रेम और सेवा पाने के हक़दार बन गये, पर उनको भी प्रेम और सेवा चाहिये ये भूल गये। किशोर जी ने कभी मीरा के मन को जानना नहीं चाहा, जरूरत ही नहीं समझी, स्त्रियाँ तो घर -परिवार के लिये होती ही है, उनका सीधा सा तर्क था -सब कुछ तो मीरा को दे रखा धन -दौलत, बड़ा घर, गाड़ी, ऐशो- आराम की जिंदगी… अब सुखी रहने के लिये और क्या चाहिये।
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मीरा मुस्कुरा कर रह जाती, कह नहीं पाती बस एक अपनापन और थोड़ा सा साथ ही तो नहीं दे पाते आप। अक्सर छोड़े जाने वाले तानों के तीर चलाते हुये आप क्यों भूल जाते, सामने वाले के पास भी एक दिल है, जो इन तीरों से लहूलुहान हो चुका, क्या आपने कभी जानने की कोशिश की।कभी तारीफ के दो बोल भी निकले आपके मुँह से..।
तस्वीर से माँ का अक्स झाँक उठा,मानों कह रहा –बिट्टो अभी भी समय है, लोगों के पीछे भागना बंद कर दें। मीरा ने आँसू पोंछ लिया। माँ की तस्वीर पर हाथ फेर माँ को महसूस करने लगी। एक ताकत से भरने लगी।मन ही मन कुछ निर्णय ले चुकी..।
अगले दिन, सुबह -सुबह जब किशोर जी जॉगिंग करके आये तो हमेशा की तरह उनकी चेयर के पास चाय का कप नहीं था। ट्रैकिंग सूट में मीरा जी ने आते हुये बोला -आपकी चाय रसोई में रखी है, आप गर्म करके पी लेना, मै वॉकिंग पर जा रही हूँ।
“तुम्हे क्या हो गया जो वॉकिंग पर जा रही हो “किशोर जी ने समय पर चाय ना मिलने की खींझ उतारी।
“कुछ ना होने देने के लिये ही तो आज से मैंने अपनी केयर करनी शुरु कर दी, वैसे मै करती भी क्या हूँ, कोई काम तो सही कर नहीं पाती, तो मैंने सोचा क्यों ना अब काम करना बंद कर दूँ” कह बिना जवाब सुनें बाहर निकल गई।
नाश्ते की टेबल पर आज मीरा जी भी नहा -धो कर बैठी थी। कुक ने कच्चे -पक्के आलू के पराठे और दही टेबल पर रख दिया। हर रोज तो मीरा जी अच्छी तरह अपने सामने सिकवाती थी। आज उन्होंने छोड़ दिया। सब ने बेमन से नाश्ता किया, नाश्ता बेस्वाद था क्योंकि उसमें वो प्यार की मिठास नहीं थी जो अपनों की परवाह से होती है। हाँ मीरा जी खुश थी, अपनी मनपसंद किताबें पढ़ने के लिये किताब ले बालकनी में चली गई।
शाम को आते ही बेटे ने शिकायत की -माँ आपने देखा नहीं, मेरे शर्ट का बटन टूटा था। शांत स्वर में मीरा जी ने कहा -बेटे, अब तुम बड़े हो चुके हो, अब तुम्हारी शर्ट के बटन या तुम्हारे कपड़ों के प्रेस की जिम्मेदारी मेरी नहीं है।”
“माँ आज शाम पनीर की सब्जी बनवा लेना और हाँ साथ में मसाला भिंडी भी..”बहू ने ऑफिस से आते बोला।
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“बेटा ये तुम्हारा भी घर है, तुम भी कुक को बता सकती हो,…”कहती मीरा जी अपनी किताब में गुम हो गई, बहू चुपचाप कमरे में चली गई…।
किशोर जी, बेटा और बहू,..मीरा जी के बदले व्यवहार से परेशान थे पर मीरा जी खुश थी क्योंकि पति -बच्चों में अपनी खुशी देखने वाली मीरा जी को खुशियों की नई परिभाषा समझ में आ गई।
पुराने शौक में दुबारा रंग भरने शुरु कर दिये। हर समय सबका साथ चाहने वाली मीरा जी के पास अब समय ही नहीं, अब तो बेटा -बहू और किशोर जी मीरा का साथ पाने को बेचैन हो गये।
अब उनको मीरा जी के प्रति की गई अपनी उपेक्षा दिखाई देने लगी .., पश्चाताप से जहाँ किशोर जी बेचैन थे, वही बेटे -बहू को भी अपने व्यवहार पर ग्लानि होने लगी…।
पश्चाताप से बेचैन परिवार के लोगों ने मीरा जी से माफ़ी मांगी, पर मीरा जी अब अपनी खुशियों को जीना सीख गई, समझ गई अपनी खुशियों की चाभी दूसरों को नहीं देनी चाहिए, बल्कि खुद रखनी चाहिए,
दोस्तों, हम स्त्रियाँ अपने प्रेम और त्याग में खुद अपना वजूद भूल जाती, याद रखिये अति हमेशा बुरा होता है। अपना मूल्य खुद अपनी नजरों में नहीं बनाएंगी तो कोई नहीं समझेगा।
—संगीता त्रिपाठी
#पश्चाताप
Very nice. It is not a story for entertainment, this is feeling of ur life partner, family members. If u want happiness in life pls care of all of those members.