काव्या का मन बहुत बेचैन हो रहा था। उसकी शादी को पाँच साल हो चुके थे….पर अभीतक भगवान ने उसकी गोद सूनी रखी थी। फिर भी वह खुश रहने की पूरी कोशिश करती….पर आज उसके दिल के जख्म हरे हो गए।
उसकी बहुत अच्छी सखी सीमा के घर उसके बेटे की नामकरण विधि चल रही थी। काव्या बहुत खुश थी अपनी सहेली के माँ बनने पर…. हॉस्पिटल में भी जबतक सीमा के घरवाले नही आये … तबतक काव्या ने ही उसकी और नवजात बच्चे की देखभाल की।
नामकरण मे सोसाइटी की बहुत सारी महिलाएं आई थी।
हवन होने के बाद सब महिलाएं नवजात बच्चे को आशीर्वाद दे रही थी कि तभी सीमा ने काव्या को इशारे से बुलाकर कहा, ” काव्या!! क्या तुम थोड़ी देर बच्चे को संभाल लोगी…? मै काफी थक गयी हूँ… “
“हाँ …. क्यों नहीं…. “
सीमा की सासुमाँ काव्या की गोद में बच्चे को देखकर जोर से चिल्लाई, ” बहू!! तुम्हे जरा भी अक्ल नही है क्या… जो ऐसी औरत के हाथ में बच्चा थमा दिया… बच्चे को नजर लग जायेगी… “
सीमा ने कहा, ” आप कैसी बात कर रही है माँजी!!
काव्या ने हमेशा मेरा साथ दिया है…..हॉस्पिटल में भी इसने मेरा और मेरे बच्चे का बहुत अच्छे से ख्याल रखा…..भला इसकी नजर कैसे मेरे बच्चे को लग सकती हैं ….?”
ये देखकर बाकी औरतें भी बातें बनाने लगी।
“अरे!!ऐसी औरतों कोतो इस तरह के फंक्शन में बुलाना ही नहीं चाहिए…..खुद तो मां बन नहीं सकती….इसलिए नई मां और बच्चे पर उनकी छाया पड़ना अशुभ होता है…”
इतनी जलीकटी बातें सुनकर काव्या की आंखों से लगातार आंसू टपकने लगे। बच्चे को सीमा को पकड़ा कर भारी कदमों से घर आ गई और फूट-फूटकर रोने लगी।
जब काव्या का पति विकास ऑफिस से घर आया तो पूछ, “और कैसा रहा तुम्हारी सहेली का फंक्शन….?काफी मजे किए होंगे तुमने तो….”
काव्या ने रोतेरोते विकास को सब बता दिया।
“देखो काव्या!! मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि लोगों की बातें जितना दिल से लगाओगी….उतना ही तुम्हें तकलीफ होगी ….लोगों की आदत होती है जले पर नमक छिड़कने की…इसलिए बेहतर होगा कि तुम ऐसी बातों को इग्नोर करो…”
“कैसे करूं विकास!! सबने कुछ गलत भी तो नहीं कहा….पता नहीं क्यों भगवान ने मेरे साथ ही नाइंसाफी की…”
लेकिन फिर विकास के समझाने पर काव्या ने खुद को संभाल लिया ।
अगले दिन
सोसाइटी मे हररोज सब्जीबेचनेवाली शारदा ने पूछा ,”क्या हुआ भाभी!!आपको सब्जी नहीं लेनी है क्या…?
“नहीं …” काव्या ने रूखा सा जवाब दिया।
फिर शारदा ने पूछा, “भाभी!! हमेशा आप मुस्कुराती रहती है…आज इतना उदास क्यों है….कई बार आपने मेरी परेशानी को चुटकियों में हल कर दिया ….फिर आज आप खुद इतना दुखी क्यों है..?”
“क्या बताऊँ…लोगों की बातों से दुखी हूँ…” काव्या ने कहा।
शारदा सब समझ गयी।
फिर कहने लगी, “भाभी!! मेरा बेटा मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर हैं….हररोज रोकर घर आता क्योंकि समझदार माता-पिता के समझदार बच्चे उसके साथ खेलना पसंद नहीं करते और उसे मंदबुद्धि कहकर चिढ़ाते थे….पहले मुझे बुरा लगता था लेकिन फिर सोचा कि क्या हम अपनी खुशियों की चाबी लोगों के हाथ में पकड़ा दे ताकि जब उनका मन करें चाबी को घुमाकर हमें तकलीफ पहुंचा दें …कोई ना कोई कमी तो सबमें होती है…..लेकिन अब मैंने और मेरे बेटे ने लोगों की बातोंको दिल से लगाना छोड़ दिया और हम खुश हैं….”
आज एक सब्जीवाली ने काव्या को बहुत बड़ी सीख देदी थी।
उसने चहककर कहा ,”सही कहा तुमने शारदा!! अबसे मैं भी अपनी खुशियों की चाबी अपने हाथ में रखूंगी और लोगों की बातों को अपनी जिंदगी में कोई जगह नहीं दूंगी….मुझे पूरा भरोसा है कि मेरी जिंदगी में भी जल्द ही खुशियां आएंगी….थैंक्यू शारदा…, तुमने बातों बातों में मुझे जीने की एक नई राह दिखा दी… “।।
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धन्यवाद
स्वरचित एवम् मौलिक
प्रियंका मुदगिल
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भुक्तभोगी हूँ इसलिए चाबी मेरे हाथ में है