खुशियों के चांँद को ग्रहण – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज जब मैं सोहनलाल जी के घर में घुसी तो सारे घर में रोने की आवाजें गूंँज रहीं थी, लोग दुख प्रकट करने आ रहे थे और कई लोग जा रहे थे ।सोहनलाल जी और शोभा जी का एकलौता पुत्र शाश्वत असमय ही मृत्यु के मुंँह में समा चुका था।

उनकी पुत्रवधू सुरभि एक टक शून्य में जमीन में देख रही थी उसे तो जैसे अपनी सुध-बुध ही नहीं थी ,ना ही रो रही थी ,ना ही किसी से कुछ कह रही थी। शाश्वत के दोनों मासूम बच्चे कभी आंँगन में खेलने लगते,तो कभी दोनों मासूम माँ गोद में आकर बैठ जाते, और कभी किसी का तेज रुदन सुनकर डरने लगते और अपनी माँ से चिपक जाते।

 सुरभि और मासूम बच्चों की हालत देखकर वहां मौजूद हर एक की आंँखों में आंसू था और हर एक की ज़ुबान पर एक ही सवाल था कि ऐसा क्यों हुआ। क्या ईश्वर को इन मासूमों पर भी तरस नहीं आया।शाश्वत के विवाह को भी 9 वर्ष ही तो हुए थे।

बिल्कुल राजकुमार सा लगता था सोहनलाल जी का बेटा शाश्वत ।गौरवर्ण ,मुस्कान हमेशा चेहरे पर बनी रहती और ऐसी ही सुंदर उसकी पत्नी सुरभि , मानो ईश्वर ने उन दोनों की जोड़ी स्वयं बनाई हो।

शाश्वत का बेटा सात वर्ष का था, और बेटी महज दो साल की थी।

इस कहानी को भी पढ़ें:

कोई लाख करे चतुराई – पूर्णिमा सोनी   : Moral Stories in Hindi

शाश्वत का बेटा श्लोक अपनी उम्र से के हिसाब से बहुत ज्यादा समझदार था, अपने दादाजी के कहीं बाहर से आने पर तुरंत उन्हें पानी ला कर देता ,अपनी दादी के संग हरे पत्ते साग के साफ करने लगता।

अपनी मांँ के साथ धूप में कपड़े सुखाने लग जाता। नन्हा श्लोक पूरे घर का राज दुलारा था ।श्लोक अपनी छोटी बहन मणी को भी बहुत प्यार करता, जब तक मणी सो नहीं जाती , उसका पालन झूलाता रहता।उनके घर में जैसे खुशियों का चांंद पूरा हो चला था।

पर जैसे कभी-कभी चांँद को भी ग्रहण लग जाता है इस तरह सोहनलाल जी के घर की खुशियों को भी ग्रहण लग चुका था ।शाश्वत ने कुछ समय से अपने कुछ खराब मित्रों के साथ उठना बैठना शुरू कर दिया था। उसके वे मित्र शराब पीते, रात भर घर लौट कर नहीं आते।

शाश्वत का भी व्यवहार भी कुछ इसी तरह हो चला था, शाश्वत के लगातार शराब की लत से दोनों पति पत्नी में झगड़े होने लगे। सुरभि कई बार शाश्वत को समझाती कि अब आप दो बच्चों के पिता हैं, आपको अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए, इन बुरे मित्रों का साथ छोड़कर आपको अपने घर परिवार पर ध्यान देना चाहिए। शाश्वत की मांँ भी उसे बहुत समझाती पर शाश्वत पर कोई असर नहीं होता।

एक दिन इस सिलसिले में जब सुरभि ने अपने ससुर से इस बारे में बात करनी चाहिए अपने ससुर जी कहा कि वह शाश्वत को समझाएं अभी तो वह संभल जाएगा यदि ज्यादा देर हो गई तो वो कभी नहीं समझ पाएगा,और उनका घर बिखर जाएगा।

तो सोहनलाल जी ने इस बात को हल्के में लेते हुए अपनी पुत्रवधू सुरभि से कहा तू क्यों इतनी चिंता करती है इस उम्र में यह सब लगा रहता है थोड़े दिन में खुद ही संभल जाएगा। सोहनलाल जी अपने बेटे को समझते भी तो किस मुंँह से वह तो खुद अपने समय में अपने मित्रों के साथ जब शाश्वत छोटा था तो उसके सामने पिया करते थे।

और कभी-कभी तो अपने गिलास भी शाश्वत से बनवाया करते थे।

उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि छोटा बच्चा तो कच्ची मिट्टी जैसा होता है उसे हम जिस तरह ढालेंगे,वो तो उसी में ढल जाएगा।

इस कहानी को भी पढ़ें:

“रिश्तो के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है” – पूजा शर्मा   : Moral Stories in Hindi

यहांँ शाश्वत के केस में भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ शाश्वत ने जो बचपन से देखा और सीखा समय आने पर वह खुद भी ऐसा ही करने लगा। उसे लगता कि यह सब करना शानो शौकत है।

धीरे-धीरे शाश्वत का थोड़ा पीना उसकी आदत में शुमार हो गया उसे शराब की लत लग चुकी थी , उसने बहुत ज्यादा पीना शुरू कर दिया। एक बार रात के 2:30 बजे उसे बेहद उल्टियांँ लग गई, तुरंत डॉक्टर नहीं मिला होता तो शायद वही रात शाश्वत की आखिरी रात होती। डॉक्टर ने बताया कि शाश्वत का लीवर खराब होने लगा है यदि उसने पीना बंद नहीं किया तो ये उसके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होगा।

अस्पताल से आने के बाद कुछ समय सब कुछ ठीक रहा ,पर धीरे-धीरे शाश्वत फिर से पीने लगा, अब तो वह अपने पिता की बात भी नहीं सुनता था। सोहनलाल जी पश्चाताप करते कि मैंनें समय रहते शाश्वत को क्यों नहीं समझाया क्यों नहीं रोका।

एक दिन शाश्वत के ज्यादा पीने की वजह से सुरभि और शाश्वत में लड़ाई होने लगी, तब नन्हे श्लोक ने अपने पापा से कहा पापा आप कड़वी दवाई क्यों पीते हो ,आपकी तबीयत खराब हो जाती है ना।

 पर शाश्वत को अपने बेटे के मुंँह से भगवान के द्वारा बोले यह वचन भी समझ नहीं आए वो पीता शराब रहा, और शराब अन्दर ही अन्दर उसे पीती रहीं। और आज लीवर पूरी तरह खराब होने पर शाश्वत इस दुनिया को छोड़कर जा चुका था अपने अपने मासूम बच्चों को अनाथ करके, अपनी पत्नी की मांग का सिंदूर पौंछ कर, इस बुढ़ापे में अपने माता-पिता को अकेला छोड़कर।

सोहनलाल जी आज बैठे पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे कि काश उन्होंने समय रहते अपने बेटे को रोका होता ,उसके बचपन में खुद को एक आदर्श साबित किया होता तो आज उनके घर की खुशियों के चांँद को यूंँ ग्रहण न लगा होता ।

ये कहानी मैं यहां इस सम्मानित मंच पर आप सभी के समक्ष इस आशा के साथ रख रही हूं,कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बात की गंभीरता को समझ सकें।

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!