खुशियों के रंग अपनों के संग – कविता भड़ाना

पांच” देवरानी- जेठानी में सबसे छोटी “रमा” के बेटे की आज बारात निकलने वाली है, खूब चहल -पहल और रौनक लगी हुई है। बारात निकलने से पहले बहन के बच्चो की शादी में “मामा” के द्वारा “भात भरने” की रस्म की जाती है, जिसमे  भाई अपनी बहन की ससुराल अपनी सामर्थ अनुसार उपहार लेकर आता है और फिर बहन अपने घर के द्वार पर खड़ी होकर, भात के गीत गाकर और मिठाई खिलाकर अपने भैया – भतीजों का स्वागत करती है।

रमा के कोई भाई नहीं था सिर्फ एक बड़ी बहन थी, वो भी अब इस दुनिया में नहीं रही थी, पीहर के नाम पर बस एक पुस्तैनी मकान था और क्योंकि रमा के पिताजी भी एकलौती संतान थे तो बुआ, चाचा ताऊ जैसे रिश्ते भी नही थे।

भात की रस्म तो करनी ही थी इसलिए रमा भारी मन से उठी और घर के मुख्य द्वार पर नाइन, घर की बुजुर्ग महिलाओं और अपनी चारों जेठानियों के साथ आ खड़ी हुई।…

अब रमा के पीहर से तो किसी ने आना नहीं था तो बुर्जुग महिलाएं पूजा शुरू करने ही लगी थी की, अचानक ढोल नगाड़े की आवाजे आने लगी, सभी ने गली में देखा की बड़े -बड़े थालो में सजे उपहारों के साथ सजे धजे लोगो का हुजूम आगे आ रहा है।

हर्ष से रमा की आंखे भर आई, जब उसने देखा कि उसकी चारो जेठानियों के भाई – भतीजे, भाभियां और बहुएं नाचते गाते “भात” भरने आ रहे है, अब सबने मंगलाचार गाने शुरू कर दिए।




थोड़ी देर पहले बोझिल से वातावरण में जैसे खुशियों की शहनाइयां बजने लगी। रमा ने अपनी चारो जेठानियों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और इतना सम्मान पाकर रोने लगी, तब जेठानियों ने कहा… तुम भी तो हमारी छोटी बहन जैसी हो फिर हम कैसे तुम्हे इस सुख से वंचित रखती और कहकर गले लगा लिया।

भाइयों ने अपनी पांचों बहनों को पीली चुनरी उढ़ाई और भात भरने की रस्म पूरे जोर शोर से निभाई। ऐसा अनोखा भात और रिश्तों के नए रूप को देखकर सब की आंखे भर आई और साथ ही ये बात भी समझा दी की आखिर….

“अपने तो अपने होते है”

रिश्तों के तानेबाने थोड़े जटिल जरूर होते है पर वक्त आने पर अपने ही साथ निभाते है, सबके रिश्तों में ये खूबसूरती बरकरार रहे इसी कामना के साथ कुछ पंक्तियां आप सब के साथ बांटना चाहती हूं,

“चाहे अपनों के लिए सारी दुनियां से लड़ लेना, मगर

कभी भी दुनियां की बातों में आकर, अपनों से मत लड़ना,

क्योंकि दुनियां कभी साथ नही देती,साथ हमेशा अपने ही देते है”

स्वरचित काल्पनिक रचना

#”अपने तो अपने होते है”

कविता भड़ाना

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