खुशियों की तलाश! – पूर्णिमा सोनी : Moral stories in hindi

विन्नी  सीढियां चढ़ते हुए ऊपर पहुंची और धीरे से दरवाजे को धक्का दिया, दरवाजा खुला हुआ था
अरे आओ.. कब आई पता ही नहीं चला, सरिता जी ने कहा
हां, नीचे वाला दरवाजा खुला देखकर मैं समझ गई थी कि आप घर पर ही हैं… विन्नी ने सोफे पर बैठते हुए कहा
आज मोलू और सान्या.. दोनों बाजार से अपने नए क्लास की किताब कापियां लेकर लौटी थीं,तो उन्होंने उत्सुकता वश वहीं फैलाना शुरू कर दिया
मैं इनके स्कूल से लौट रही थी, इसलिए सोचा आपसे मिलते चलूं।
बहुत अच्छा किया, तुम्हारे आने से कितना अच्छा लगता है… लगता है इस शहर में कोई अपना है.. वरना घर से इतनी दूर सर्विस पर रहने के कारण, कौन अपना होता है?
विन्नी और सरिता जी की परस्पर बढ़िया बनती थी। सरिता जी के बच्चे कालेज में पढ़ने वाले और विन्नी के अभी प्राइमरी सेक्शन में। उम्र का भी अच्छा खासा अंतर था, विन्नी पढ़ी लिखी स्त्री और सरिता जी गांव की अल्प शिक्षित मगर मिलनसार स्वभाव की महिला! दोनों में प्रेम – व्यवहार ने ही रिश्ते को जोड़ा हुआ था।

मगर एक बात सरिता जी विन्नी से अक्सर हंसते हुए कहती

तुम्हारी तो सिर्फ बेटियां हैं, जिंदगी भर खटना,खुद के लिए खाना बनाना…

मेरे तो दो दो बेटे हैं,दो बहुओं की सास बनकर रहना है… आने दो घर में बहुओं को फिर कौन सी जिम्मेदारी बचेगी

सरिता जी के पति अच्छे पद पर थे परंतु शेष परिवार गांव में बहुत अच्छी स्थिति में नहीं थे।

सरिता जी के तीन बच्चे थे सबसे बड़ा बेटा,एक बेटी फिर एक और बेटा।

सभी बच्चे पढ़ रहे थे,जीवन अपनी गति से चल रहा था, परंतु जीवन का एकसार चलना कभी कभी नीरसता ले आता है।

वो अक्सर कहती

देखना जब मैं बहू दामाद सब ले आऊंगी तो कैसा खुशियों से मेरा घर भर जाएगा!

सरिता जी गांव से अपनी छोटी बहन के बेटे के विवाह से लौटी तो बताने लगी

अब इनका भी मन होता है बड़े बेटे मोहन का विवाह कर दें.. घर में बहू आ जाए,सूने पड़े घर में रौनक आ जाएगी… सच कितना अच्छा लगेगा

बहू के आने से घर खुशियों से भर जाएगा..

विन्नी को समझ में नहीं आया कि जो समय बेटे के पढ़ लिख कर कैरियर बनाने का है उसमें विवाह जैसी बात कोई क्यों और कैसे सोच सकता है, सबसे पहली प्राथमिकता तो बेटे को अपने पैरों पर खड़ा करने की होती है

परंतु दूसरे के परिवार की व्यक्तिगत बात समझ कर विन्नी कुछ कह ना सकी।

बेटे ने भी विवाह कुछ समय बाद करने की इच्छा जताई मगर उनके पति के घर में बहू लाने के उत्साह के आगे सब धरा रह गया।

उन्होंने अपने मित्र की बिटिया( ऋचा) को अपने घर की बहू बनाने का तय कर लिया।

ढेर सारे सोने के गहने,हीरे का भी छोटा सेट, हैदराबादी मोतियों से बना सेट, मंहगी,सुंदर साड़ियां,सब खरीदारी चल रही थी

सरिता जी के लिए भी उनके पति ने जैसे और जितने गहने कभी ना बनवाए होंगे उससे ज्यादा अरमान से घर की पहली बहू के लिए बनवाए।

विवाह हुआ और हर्षोल्लास के वातावरण में नई बहू घर आ गई।

रिश्तेदारों से भी अनेक गहने उपहार में मिले।

विन्नी एक दिन बाजार को निकली तो सरिता जी के घर की ओर मुड़ ली…. विवाह के पश्चात से मिली नहीं थी।

