खुशियों के दीप – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

नीरजा का वर्षों पुराना सपना आज सच होने जा रहा है।हर्षातिरेक से नीरजा के पाँव जमीं पर नहीं पड़ रहे हैं।उसके जीवन  में खुशियों के दीप जगमगा उठे हैं।उसके बेटा-बहू गृहप्रवेश की पूजा पर बैठे हैं।पंडितजी की मंत्रोच्चार की ध्वनि वातावरण में पवित्रता का एहसास करा रही है।एक आम आदमी के लिए अपने घर का सपना पूरा होना आसान नहीं है।इस सपना को पूरा होने में वर्षों लग गए।

इस बीच नीरजा ने किन-किन मुसीबतों को झेला है,यह उसकी आत्मा ही जानती है!नीरजा बड़े उत्साह से गृहप्रवेश में आएँ अतिथियों का सत्कार कर रही है।बीच-बीच में आकर पूजन के समक्ष बैठ जाती है।पूजा में बैठे बेटा-बहू को देखकर नीरजा के नेत्र भावविह्वल होकर उठते हैं।रह-रहकर दिवंगत पति की  यादों से उसकी आँखों के कोर बरबस गीले हो उठते हैं।

नीरजा अपने घर से जुड़ी अतीत की कड़वी यादों को नहीं भुला पा रही है।पूजा में ध्यानमग्न होते ही उसका मन अतीत में विचरण करने लगता है।शादी के बाद नीरजा ने भी अपने घर का सपना देखा था।स्त्री हो या पुरुष हरेक की ख्वाहिश एक आशियाने की होती है।नीरजा दम्पत्ति ने भी एक छोटे से आशियाने का ख्वाब  देखा था,जिसमें सुबह-सुबह सूर्य की किरणें की अठखेलियाँ हों और रात में खिड़कियों से चाँदनी लुटाता हुआ

चाँद का दीदार हों।एक छोटा-सा बगीचा हो,जिसमें रंग-बिरंगे गुलाब, वोगनबेलिया,बेलपत्र सुगंधित हरसिंगार के पेड़ हों,जिसकी खुशबू से उसका आशियाना महकता रहे।फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियों का नर्तन हों।सुबह-सुबह नीरजा दम्पत्ति उनके बीच बैठकर चाय का आनंद लें।यही ख्वाहिश नीरजा दम्पत्ति  को थी।

अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए नीरजा के पति नवीन ने जमीन का एक छोटा-सा प्लाॅट खरीदा ।नीरजा दम्पत्ति का मानना था कि फ्लैटों में अपने घर का एहसास नहीं होता है।नवीन पेशे से वकील थे,बहुत अच्छी कमाई नहीं थी,परन्तु अपना आशियाना बनाने के लिए किसी प्रकार जमीन खरीदी और बैंक से घर बनवाने के लिए ॠण लिया।

नीरजा के घर बनवाने का काम शुरु हो चुका था।इस कार्य में उसके पति नवीन का उत्साह देखते ही बनता था।उसने ईंटें,सीमेंट, छड़,बालू तथा बहुत सारा सामान प्लाॅट पर एक साथ ही गिरवी लिया।नीरजा ने अपने पति को मना करते हुए कहा भी था -“एक ही बार  में इतना सामान क्यों गिरवा रहे हो? धीरे-धीरे बाजार से सामान आ जाएगा।”

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नवीन ने नीरजा को समझाते हुए कहा -” अरे!तुम समझती नहीं हो,एक साथ सामान लेने से कुछ सस्ता पड़ता है,फिर इन्हें खत्म होते  भला कितनी देर लगेगी!”

नीरजा को आज भी याद है कि जिस दिन उसके घर का भूमि -पूजन था,उस दिन नवीन कितने उत्साहित थे! पूजा के लिए  पहनी हुई पीली धोती में नवीन की आभा चारों ओर छिटक रही थी।नीरजा भी लाल चुनरी  में बिल्कुल दुल्हन की तरह लग रही थी।तीन साल  का उसका बेटा रवि उसकी बाहें पकड़े हुए सबकुछ कौतूहल से देख रहा था।पंडितजी ने विधिवत ढ़ंग से मकान की नींव की पूजा करवाई। नींव में सोने का नाग,चाँदी का कछुआ, आदिपुरुष की मूर्ति सभी कुछ पवित्र मंत्रोच्चार के साथ डाला गया था,पता नहीं फिर भी कहाँ चूक हो गई थी?

अगले दिन से नीरजा का मकान बनना प्रारंभ हो चुका था।सबकुछ अच्छा चल रहा था।अचानक से आई एक काली आँधी  नीरजा की खुशियों के दीप बुझाकर चली गई ।मकान शुरु होने के एक सप्ताह के अंदर ही काम पर से लौटते हुए सड़क हादसे में नवीन की जान चली गई। नीरजा की जिन्दगी में गमों का पहाड़ टूट पड़ा।अकल्पनीय, भीषण हादसे से नीरजा पत्थर का बुत बनकर रह गई। उसके दिल में दर्दभरी सिसकियों ने जगह बना ली।

