आज फिर पिंकी ने रोते हुए फोन किया था।
क्या हुआ पिंकी?
उसके पूछते ही पिंकी फट पड़ी- दीदी आज फिर मम्मी पापा में बहस हुई, लड़ाई इतनी बढ़ गई, की दोनों एक दूसरे पर चीखने लगे, कुछ ही दिनों में मेरे बोर्ड परिक्षा होने वाले हैं,,, मैं तंग आ गई हूं, इस रोज़ रोज़ के चीख चीख से…!
सोनल ने उसे समझाया – देखो पिंकी तुम चिंता मत करो मैं बात करुँगी मम्मी पापा से, बस तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।
कहकर उसने फोन रख दिया, लेकिन वह जानती कि वह कुछ भी नहीं कर सकेगी, लेकिन एक प्रयास तो करना था, हमेशा मम्मी को ही समझाती थी इस बार पापा को समझाना था, शायद कुछ सही हो जाए।
सोनल के मम्मी पापा में बहस होना कोई नई बात नहीं थी, और ना ही कोई नई समस्या थी, समस्या वही थी, कि पापा ने शुरू के सात सालों में मम्मी को एक रू भी नहीं दिया, मम्मी बस कोल्हू के बैल की तरह काम करती और बदले में पेट भरती, पापा की सारी कमाई दादी के हाथों में जाता था, पापा बड़े थे, और दादी के जवानी में ही दादा का देहांत हो गया था, अब सारे भाइयों बहनों का खर्च पापा पर ही था, पापा ने सारी जिम्मेदारियाँ निभाई, अपनी शादी के आठवें साल से पापा ने खर्च के नाम पर कुछ पैसे मम्मी को देने शुरू किए थे, मम्मी पहले तो कुछ नहीं बोलती लेकिन जब पापा के भाइयों की शादी हुई कुछ ही सालों में घर टूट गया, वे अलग हो गए, दादी भी नहीं रही, अब जब मम्मी पापा के
भाइयों को आगे बढ़ते देखती तो कुढ़ती रहती की पापा ने सारी कमाई उनमें झोंक दी…क्यूंकि भाई भी अभी ठीक से पढ़ नहीं पाया था, बहन भी अभी छोटी थी, सिर्फ सोनल की शादी ही कर पाए थे पापा…. बस इसी बात पर हमेशा बहस झगड़े होते रहते…!
इस बार जब सोनल घर गई तो मौका मिलते ही मम्मी पापा के सामने जान बुझ कर अपने घर का टॉपिक छेड़ दिया…और कहने लगी –
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आप लोग जानते हैं, मैं अपनी सास से परेशान हो गई हूँ… अपने सास और पति का बदला वो मुझसे लेतीं हैं… दिन भर मेरे सामने बैठ कर अपने सास के द्वारा प्रताड़ित होने की कहानियां दोहराती रहती हैं, मैं कुछ खाने को बैठ जाऊँ, तो बोलती हैं मेरी सास सिर्फ समय पर ही खाने देती थीं वो भी रोटियां गिन कर, मैं अगर नए कपड़े या जेवर पहन लूं तो सुनाने लगतीं हैं, मुझे तो कामों में समय ही नहीं मिलता था कि मैं कभी तैयार हो पाऊँ… अगर मैं दुर्गेश के साथ कहीं चली जाऊँ तो सुनाती कैसे मेरे ससुर उनके साथ मार पीट वाला व्यवहार करते थे, कहीं घुमाना तो दूर की बात… वो मुझे सुकून का साँस नहीं लेने देतीं, दिन भर अपना सास नामा सुनाती रहती हैं, और चाहती हैं मैं भी खुश ना रहूँ…!
मैं अब ये सब बर्दाश्त नहीं करूंगी, मैं अब वहाँ नहीं जाऊँगी…!
उसके इतना कहते ही पापा बोले- अच्छा बेटा तुम परेशान ना हो मैं बात करूँगा समधी जी से।
तभी सोनम बोली – आप क्या बात करेंगे पापा आप और दादी खुद वही करते आयें हैं, मम्मी के साथ… और आज जब मम्मी अपने उन दुःखों का हिसाब माँगती है तो आपने मम्मी पर चिल्ला कर उसकी आवाज़ दबाने की कोशिश करते हैं।
सोनल के बोलते ही पापा चुप हो गए, और उठ कर चले गए, सोनल मम्मी को समझाने लगी – मम्मी मेरी सास को देखे, उन्होंने इतना दुःख झेला अपनी सास के हाथों और अब भी झेल रही हैं, कभी अपनी जिंदगी नहीं जी पाई, क्यूंकि सास के होते हुए उनके घर मे बहू भी आ गई… वो अब अपने सास के सारे बदले मुझसे लेतीं हैं… क्या आप भी चाहती हैं, ये सारे बदले आप अपने बहू से लें, मम्मी अब तो दादी भी नहीं रही, अब अपनी जिंदगी जिएं, पापा को भी अपनी गलती का एहसास है, पर जब आप उनको बार बार दोषी ठहराती हैं तो वह झुंझला जाते हैं, मम्मी आप अब पुराने चिट्ठे मत खोला कीजिए, नई खुशियों भरे यादें बनाईए ताकि हम आने वाले समय में यादों का उत्सव मना सकें।
सोनल अब बोल कर चुप हो गई… मम्मी को भी सोच में डूबे छोड़ कर कमरे से बाहर निकल आई, इतना तो जानती थी कि मम्मी उसकी सास या दादी जैसी सास कभी नहीं बनेंगी, क्यूंकि अपने दिल का गुब्बार पापा पर ही निकल दिया करती थीं… शायद अब मम्मी पापा के ज़िंदगी में सब सही हो यही #चाहत ले कर वह जाने के लिए बैग पैक करने लगी…. और खुद भी यह प्रण कर के जा रही थी कि ससुराल में उसके साथ कुछ भी गलत होगा तो वह अब आवाज़ उठाएगी, चुप रह कर मन में गुब्बार नहीं भरेगी अपनी बहु पर उतारने के लिए।
#चाहत
मौलिक एवं स्वरचित
सुल्ताना खातून
दोस्तों मेरी कहानी आपको कैसी लगी, जरूर बताएं, साथ ही मेरे लेखन के त्रुटियों से भी अवगत कराएं, धन्यवाद