होली का त्यौहार आने वाला था । नीतू के पति रेलवे में बड़े अधिकारी थे, इसलिए उनके घर पर हर वर्ष होली पर लोगों की भीड़ इकठ्ठी हो जाती थी । नीतू एक हफ़्ते पहले से ही होली की तैयारी में जुट जाती थी । हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नीतू ने अपने सरकारी क्वाटर की साफ़ सफ़ाई करवा दी थी ।
होली पर खिलाए जाने वाले व्यंजन गुजिया, काँजी इत्यादि वो बड़े ही मनोयोग से तैयार कर रही थी । इस वर्ष होली के त्यौहार पर उसका उत्साह कुछ ज़्यादा ही था ,क्योंकि उसका बेटा मनन , बाहर से होली मनाने घर आ रहा था । उसका इंजीनियरिंग का प्रथम वर्ष ही था ,इसलिए वह भी घर आने के लिए बहुत उत्साहित था ।
नीतू ने मनन के पसंद के सभी व्यंजन तैयार किए थे । होली के एक दिन पहले ,मनन के आने से घर में रौनक हो गई थी । पीछे सर्वेंट क्वाटर में रह रही मुनियाँ भी मनन के आने से काफ़ी ख़ुश थी । मुनियाँ का पाँच वर्षीय बेटा अभि ,बार बार मनन के पास आ रहा था । मुनियाँ और उसका पाँच वर्षीय बेटा अभि,दोनों ही सर्वेंट क्वाटर में रहते थे ।
पिछले वर्ष मुनियाँ के पति की मृत्यु हो गई थी । मनन ने अपनी माँ से मुनियाँ के पति की मृत्यु का कारण पूछा तो पता चला कि अधिक शराब पीने से उसके फेफड़ें ख़राब हो गए थे । मनन का कोमल मन ,मुनियाँ की दुख भरी कहानी सुनकर मुनियाँ और उसके बेटे के लिए संवेदना से भर गया था । अगले दिन होली का त्यौहार था,
*बेनजीर – बूढ़ी माई – शैलेश सिंह “शैल,, : Moral Stories in Hindi
नीतू सुबह से ही लोगों के आने के इंतज़ाम में लगी थी । गुलाल, मिठाई सबकुछ बाहर लॉन में लगवा दिया था । एक टंकी में पानी भरवा दिया था । लोग आने लगे ,नीतू सबका स्वागत कर रही थी । मनन के दोस्त भी आते जा रहे थे ,सब मनन को रंग और गुलाल लगा रहे थे । मनन भी अपने हम उम्र लोगों के साथ त्यौहार का पूरा आनंद ले रहा था ।
मुनियाँ का पाँच वर्षीय बेटा अभि ,बार बार बाहर आकर सबको रंग लगाते हुए देख रहा था । मुनियाँ उसे रोकने का असफल प्रयास कर रही थी । मुनियाँ के पति के जाने के बाद पहली ही होली थी ,इसलिए मुनियाँ रंग नहीं खेलना चाहती थी ,लेकिन वो अपने बेटे को रोक नहीं पा रही थी । नीतू बार बार मुनियाँ के बेटे को देख रही थी,
उसके बाल मन पर आया रंगों का प्रलोभन नीतू से छुपा नहीं था । वो समझ गई थी कि मुनियाँ का बेटा बार बार इसलिए सबके बीच आ रहा है कि कोई उसे भी रंग लगा दे । नीतू ने आवाज लगा कर अभि को बुलाया और उसके मासूम चेहरे पर ढेर सारा गुलाल लगा कर कुछ रंग और पिचकारी दी ,साथ ही मनन को बुलाकर चुपचाप समझाया
कि कुछ रंग अभि के भी लगा दो । मनन और उसके दोस्तों ने जैसे ही अभि के चेहरे पर रंग लगाया ,अभि के चेहरे पर खुशियों का सतरंगी इंद्रधनुष खिल गया । उसके मायूस चेहरे पर रक्तिम आभा के साथ खुशियों के रंग बिखर गए । उसके मासूम हाथों में आए रंग ,मनन और उसके साथियों को रंग लगाने के लिए बढ़ने लगे ।
मनन ने अपनी माँ की समझदारी को सलाम करते हुए दूर से ही मुस्कान बिखेर दी । मनन और नीतू , अभि के चेहरे की रंगत से होली के असल मायने समझ पा रहे थे । नीतू के पति ,अपनी पत्नी और बेटे की उदारता से फूले नहीं समा रहे थे । दूर खड़ी मुनियाँ ,सारा नज़ारा देखते हुए ख़ुशी के आँसू नहीं रोक पा रही थी ।
स्वरचित, मौलिक
रश्मि वैभव गर्ग