खुशियों के रंग – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : दीपक ने घर आते ही मम्मी पापा के पैर छुए.. और पास में ही बैठ गया! दीपक नोएडा में इंजीनियर था, और कुछ दिनों की छुट्टी लेकर मेरठ आया हुआ था!  इधर-उधर की बातचीत के बाद दीपक ने अपनी मम्मी से पूछा… मम्मी यह कशिश को क्या हो गया? यह अपने शर्मा अंकल जी की जो बेटी है कशिश.. आज मुझे आते वक्त रास्ते में मिल गई थी!

मैं उससे बात करना भी चाह रहा था, पर उसने तो मुझे ऐसे देखा ,जैसे मुझे जानती ही नहीं हो ! अरे .. मेरे बचपन की दोस्त है कशिश! और मुझे इस तरह से इग्नोर कर रही थी.. मानो मुझे जानती ही ना हो! और इसे हो क्या गया.. हमेशा जींस और स्कर्ट वगैरह में रहने वाली लड़की आज सलवार सूट में थी! और ऐसी गुमसुम गुमसुम सी लग रही थी मानो कोई परीक्षा में फेल हो गई हो!

उसकी बातें सुनकर मम्मी ने जो कहा उसे सुनकर तो दीपक हतप्रभ रह गया! मम्मी ने कहा ..हां बेटा यह अपने पास वाले शर्मा अंकल की बेटी कशिश ही है! भगवान ने इसके साथ बहुत बुरा किया !अभी साल भर पहले ही तो बड़ी धूमधाम से उसकी शादी हुई थी! किंतु अभी 2 महीने पहले उसके पति का एक दुर्घटना में निधन हो गया! बेचारी फूल सी बच्ची मायके में भेज दी गई, और दोष इसकी किस्मत को दिया गया !

और सही भी है वहां ससुराल में रहकर करती भी क्या? अभी इसके सामने तो पूरी जिंदगी पड़ी हुई है! काश… कोई अच्छा सा सुयोग वर मिले, जो इसका हाथ थाम ले! और उसकी जिंदगी में से गम के बादलों को हटा दे और फिर से इसे  जीना सिखा दे! पहाड़ सी जिंदगी कैसे जीएगी बेचारी? यह कहते कहते मां की आंखें भी नम हो गई थी!

दीपक शाम को दोस्तों से मिलने जाने की कहकर घर से निकल गया ,किंतु उसके दिलों दिमाग से कशिश का वह मासूम सा चेहरा  हट ही नहीं रहा था !कितनी चंचल और चुलबुली थी कशिश! पूरे मोहल्ले की जान थी वह! आते समय दीपक ने सोचा.. चलो आते समय मंदिर के दर्शन भी कर आता हूं,नहीं तो मां नाराज होगी! जैसे ही दीपक मंदिर में पहुंचा, आरती का समय हो चुका था!

वहां उसे कशिश मिल गई! उसने कशिश से बातें करने की कोशिश की, किंतु कशिश.. अभी जल्दी में हूं.. कह कर चली गई! घर आने के बाद से दीपक बहुत बेचैन हो गया! ना तो उसका किसी काम में मन लग रहा था, ना ही उसे रात को नींद ही आ पा रही थी! कशिश का मासूम चेहरा उसकी आंखों के आगे से हट ही नहीं रहा था! उसके वहां ऑफिस में काम करने वाली एक से एक बढ़कर खूबसूरत लड़कियां थी, किंतु आज जब उसने कशिश को देखा तो मानो कशिश का ही होकर रह जाना चाहता था !

वह किसी भी तरह से उससे मिलना चाहता था! अगले दिन उसे पता चला कशिश दिन में 10:00 बजे मंदिर आती है, तो दीपक भी वही पहुंच गया, और जबरदस्ती कशिश को एक तरफ ले जाकर उससे बातें करने लगा! तब कशिश ने कहा… की प्लीज दीपक.. इस तरह मेरा पीछा मत करो! अभी कोई देख लेगा तो मुझे  बिना बात में बदनाम कर देगा,

तुम्हें पता है मैं अब एक विधवा हूं, जिसकी कोई जिंदगी नहीं है! जिसकी जिंदगी में ना तो कोई रंग है, ना कोई आशाएं हैं ,और ना ही कोई सपने हैं!  तुम यहां से चले जाओ! मेरे कारण तुम भी बदनाम हो जाओगे! शायद मेरी किस्मत में जिंदगी भर अकेले रहना ही लिखा है! नहीं कशिश.. मैने जब से तुमको देखा है, मैं अपना सब कुछ भूल चुका हूं! हम जब बचपन में साथ खेलते थे, स्कूल जाते थे, मैंने तुम्हें कभी भी उस नजर से नहीं देखा! किंतु आज तुम्हारी सौम्यता, शालीनता देखकर मेरा मन विचलित हो गया है!

मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं! दीपक… यह तुम कैसी बातें कर रहे हो! तुम्हें  विधवा से ऐसी बातें करते हुए शर्म आनी चाहिए !क्या विधवा विधवा लगा रखा है, क्या विधवा होने में तुम्हारी गलती है ! क्या विधवा को जिंदगी जीने का अधिकार नहीं है,और मैं क्या करूं… अगर  मुझे तुमसे प्रेम हो गया है! और सुन लो कशिश.. मैंने फैसला कर लिया है ,…

अगर मैं शादी करूंगा तो सिर्फ तुमसे करूंगा, वरना किसी से नहीं करूंगा! मेरी किस्मत का फैसला अब तुम्हारे हाथों में है! ऐसा कहकर गुस्से में दीपक घर आ गया और सारी बात अपनी मम्मी को बता दी! दीपक की मम्मी ने कहा… बेटा अगर कशिश की जिंदगी में फिर से रंग भर जाए तो मुझे बहुत खुशी होगी! तब दीपक के मम्मी पापा कशिश के यहां कशिश का हाथ मांगने चले गए !

कशिश के पापा ने पहले तो इनकार कर दिया, कि हम कशिश की दूसरी शादी नहीं करेंगे !बहुत समझाने के बाद और कशिश की आने वाली जिंदगी को सोचकर उन्होंने हां कर दी!  सादा से समारोह  में दीपक और कशिश की शादी हो गई !और कशिश दीपक की दुल्हन बनकर आ गई! उसके आने से घर में खुशियां ही खुशियां हो गई! 

दीपक को खुश देखकर उसके  मम्मी पापा बेहद खुश थे! साथ ही कशिश के माता-पिता कशिश की किस्मत में दोबारा से नई जिंदगी, नए रंग देखकर खुश थे! कशिश के माता-पिता तो यह भूल ही गए थे की कशिश की जिंदगी में भी किस्मत दोबारा से खुशियों के रंग डाल सकती है!

 हेमलता गुप्ता (स्वरचित)

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