इस बीच बहू भी मायके पग फेरे की रस्म के लिए चली गई

थी ।

शौक के साथ वो अपने सारे, गहने उपहार लेकर गई… मायके में नए विवाह के पश्चात पहनने ओढ़ने का शौक ही अलग होता है।

विन्नी के पहुंचते ही सरिता जी उसे खींच के बाहर बालकनी में ले गईं… पता है बहुत बड़ा,अलम ( संकट) आ गया है घर में

क्यों क्या हुआ? विन्नी ने आश्चर्य से पूछा

बहू कहती है कि उसकी पूरी अटैची मायके में खो गई..

मतलब?

मतलब सारे, गहने चले गए…. उन्होंने गहरे विषाद में कहा

बात कुछ समझने लायक नहीं थी… परंतु क्या कर सकते हैं

सरिता जी ने अभी गहनों का पूरा पैसा भी अपने ज्वेलर को अदा नहीं किया था….. बड़े ही कष्ट और मानसिक संताप में उन्होंने दुकानदार के पैसे अदा किए… गहने बहू के शरीर पर शोभा बढ़ा रहे होते तो और  ही बात होती…

कुछ दिनों बाद मिलने पर सरिता जी ने बताया

हमें तो लगता है कि उसके मायके वालों ने सारे गहने वहीं रख लिए, उन्हें लगा होगा कि हम लोग बड़ी बहू से लेकर वही छोटी बहू को चढ़ा देंगे ( विवाह में दे देंगे) इसलिए ये चालकी दिखाई।

सरिता जी को  सदमा बस इसी  बात का नहीं मिला, असली बात तो अब शुरू हुई

अब रोज सरिता जी पूरे घर की साफ सफाई, खाना पीना सब उसी भांति कर रही थी,बहू सब काम निपटने के बाद अपने कमरे से निकलती और  थाली में खाना परोस कर कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लेती.. उसके कमरे में अटैच बाथरूम होने के कारण वो कब उठी… कब स्नानादि किया, सरिता जी को कुछ पता नहीं चलता।

सरिता जी  अपने पति से भी बहुत डरती थी,वो उनकी सुनते नहीं थे

एक दिन डरते डरते अपने बेटे मोहन से कहा कि बहू से कहो मेरे साथ काम में हाथ बंटाए तो मोहन ने बिफरते हुए कहा

तुम्ही लोगों को तो बहुत शौक था घर में बहू लाने का…. अब तुम लोग भुगतो….

सरिता जी बहू बेटे के जागने के बाद उनके कमरे में भी जाकर सफाई करती,कहती थी कि मेरा बेटा नाराज़ हो जाएगा कि मम्मी मेरे साथ दुर्भावना रखती हैं….

सरिता जी और उनके पति ने सोचा बहू को कहीं घुमाने फिराने ले जाएंगे तो शायद खुश रहे..

एक दिन बहू को पड़ोस वाले शहर में देवी मंदिर दर्शन कराने ले गई… रास्ता लंबा था, वो लोग सुबह-सुबह ही निकल गए थे.. सरिता जी घर लौटने पर सफर की थकान के बावजूद सबके लिए चाय बनाने लगी, तभी मोहन ने आकर चिल्लाते हुए कहा

क्या कर रही हो मम्मी? कितनी देर लगा रही  है,देख नहीं रही हो ऋचा को कितना चक्कर आ रहा है… जल्दी से खाना बना कर थाली परोस कर कमरे में पहुंचाओ…

सरिता जी कह ही ना सकीं कि उससे ज्यादा उम्र की तो मैं हूं, थकना तो मुझे चाहिए था…… मुझे उम्मीद करनी चाहिए थी कि बहू आकर खाना बना कर मुझे दे

एक दिन सरिता जी बताने लगी

जानती हो दोपहर को बहू  गैस पर टमाटरों को भून कर चटनी बनाती है, तवा रख कर  देशी घी डालकर हल्दी भून कर रोटियों पर लगाती है, बड़ा प्याज छील कर थाली में रखती है… अकेले बैठ कर खाना खाती है, पूरी चटनी अपनी थाली में रख लेती है… थोड़ा बहुत खाकर उसी थाल में हाथ धोकर रख देती है…. बताओ कभी किसी और को नहीं चखाती कि अपने लिए क्या बनाती है? इतनी सारी चटनी, प्याज़ सब फ़ेंक देती है