नीरजा अपना सुध-बुध खो बैठी।उसके पिता आकर उसे तथा उसके बच्चे को अपने पास  ले आएँ।सभी मायकेवाले नीरजा और उसके बेटे को सँभालने में लग गए। जबतक नीरजा दुखों से उभरती,तबतक लोग उसके मकान के सारे सामान  लूटकर ले जा चुके थे।पति की मौत के साथ ही नीरजा की खुशियों के दीप बुझ चुके थे।अब मकान बनाने की उसकी इच्छा मर चुकी थी।उसके जीवन में आर्थिक संकट आ चुका था।

उसने जमीन बेचकर बैंक का लोन चुका दिया और बेटे के साथ मायके में रहने लगी।संयोगवश उसके सिर पर पिता की छत्रछाया थी।उसने भी एक प्राइवेट स्कूल में बेटे का दाखिला करवा दिया और खुद भी उसी स्कूल में नौकरी करने लगी।

धीरे-धीरे उसकी जिन्दगी पटरी पर लौटने लगी,परन्तु एक कटू सत्य यह भी है कि जो बेटियाँ अधिक दिनों तक मायके में रहतीं हैं,उन्हें भाई-भाभियों के साथ समाज के भी मान-अपमान के घूँट पीने पड़ते हैं।नीरजा  ने परिस्थितियों से समझौता कर मान-अपमान का घूँट पीना सीख लिया था,परन्तु जब उसके बेटा को उसके भाई के बच्चे ताने मारते हुए कहते -” रवि!यह तुम्हारा नहीं,हमारा घर है,तुम अपने घर क्यों नहीं जाते?”

ममेरे भाईयों की बातों से रवि का बालमन आहत हो उठता।फिर वह माँ से पूछ बैठता -” माँ!हमारा घर कहाँ है?अपने घर चलो।”

नीरजा बेटे को गोल-मोल जबाव देकर उसे सीने से चिपका लेती।उसका हृदय पति की याद में विदीर्ण हो उठता।नीरजा हमेशा सपना देखती कि उसका घर  बाँहें फैलाएँ उसकी प्रतीक्षा कर रहा है,परन्तु आँखें खुलने पर घर का सपना टूटने का एहसास उसके अंतर्मन को बेध जाता।

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अब नीरजा के जीवन का केवल एक ही सपना रह गया,बेटे रवि की अच्छी शिक्षा।उसी से उसके जीवन में खुशियों के दीप जल सकते थे।नीरजा के लिए  प्राइवेट  नौकरी में अलग घर लेकर रहना संभव नहीं था,इसी कारण  उसने भाभियों के ताने के साथ  जीना सीख लिया था।कभी-कभी भाभियों के ताने से उसके मन में दबा दुख और आँसुओं का आवेग आँखों के रास्ते बाहर आ ही जाता था।वह किसी तरह खुद को संयत रखने की कोशिश करती,परन्तु चुप-सी उदास दीवारें और पराए होते अपनों के बीच रहना नीरजा के लिए  आसान नहीं था।

रवि जैसे-जैसे बड़ा हो रहा था,वैसे-वैसे उसे परिस्थितियों का आभास होने लगा था।माँ के दुखों को महसूस कर वह जी-जान से पढ़ाई में जुट गया।रवि माँ के दुखी मर्मस्थलों को सहलाते हुए कहता -“माँ!देखना ,एक दिन  हमारा भी अपना घर होगा।हमारे जीवन में भी खुशियों के दीप जलेंगे।”

नीरजा बेटे की बातों से कुछ पल के लिए अपना सारा गम भूल जाती।इस बीच नीरजा के पिता का देहांत हो गया।अब पिता की ओर से आर्थिक मदद भी आनी बंद हो गई, फिर भी नीरजा ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी।

बहुत दिनों बाद नीरजा की जिन्दगी में खुशियों के दीप जल उठे।उसके बेटे रवि का चयन आई.आई.टी मुंबई में हो गया।उसने बैंक से लोन लेकर रवि को पढ़ाई के लिए मुंबई भेजा।बेटे को काबिल बनाने की खातिर नीरजा ने अपने सारे अरमानों को अवचेतन के गर्त में डाल दिया।आखिर उसकी तपस्या सफल हुई। पढ़ाई  खत्म होने के साथ ही रवि

की बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी लग गई। रवि ने अपनी पसंद की लड़की से शादी भी कर ली और उसे एक बेटा भी हो गया।वक्त पंख लगाकर उड़ता रहा।अब एक बार फिर से नीरजा के अवचेतन से अपना घर का सपना सर उठाने लगा।उसे अब मायके में रहना खलने लगा।उसका बेटा रवि अपनी दुनियाँ में मस्त हो गया।नीरजा भी बेटे से अपनी अधूरी इच्छा को व्यक्त नहीं कर पाती।उसे बस इंतजार  ही था अपने सपने पूरे होने का।

कुछ समय पश्चात् रवि परिवार समेत माँ के जन्मदिन पर मिलने आया और माँ को  सरप्राइज  गिफ्ट के रूप में अपना घर देकर चौंका दिया।

यादों की स्मृति से बाहर आकर नीरजा ने देखा कि पंडितजी सभी को आरती के लिए खड़े होने को कह रहे थे।झट से नीरजा आरती थाल हाथों में लेकर  तन्मयता

 से आरती गाने लगती है।उस पल उसे ऐसा एहसास हो रहा था,मानो उसकी जिन्दगी में एक साथ  हजारों खुशियों के दीप जल उठे हों।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

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