ये वो समय था जब प्याज और टमाटरों के दाम बहुत बढ़ गए थे।

बात कहने सुनने में बहुत मामूली सी लग सकती है, मगर किफायत और सूझबूझ से गृहस्थी चलाने वाली गृहणी के लिए बहुत मायने रखती है

फिर मैं जो कुछ बनाती हूं वो सबको खिलाती हूं,तो अकेले के लिए क्यों करती है? यहां तक कि अपने पति को भी नहीं पूछती… जाने मैने क्यों लड़के का विवाह कर दिया.. कब इसकी नौकरी लगेगी?.. लोग कहते हैं कि बहू को नहीं भेजेंगे, मैं तो तुरंत भेज दूंगी…

बहू घर से जाए तो खुशियां आये… घर की तो सुख शांति ही भंग हो गई है

फिर बहू मायके गई वहां से अपने पति से किसी बात पर फोन पर ही लड़ाई किया….. शायद मोहन ने कहा कि तुमने सबको परेशान कर रखा है.… मैं भी कंपटीशन की तैयारी के लिए पढ़ नहीं पा रहा हूं… ऐसा ही चलता रहा तो मैं किसी दिन ……

थोड़ी देर बाद बहू का सरिता जी के पास फोन आया

मम्मी जी ये तो अभी मुझसे फोन पर बात कर रहे थे कि मैं जहर खा लूंगा… अब मैं फोन मिला रही हूं तो फोन ही नहीं उठा रहे हैं..

सरिता जी सन्न रह गई

भागते हुए मोहन के कमरे में पहुंची…. मोहन जमीन पर पड़ा था और मुंह से झाग निकल रहा था

किसी और को नहीं बताया सिर्फ विन्नी और उसके पति को फोन करके कहा… अर्जेंट है.. तुरंत उस हास्पिटल में पहुंच जाओ…

किसी तरह बेटे की जान बचाई गई… उनके पति ने हास्पिटल से ही बहू के घर वालों को फोन किया तो…..

तुम लोगों को दहेज़ मांगने के इल्ज़ाम में फंसा दूंगा… मेरी बेटी की जिम्मेदारी आप लोगों की ही है.. और वो लोग अपनी बेटी को आनन-फानन में ससुराल पहुंचा कर भाग गए।

सरिता जी ने महीनों सेवा करके बेटे को स्वस्थ किया…. बहू का वही रवैया चलता रहा… उसे अपने बीमार पति से कोई मतलब नहीं था।

फिर मोहन की कहीं दूर सर्विस लग गई… सरिता जी ने बहू बेटे दोनों को भेज दिया।

कालांतर में उनकी बेटी का विवाह हुआ…. उसने भी अपने ससुराल, मायके सबको परेशान ही किया….. सरिता जी कभी अपने बच्चों की ओर से खुश संतुष्ट नहीं हो सकीं।

तो वास्तव में जीवन की खुशियां कहां हैं? किन चीजों में है, अपनी संतान को पालने पोसने में  माता पिता जीवन लगा देते हैं..  हां अपने पैरों पर खड़े हुए बिना अब ना बेटे का विवाह करना चाहिए ना बेटी का। जिससे वो अपना जीवन अपनी जिम्मेदारी से जीएं।

यह बिल्कुल सच है कि इसे विरले उदाहरण के तौर पर ही लिया जाएगा। कहीं माता पिता बहुत जिम्मेदार होते हैं तो कहीं बच्चे।

जीवन संध्या में , सरिता जी चाहती हैं कि बेटे अपनी दुनिया अपने तरीके से जीएं, बेटी भी रोज शिकायतों के साथ ससुराल से ना आए,सब अपनी दुनिया संभाले, जिससे वो भी अपनी दुनिया में दो रोटी चैन से खा सकें।

मैंने इस विषय पर इसलिए लिखना चाहा कि शायद कुछ लोगों को इस घटना से सबक मिले, और वो अपने जीवन में ऐसी गलतियां करने से बचें।

 जो भी ,बहू बन कर इस भांति अपने सास ससुर और पति को प्रताड़ित करती हैं, धिक्कार है उनकी सोच और जीवन को जो किसी घर परिवार को नरकीय स्थिति में धकेल दें

मेरी यह बात हरेक पीढ़ी के लिए है।

आशा है कोई इसे अन्यथा नहीं लेगा

पूर्णिमा सोनी

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